प्रवचन:::: यहूदी धर्म में साधना मरुस्थल में की जाती थी

यह संभवत: 110 ई.पू. का निर्माण कार्य है, जिसमें सभागार, प्रशिक्षण कक्ष, रसोई घर तथा एक पुस्तकालय था. ऐसा लगता है कि एसीन लोगों ने सन 31 ई.पू. में इस केंद्र को छोड़ दिया और फिर सन छह ईसवी में लौट आये. तब उन्होंने इसके निर्माण-कार्य का विस्तार किया. इस बात के भी प्रमाण मिलते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2015 7:03 PM

यह संभवत: 110 ई.पू. का निर्माण कार्य है, जिसमें सभागार, प्रशिक्षण कक्ष, रसोई घर तथा एक पुस्तकालय था. ऐसा लगता है कि एसीन लोगों ने सन 31 ई.पू. में इस केंद्र को छोड़ दिया और फिर सन छह ईसवी में लौट आये. तब उन्होंने इसके निर्माण-कार्य का विस्तार किया. इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि सन 68 ईसवी के आस-पास रोमन लोगों ने इस समुदाय को नष्ट कर दिया. परंतु संभवत: उन्हें इस विनाश की भनक मिल गयी थी. शायद इसलिए उन्होंने अपने संबंध में लिखित जानकारी छिपाकर रख दी, जिसमें हमें तत्कालीन यहूदी जीवन की जानकारी मिलती है. अनेक दस्तावेजों में यहूदी ईसाईयों के बारे में ऐसी जानकारियां मिली हैं जो इन दस्तावेजों के अभाव में सोची भी नहीं जा सकती थीं. यहूदी धर्म के अनेक आदर्शों की साधना दूर मरुस्थल के त्यागमय वातावरण में की जाती थी.

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