प्रवचन ::: विशुद्धि चक्र पर ध्यान केंद्रित कीजिये

विशुद्धि साधनाजालंधर बंध : ध्यान के किसी ऐसे आसन में बैठिये जिसमें घुटने जमीन का स्पर्श करते हों. हथेलियां घुटनों पर रखिये. आंखें बंद करके शरीर को शिथिल कीजिए. गहरी श्वास लेकर अंतरंग कुंभक कीजिये. सिर सामने की ओर झुकाकर ठुड्डी को छाती से सटाइये. हथेलियों से घुटनों पर दबाव डालते हुए कोहनियों को सीधा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 7, 2015 5:03 PM

विशुद्धि साधनाजालंधर बंध : ध्यान के किसी ऐसे आसन में बैठिये जिसमें घुटने जमीन का स्पर्श करते हों. हथेलियां घुटनों पर रखिये. आंखें बंद करके शरीर को शिथिल कीजिए. गहरी श्वास लेकर अंतरंग कुंभक कीजिये. सिर सामने की ओर झुकाकर ठुड्डी को छाती से सटाइये. हथेलियों से घुटनों पर दबाव डालते हुए कोहनियों को सीधा कीजिये तथा कंधों को थोड़ा ऊपर उठाइये. जितनी देर हो सके, इस अवस्था में रुकिये. तत्पश्चात कंधों को शिथिल कीजिये, कोहनियों को मोडि़ये, बंध छोडि़ये तथा सिर सीधा करके धीरे-धीरे श्वास छोडि़ये.यह एक चक्र हुआ. इस प्रकार तीन चक्रों से प्रारंभ करते हुये दस चक्रों तक अभ्यास कीजिये. प्रत्येक चक्र के बाद श्वास सामान्य होने तक विश्राम कीजिये.विशुद्धि ध्यान : विशुद्धि चक्र पर ध्यान केंद्रित कीजिये. जब आप श्वास लेते हैं, तब कल्पना कीजिये कि वह विशुद्धि चक्र में मेरुदंड में से होते हुये प्रवेश कर रही है. जब श्वास छोड़ते हैं, तब लयबद्ध रूप से लगातार हं हं हें … मंत्र को मानसिक रूप से दुहराइये. मंत्र की ध्वनि पर मन को एकाग्र कीजिये. मंत्र की स्वर-लहरियों को विशुद्धि चक्र में अनुभव कीजिये.

Next Article

Exit mobile version