प्रवचन::: मन इंद्रिय सुखों के पीछे भागता है
इस तथ्य को भी ध्यानपूर्वक देखा जाता है कि मन इंद्रिय सुखों के पीछे क्यों भागता है, क्रोध क्यों तथा कैसे आता है, वासनाओं का आवेग तीव्र क्यों होता है आदि. इस प्रकार आत्मविश्लेषण तथा आत्म निरीक्षण के बाद ही साधक व्यवधान रहित ध्यान की अवस्था में प्रविष्ट हो पाता है.तकनीकें: प्रेक्षा ध्यान- प्रेक्षा ध्यान […]
इस तथ्य को भी ध्यानपूर्वक देखा जाता है कि मन इंद्रिय सुखों के पीछे क्यों भागता है, क्रोध क्यों तथा कैसे आता है, वासनाओं का आवेग तीव्र क्यों होता है आदि. इस प्रकार आत्मविश्लेषण तथा आत्म निरीक्षण के बाद ही साधक व्यवधान रहित ध्यान की अवस्था में प्रविष्ट हो पाता है.तकनीकें: प्रेक्षा ध्यान- प्रेक्षा ध्यान द्वारा आत्मदर्शन हेतु अंतर्दृष्टि में प्रगति के लिए साधक सजगता को बढ़ाने का निरंतर प्रयास करता है. वह स्वयं को विचारों तथा राग-द्वेष से मुक्त करता है. इससे उसके मन तथा विचारों में संतुलन और स्थिरता आती है तथा उसमें देखने-समझने की क्षमता विकसित होती है.प्रथम चरण- श्वास प्रेक्षा (श्वास की सजगता)सहज श्वास पर मन एकाग्र कीजिये-समूची श्वास प्रक्रिया को गौरपूर्वक देखिये-कुछ समय तक देखते रहिये. अब श्वास को सामान्य से गहरी तथा कुछ लंबी कीजिये. उसके मार्ग का मानसिक रूप से अनुसरण करते जाइये. कुछ समय श्वास को सहज तथा लययुक्त कीजिये. श्वास की ताल-लय का पूरे शरीर में अनुभव कीजिये.