कुछ मशीनों का उपयोग बहुत ही कम होता है. इसमें नेत्र विभाग में रखा मशीन तथा अन्य कुछ मशीनें हैं. कुछ चालू अवस्था में है भी तो वे स्पेशलाइज्ड चिकित्सकों के समुचित दिशा-निर्देश के अभाव में उपयोग नहीं हो पाता है. अस्पताल की व्यवस्था पुराने स्ट्रैंथ पर टिकी है. जिले के अन्यत्र अस्पतालों से डॉक्टर व स्वास्थ्यकर्मियों को सदर अस्पताल में प्रतिनियुक्त कर लोगों को सुविधा मुहैया कराया जा रहा है.
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टेक्नीशियन के अभाव में धूल फांक रही है लाखों की मशीनें
देवघर: देवघर को जिला बने तीन दशक से भी ज्यादा का समय गुजर गया. मगर सदर अस्पताल को अब तक जिला अस्पताल का दर्जा नहीं मिल सका है. हालांकि अब तक इस क्षेत्र के किसी भी जनप्रतिनिधि ने जिला अस्पताल का दर्जा दिलाने को लेकर पहल नहीं की. वहीं दूसरी ओर अस्पताल में सक्षम टेक्नीशियन […]
देवघर: देवघर को जिला बने तीन दशक से भी ज्यादा का समय गुजर गया. मगर सदर अस्पताल को अब तक जिला अस्पताल का दर्जा नहीं मिल सका है. हालांकि अब तक इस क्षेत्र के किसी भी जनप्रतिनिधि ने जिला अस्पताल का दर्जा दिलाने को लेकर पहल नहीं की. वहीं दूसरी ओर अस्पताल में सक्षम टेक्नीशियन के अभाव में लाखों रुपये की मशीनें बंद कमरों में धूल फांक रही है. इसमें इसीजी, रेडिएंट वार्मर, महंगी एक्स-रे मशीन शामिल है.
अल्ट्रासाउंड व एक्स-रे मशीन संचालित है
सदर अस्पताल में सिर्फ अल्ट्रासाउंड व एक्स-रे मशीन संचालित है. प्रतिदिन सदर अस्पताल में 3- 40 मरीजों का एक्स-रे व अल्ट्रासाउंड होता है. एक्स-रे व अल्ट्रासाउंड में टेक्नीशियन रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं. सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की फीस 180 रुपये, एक्स-रे का 50 रुपया निर्धारित है. वहीं बाजार के जांच घर में अल्ट्रासाउंड की फीस छह सौ रुपये व एक्स-रे की फीस करीब 200 रुपये लगता है. सदर अस्पताल में महिला ओपीडी न चलने के कारण अल्ट्रा साउंड अपेक्षा से कम हो रहा है.
दंत विभाग में नहीं होता समुचित इलाज
सदर अस्पताल के दंत विभाग में मरीज तो आते हैं लेकिन यहां उनका समुचित इलाज नहीं हो पाता है. विभाग में इलाज के लिये उपयोग होने वाला चेयर टूटा पड़ा है.
हृदय वार्ड बना पेइंग वार्ड
सदर अस्पताल जब आइएसओ प्रमाणित था, उस वक्त हृदय वार्ड भी चलता था. कम शुल्क में इसीजी होती थी. हृदय वार्ड भी अलग बना था. हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर के अभाव में यह विभाग ही बंद हो गया है. वहीं हृदय वार्ड को पेइंग वार्ड के तौर पर उपयोग किया जाता है. मगर टेक्नीशिन के अभाव में मशीनों के उपयोग न होने से यह वार्ड प्रभावशाली लोगों के मरीजों को ही आवंटित होता है.
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