प्रवचन:::: ताओवादी भावनात्मक संतुलन का अभ्यास करते हैं

‘अर्द्धसुप्त भालू जैसी स्थिति में कुछ समय बिताओ, बतख के पंख फड़फड़ाने जैसी हलचल करो, बंदर की तरह उछल-कूद करो, उल्लू की तरह अपलक देखो, शेर की तरह बैठो, भालू की तरह चलो.’- चुआंग त्से.ताओवादी नि:स्वार्थता तथा भावनात्मक संतुलन का अभ्यास करते थे, जिसकी परिणति गहन ध्यान तथा आत्मज्ञान में होती थी. ताओ मत प्रारंभ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 19, 2015 5:03 PM

‘अर्द्धसुप्त भालू जैसी स्थिति में कुछ समय बिताओ, बतख के पंख फड़फड़ाने जैसी हलचल करो, बंदर की तरह उछल-कूद करो, उल्लू की तरह अपलक देखो, शेर की तरह बैठो, भालू की तरह चलो.’- चुआंग त्से.ताओवादी नि:स्वार्थता तथा भावनात्मक संतुलन का अभ्यास करते थे, जिसकी परिणति गहन ध्यान तथा आत्मज्ञान में होती थी. ताओ मत प्रारंभ बोध की क्षमता के विकास तथा जीवन चक्र के अवलोकन से होता है. इससे उस तत्व की सजगता बढ़ती है जिसके द्वारा हमें बोध होता है. सृष्टि की सजगता विकसित कर उसे फिर अंतर्मुखी किया जाता है, जिससे शुद्ध चेतना के प्रकाश के दर्शन होते हैं. ताओ मत में ध्यान का अभ्यास प्रमुख था. उनकी ध्यान की तकनीकें भारत तथा तिब्बत में प्रचलित तकनीकों से इस सीमा तक मिलती-जुलती थीं कि अनेक लोग तंत्र तथा ताओ का मूल स्त्रोत एक ही मानते थे.

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