पांच वर्षों तक अधिकारों पर चलती रही खींचतान
देवघर : त्रिस्तरीय पंचायततीराज के बाद गांव की सरकार को मजबूत करने की योजना बनी. लेकिन पंचायतीराज के पिछले पांच वर्षों में सिर्फ 14 अधिकार ही मिले. झारखंड पंचायतीराज नियमावली 2001 की धारा के तहत पंचायतीराज के अंतर्गत 29 विभाग है. राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर इन विभागों की शक्तियां पंचायतों को सौंपना था. […]
देवघर : त्रिस्तरीय पंचायततीराज के बाद गांव की सरकार को मजबूत करने की योजना बनी. लेकिन पंचायतीराज के पिछले पांच वर्षों में सिर्फ 14 अधिकार ही मिले. झारखंड पंचायतीराज नियमावली 2001 की धारा के तहत पंचायतीराज के अंतर्गत 29 विभाग है. राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर इन विभागों की शक्तियां पंचायतों को सौंपना था. इसमें सरकार ने महज 14 विभागों की शक्तियां पांच वर्षों दौरान हस्तांतरित करने की घोषणा कर सकी. लेकिन इसमें 1 1 विभागों की अधिसूचना जारी हो पायी. इसमें अधिकांश त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था को केवल निगरानी की ही शक्तियां दी गयी थी.
इन विभागों को शक्ति देने की थी घोषणा : ग्राम पंचायत, पंचायत समिति व जिला परिषद के अधीन गांव की सरकार को राज्य सरकार ने मबजूत करने के लिए पंचायतीराज विभाग से 23 सितंबर 2014 को जारी पत्र 2917 के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायतीराज के अधीन मानव संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, कृषि एवं गन्ना विकास, स्वास्थ्य चिकित्सा एवं परिवार कल्याण, समाज कल्याण एवं महिला बाल विकास, पशुपालन एवं मत्स्य, खाद्य आपूर्ति, कला एवं संस्कृति व खेलकूद, उद्योग व वन एवं पर्यावरण विभाग है. इसके अलावा भूमि सुधार व राजस्व विभाग का अधिकार अप्रैल 2015 में मिला है.
इन विभागों की कार्य योजना व वित्तीय मामले के निर्णय लेने का अधिकार त्रिस्तरीय पंचायीराज को नहीं दिया गया है. सिर्फ इन विभाग से संचालित योजनाओं की समीक्षा व निगरानी का अधिकार जिला परिषद को मिला. जबकि सरकार की अधिसूचना में पशुपालन एवं मत्स्य विभाग, पीएचइडी, जल संसाधन व कृषि एवं गन्ना विकास विभाग का वित्तीय एवं योजना चयन करने का अधिकार त्रिस्तरीय पंचायतीराज को दिया गया है. लेकिन देवघर जिलें में यह अधिकार सिर्फ कागज पर सिमटा रहा. इसमें कृषि विभाग व मत्स्य विभाग से योजना चयन का अधिकार जिला परिषद से से सरकार ने वापस ले लिया था.
अंतिम क्षण में डीआरडीए की शक्ति : जिला परिषद को एक वर्ष पहले केंद्र सरकार की बीआरजीएफ व 13वें वित्त आयोग की राशि से कार्य योजना तैयार कर स्वीकृति देने का अधिकार दिया गया. वहीं पंचायत को सितंबर 2014 में बीआरजीएफ की राशि खर्च करने का अधिकार दिया. लेकिन दूसरे वर्ष ही केंद्र सरकार के स्तर से बीआरजीएफ का आवंटन बंद कर दिया गया. इससे जिला परिषद में पारित दर्जनों योजनाएं धरी की धरी रह गयीं. चुनाव से ठीक पहले अंतिम क्षण में बगैर पावर की डीआरडीए की कुरसी दी गयी.