प्रवचन:::: देवी आयसिस को लोग पूजते थे

वह नील नदी के रूप में उन्हें उपलब्ध थी. जब नील नदी में बाढ़ आज से जन-धन की अपार हानि होती तो वे इसे देवी आयसिस का प्रकोप मानते तथा जब उससे सिंचाई द्वारा विशाल क्षेत्र में फसल उगती थी, तब वे इसे पुनर्जन्म की संज्ञा देते तथा देवी की विशाल हृदयता का परिचायक मानते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 13, 2015 6:02 PM

वह नील नदी के रूप में उन्हें उपलब्ध थी. जब नील नदी में बाढ़ आज से जन-धन की अपार हानि होती तो वे इसे देवी आयसिस का प्रकोप मानते तथा जब उससे सिंचाई द्वारा विशाल क्षेत्र में फसल उगती थी, तब वे इसे पुनर्जन्म की संज्ञा देते तथा देवी की विशाल हृदयता का परिचायक मानते थे. इस सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में मिस्त्र के आध्यात्मिक संत-महात्मा अपने शिष्यों को तांत्रिक ध्यान की शिक्षा देते थे. इसके फलस्वरूप उन्हें शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति, प्राण-ऊर्जा का संरक्षण तथा आध्यात्मिक पुनर्जन्म होता था जो मानवीय चेतना के विस्तार के लिए आवश्यक है. साधकों को धीरे-धीरे अपने अंदर तथा ब्रह्माण्ड में आयसिस तथा ओसिरिस के मिलन का अनुभव कराया जाता था. इससे वे भावातीत चेतना में विचरण करने में समर्थ होते थे.

Next Article

Exit mobile version