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आजादी के 68 साल बाद भी टोपैया गांव नहीं पहुंची बिजली उपेक्षा के घने अंधकार में कैसे मनायें प्रकाश पर्व तसवीर है सोहन के फोल्डर में री-नेम प्रतिनिधि, जसीडीह प्रकाश पर्व दीपावली को लेकर जहां शहर से गांव तक हर जगह लोग अपने-अपने घर-आंगन,दुकान-प्रतिष्ठान को रौशन करने के लिए तरह-तरह के बल्ब, दीये का इंतजाम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 7, 2015 9:10 PM

आजादी के 68 साल बाद भी टोपैया गांव नहीं पहुंची बिजली उपेक्षा के घने अंधकार में कैसे मनायें प्रकाश पर्व तसवीर है सोहन के फोल्डर में री-नेम प्रतिनिधि, जसीडीह प्रकाश पर्व दीपावली को लेकर जहां शहर से गांव तक हर जगह लोग अपने-अपने घर-आंगन,दुकान-प्रतिष्ठान को रौशन करने के लिए तरह-तरह के बल्ब, दीये का इंतजाम कर रहे हैं. लेकिन जसीडीह थाना के डिगरिया पहाड़ के नीचे बसा टोपैया गांव के लोग आज भी अंधकार से बावास्ता हैं. आदिवासी बहुल टोपैया गांव के लोग आज भी अंधेरे में प्रकाश-पर्व मनाने के लिए अभिशप्त हैं. आजादी के इतने वर्षों बाद भी यह गांव विकास की तमाम रोशनी से वंचित हैं. गांव के लोगों को अब तक बिजली नसीब नहीं हुई है. टोपैया के अधिकतर लोग मजदूर वर्ग के हैं. गरीबी व अशिक्षा उनकी नियती है. मजदूरी कर किसी तरह पेट भरते हैं गांव के लोग. डिबिया से ज्यादा रोशनी इन्होंने कभी नहीं देखी. गांव में करीब दो दर्जन घर हैं. सैकडों की आबादी है. इसके बावजूद किसी भी जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी का ध्यान इस गांव की ओर नहीं गया. क्या कहते है ग्रामीणदेश को आजाद हुए इतने साल हो गये, लेकिन हम बिजली पोल व रोशनी देखने को तरस रहे हैं. शाम होते ही अंधकार से जूझने लगते हैं.मंगल बेसरा.टोपैया गांव के अधिकतर लोग गरीब और मजदूर हैं. गांव में रोजगार की सुविधा न होने से दूसरी जगह जाकर काम कर घर-परिवार चलाते हैं. रोशनी के लिए ब्लैक में केरोसीन खरीद कर किसी तरह डिबिया जलाते हैं तो दीपावली कहां से मनायेंगे.मोहन कोल.रात होते ही घने अंधकार में पूरा गांव डूब जाता है. रोशनी का कोई समुचित प्रबंध नहीं है. डिबीया के सहारे अंधकार काटते हैं तो दीपावली में रोशनी करने के बारे में कहां से सोचेंगे.नागेश्वर कोल.बेकारी और अंधकार से जूझते-जूझते दिन और रात कट जाता है. ऐसे में दीपावली पर्व मनाने और दीया एवं बच्चों को पटाके देने की बात कहां सोच पायेंगे.कलावती देवी.दीपावली के दिन अगर घर-खर्ची को जुगाड़ के बाद पैसा बचता है तो डिबिया की जगह एक दो मोमबत्ती खरीद कर जला लेते है. मोमबत्ती की रोशनी में घर का काम भी हो जाता है और दीपावली भी मन जाता है.जीरीया देवी.कमायेंगे तो खायेंगे जैसी हालत है ग्रामीणों का. ऐसे में दीपावली पर्व कब आता और कब चला जाता है पता भी नहीं चलता. आस-पास के क्षेत्रों में बिजली बल्ब जलते हैं और पटाखा की आवाज आती है तो पता चलता है दीपावली है.दीपावली का नाम सुनते हैं और शहर में रोशनी भी देखते हैं. इसी रोशनी को देख संतोष कर लेते हैं. रावण मरांडी.

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