प्रवचन:::: आत्मरक्षा की भावना सहज प्रवृत्ति है
इन्द्रिय सुख, संतानोत्पत्ति तथा आत्मरक्षा की भावना- ये मनुष्य की सबसे शक्तिशाली तथा प्रमुख सहज प्रवृत्तियां हैं. लेकिन अनेक विचारधाराओं तथा पद्धतियों में इन्हें हीन प्रवत्ति कहकर नकारा गया है, जबकि तंत्र इन्हें पूर्ण रूप से स्वीकार करता है. उसकी दृष्टि में इनकी स्वीकृति सफल ध्यान के लिए बहुत आवश्यक है. यदि आप इसकी भर्त्सना […]
इन्द्रिय सुख, संतानोत्पत्ति तथा आत्मरक्षा की भावना- ये मनुष्य की सबसे शक्तिशाली तथा प्रमुख सहज प्रवृत्तियां हैं. लेकिन अनेक विचारधाराओं तथा पद्धतियों में इन्हें हीन प्रवत्ति कहकर नकारा गया है, जबकि तंत्र इन्हें पूर्ण रूप से स्वीकार करता है. उसकी दृष्टि में इनकी स्वीकृति सफल ध्यान के लिए बहुत आवश्यक है. यदि आप इसकी भर्त्सना करेंगे, इन्हें नकारेंगे तथा दबायेंगे तो इससे झूठी पवित्रता, जिसे पाखंड कहते हैं, मानसिक असंतुलन तथा अनेक शारीरिक व्याधियों का जन्म होगा. तंत्र में एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘आपको उन्हीं सोपानों से ऊपर चढ़ना है, जिनसे आपका पतन होता है. ‘ यही कहावत तांत्रिक दृष्टिकोण से यौन भावना पर भी लागू होती है. तंत्र कहता है कि यौन भावना को नकारकर आप उस तल से कभी भी ऊपर नहीं उठ सकते, बल्कि उसे पूरी तरह स्वीकार कर उसका अनुभव कर तथा उसका आध्यात्मीकरण कर ही आप उच्च चेतना की यात्रा में आगे बढ़ सकते हैं.