10 वर्ष तक मुखिया रह चुके 78 वर्षीय दुखी प्रसाद मंडल ने कहा, 36 वर्ष पहले पंचायत चुनाव में नहीं होता था धन-बल का प्रयोग

देवघर: मोहनपुर प्रखंड के खरगडीहा गांव निवासी दुखी प्रसाद मंडल 1968 में पहली बार 21 वर्ष की उम्र जमुआ पंचायत से मुखिया चुने गये थे. उसके बाद श्री मंडल दूसरे टर्म भी मुखिया चुने गये. 10 वर्ष तक वे लगातार मुखिया पद पर बने रहे. इस दौरान उन्होंने प्रमुख पद का भी चुनाव लड़ा, लेकिन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 1, 2015 9:12 AM
देवघर: मोहनपुर प्रखंड के खरगडीहा गांव निवासी दुखी प्रसाद मंडल 1968 में पहली बार 21 वर्ष की उम्र जमुआ पंचायत से मुखिया चुने गये थे. उसके बाद श्री मंडल दूसरे टर्म भी मुखिया चुने गये. 10 वर्ष तक वे लगातार मुखिया पद पर बने रहे. इस दौरान उन्होंने प्रमुख पद का भी चुनाव लड़ा, लेकिन एक वोट से भूतपूर्व प्रमुख बर्द्धन खवाड़े से चुनाव हार गये थे. उस समय मुखिया से प्रमुख चुने जाते थे.
1978 के बाद अविभाजित बिहार में सरकार ने पूरे राज्य में पंचायतीराज का अधिकार खत्म कर दिया था. 32 वर्षों तक पंचायत चुनाव नहीं हुआ. पावर सीज होने के बाद भी दुखी प्रसाद मंडल सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे. 78 वर्ष की उम्र में आज भी दुखी प्रसाद मंडल अपने पंचायत ही नहीं, प्रखंड के कई अलग-अलग गांवों में लोगों के बुलावे पर खुद मोटरसाइिकल चलाकर पंचायती करने जाते हैं.

श्री मंडल कहते हैं कि पंचायत चुनाव 70 व 80 के दशक के मुकाबले आज काफी बदल गया है. पहले नैतिकता के आधार पर वोट दिये जाते थे. जात-पात से उपर उठकर मतदाता प्रत्याशी के व्यक्तित्व पर वोट करते थे. मतदाता व प्रत्याशी के वायदों में सिद्धांत हुआ करता था. उस समय धन-बल का कोई प्रभाव नहीं था. पंचायत चुनाव में अपने गांव का भविष्य संवारने के लिए मतदाता धन-बल को भी प्रभावित नहीं होते थे. लेकिन आज परिद्श्य बदल गया है. पंचायत चुनाव में भी धन-बल व जात-पात हावी है. अपने गांव-कसबों के विकास के लिए मतदाता को जात-पात से उपर उठकर ऐसे प्रत्याशी को चुनना चाहिए जो उनके क्षेत्र का विकास करे व ग्राम सभा को मजबूत करने की बात करे.

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