शिवम की मौत के बाद थम नहीं रहा सवालों का सिलसिला, सवालिया घेरे में स्वीमिंग ट्रेनर व जांच
देवघर: जसीडीह के रामकृष्ण विवेकानंद विद्या मंदिर में सोमवार को स्वीमिंग पुल में सातवीं कक्षा के छात्र शिवम राज(13) की डूब कर हुई मौत का मामला काफी गंभीर दिख रहा है. स्कूल प्रबंधन ने तो इस घटना से साफ कन्नी काट लिया है. स्कूल प्रबंधन की माने तो स्वीमिंग पुल में बच्चों को तैराकी सिखाने […]
देवघर: जसीडीह के रामकृष्ण विवेकानंद विद्या मंदिर में सोमवार को स्वीमिंग पुल में सातवीं कक्षा के छात्र शिवम राज(13) की डूब कर हुई मौत का मामला काफी गंभीर दिख रहा है. स्कूल प्रबंधन ने तो इस घटना से साफ कन्नी काट लिया है. स्कूल प्रबंधन की माने तो स्वीमिंग पुल में बच्चों को तैराकी सिखाने के लिए एक ट्रेनर की बहाली की गयी है.
जब भी बच्चे सीखने जाते हैं तो ट्रेनर वहां मौजूद रहता है और बच्चों की देखभाल करता है. लेकिन शिवम राज की मौत ने स्कूल प्रबंधन की व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है. क्योंकि परिजनों ने जो एफआइआर दर्ज कराई है, उसके मुताबिक स्कूल प्रबंधन की लापरवाही के कारण बच्चे की डूबकर मौत हुई. सवाल यह है कि जब वह स्वीमिंग पुल में स्वीमिंग सीखने या स्वीमिंग करने गया तो क्या उस वक्त ट्रेनर वहां मौजूद था ? यदि ट्रेनर वहां मौजूद था, तो उसने बच्चे को डूबने से बचाया क्यों नहीं?
क्या स्वीमिंग के दौरान ट्रेनर ने लाइफ जैकेट पहनाया था
एक सवाल स्कूल प्रबंधन पर अभिभावक यह भी उठा रहे हैं कि स्वीमिंग के दौरान क्या सेफ्टी मेजर्स के तहत लाइफ जैकेट आदि की व्यवस्था स्कूल की ओर से की गयी थी या नहीं ? लेकिन जिस हालत में बच्चे को लाया गया, इससे साफ है कि बच्चे ने किसी भी प्रकार का लाइफ जैकेट नहीं पहना था. ऐसे में ट्रेनर क्या कर रहे थे. ट्रेनर ने शिवम को लाइफ जैकेट क्यों नहीं पहनाया ? लाइफ जैकेट स्कूल में है भी कि नहीं ? यह भी बड़ा सवाल है.
क्या है ट्रेनर की योग्यता
अपने घरों से दूर अभिभावक बच्चों को स्कूल प्रबंधन के भरोसे हॉस्टल में छोड़ देते हैं. ऐसे में बच्चों के अभिभावक की भूमिका स्कूल प्रबंधन अदा करता है. ऐसे में अभिभावक यदि लापरवाह हो जायेंगे तो ऐसे स्कूलों पर से अभिभावकों का विश्वास उठ जायेगा. यहां यह बात भी सामने आ रही है कि स्कूल प्रबंधन ने जिस व्यक्ति को ट्रेनर बना रखा है, उसकी योग्यता ही सवालों की घेरे में है. यदि वह एक्सर्ट तैराक होता तो स्वीमिंग पुल में डूबकर बच्चे की मौत नहीं होती.
पुलिसिया जांच भी अनमने ढंग से
इस मामले में जसीडीह पुलिस की भूमिका भी कुछ ठीक नहीं दिख रही है. जिस तरह से पुलिस ने इस संगीन मामले को हल्के में लिया है. इससे अभिभावक आहत हैं. पुलिस ने पूरी जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया. सिर्फ घटना को देखा, सुना लेकिन घटना के पीछे के कारणों का पता लगाना उचित नहीं समझा. हालांकि पुलिस ने ट्रेनर को हिरासत में लिया था, लेकिन बाद में उसे थाने से ही छोड़ दिया. पूरे मामले में स्कूल प्रबंधन की लापरवाही का जिक्र अभिभावक ने एफआइआर में किया है, लेकिन पुलिसिया अनुसंधान में जो लापरवाही बरती गयी, इसकी जांच अभी तक नहीं हुई या शायद होगी भी नहीं. क्योंकि पुलिस को ट्रेनर की योग्यता की जांच करनी चाहिए थी, जिस स्वीमिंग पुल में डूब कर बच्चे की मौत हुई है, वहां क्या-क्या सुरक्षात्मक उपाय हैं? कोई इंतजाम है भी या नहीं ! बच्चे जब तैर रहे थे तो उस वक्त ट्रेनर वहां मौजूद था या नहीं? पूरे मामले को एक तरह से जसीडीह पुलिस ने हल्के में लिया है. यदि इस तरह के मामले को भी पुलिस हल्के में लेती रही तो आने वाले समय में इस तरह की घटनाएं बढेंगी और स्कूल प्रबंधन यूं ही अपनी जिम्मेदारियों से भागता रहेगा.