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जमीन व वित्त आवंटन के बावजूद निर्माण कार्य सुस्त कुमैठा स्टेडियम : बन जाये तो बरदान तसवीर है राजीव के फोल्डर में री-नेम प्रतिनिधि, जसीडीह जसीडीह के कुमैठा गांव में करीब बीस करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला स्टेडियम अब तक अधर में लटका हुआ है. जिसके कारण जिले के खिलाडियों एवं खेल प्रेमियों के बीच निराशा व्याप्त है. इस स्टेडियम को वर्ष 2014 में ही पूरा हो जाना था. राज्य सरकार के भवन निर्माण विभाग की पहल पर जसीडीह के कुमैठा गांव में स्टेडियम बनाने की योजना तैयार की गयी थी. इसके लिए लगभग 22 एकड़ जमीन भी आंवटित की गयी. इसके बाद संबंधित विभाग ने ठेकेदार के माध्यम से वर्ष 2012 में स्टेडियम निर्माण कार्य आरंभ कराया.लेकिन, विभाग के वरीय पदाधिकारियों की अनदेखी व ठेकेदार की कार्यशैली के कारण स्टेडियम निर्माण का काम अब तक अधूरा है. खिलाडि़यों को मिलता दूरगामी लाभकुमैठा में स्टेडियम बनने से जिले के फुटबॉल, क्रिकेट,बैडमिंटन, टेबल टेनिस,बॉस्केट बॉल, स्वीमिंग प्रतिस्पर्धा, वॉलीबॉल आदि खेलों के खिलाडि़यों को यहां खेलने के साथ राज्य स्तरीय व अंतरराज्यीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रेरणा मिलती. उन्हें अभ्यास और तैयारी का मौका मिलता जिसका दूरगामी लाभ होता. स्टेडियम में प्रतियोगिता आयोजित होने से खेलकूद का माहौल बनता.कहते हैं खिलाड़ीस्टेडियम बन जाने से देवघर सहित आसपास के विभिन्न खेलों के स्थानीय खिलाडि़यों को बहुत कुछ जानने व सीखने का मौका मिलता. साथ ही खेल को बढ़ावा मिलता. कैलाश कुमार दासकुमैठा में स्टेडियम के निर्माण की घोषणा से काफी खुशी मिली. लगा कि शहर व गांव से खत्म होते खेल के मैदानों की कमी स्टेडियम से दूर होगी. लेकिन निर्माण-कार्य की गति देख निराश हो रही है. पीयूष कुमार दूबे उर्फ बिट्टू दूबे.बढ़ती जनसंख्या एवं खेल के मैदानों की कमी होने से युवाओं में खेल की भावना व खेल-गतिविधियों में लगातार कमी आ रही है. अगर यह स्टेडियम जल्द बन जाता तो युवाओं में खेल की भावना के साथ-साथ खेलने के प्रति रूचि बढ़ती. महिपाल सिंह.कुमैठा स्टेडियम बनने से न केवल इस क्षेत्र के बल्कि आस-पास के क्षेत्रों के खिलाडियों एवं खेल प्रेमियों में खेल भावना का संचार हुआ था. लेकिन स्टेडियम निर्माण में सुस्ती देख निराशा छाने लगी है. अभिषेक झा.स्टेडियम बन जाने व यहां आयोजित होने वाली विभिन्न प्रतियोिगताओं से इस क्षेत्र के खिलाडि़यों को लाभ तो होता ही. इसके अलावा बाहर से आने वाले खिलाडि़यों से सीखने व जानने का अवसर मिलता. कृष्णा झा.

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