्रप्रवचन ::::कर्म रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिये तत्पर हो

पंचम चक्र-एकाग्रताअपने मन को एक बिंदु पर केंद्रित कीजिये. आप अपने प्रतीक, मंत्र अथवा अन्य वस्तु पर मन को एकाग्र कर सकते हैं. एकाग्रता के लिये इनमें से किसी एक को चुनिये, परंतु एकाग्रता प्रारंभ करने के बाद न तो उसके लक्ष्य को बदलिये और न ही अपनी एकाग्रता को भंग होने दीजिये. उपर्युक्त पांच […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 6, 2015 5:04 PM

पंचम चक्र-एकाग्रताअपने मन को एक बिंदु पर केंद्रित कीजिये. आप अपने प्रतीक, मंत्र अथवा अन्य वस्तु पर मन को एकाग्र कर सकते हैं. एकाग्रता के लिये इनमें से किसी एक को चुनिये, परंतु एकाग्रता प्रारंभ करने के बाद न तो उसके लक्ष्य को बदलिये और न ही अपनी एकाग्रता को भंग होने दीजिये. उपर्युक्त पांच चरणों में प्रेक्षा ध्यान पूरा होता है. यह स्पष्ट है कि इसमें पूर्णता प्राप्त करने के लिये लंबे समय तक अभ्यास की आवश्यकता है. प्रथम चार चरणों का कम-से-कम पांच मिनट तक अभ्यास करना चाहिये. पांचवें चरण के लिये भी कम-से कम पांच मिनट का समय लगेगा. इसके बाद धीरे-धीरे समय बढ़ाते जाइये.तत्वार्थ सार दीपिका से एक तकनीक”योगी को विशाल तथा स्थिर क्षीरसागर की कल्पना कर उसके बीचों-बीच स्वर्ण वर्ण के सहस्त्रदल कमल का अंतदर्शन करना चाहिए. उसे स्वयं को इस सहस्त्रदल कमल के बीच फलभित्ति-सिंहासन पर स्थिरता पूर्वक बैठे हुये देखना चाहिये. उसमें राग, द्वेष, विचार, वासनाओं का सर्वथा अभाव हो तथा वह कर्म रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिये तत्पर हो.

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