जरूरत पड़ी, तो स्थानीय नीति में करेंगे संशोधन
घोषणा. देवघर में बोले मुख्यमंत्री रघुवर दास मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि जनता के हित में जरूरत पड़ी, तो स्थानीय नीति में भी संशोधन होगा. देवघर : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि जनता के हित में जरूरत पड़ी, तो स्थानीय नीति में भी संशोधन होगा. जब संविधान, सीएनटी व एसपीटी एक्ट […]
घोषणा. देवघर में बोले मुख्यमंत्री रघुवर दास
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि जनता के हित में जरूरत पड़ी, तो स्थानीय नीति में भी संशोधन होगा.
देवघर : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि जनता के हित में जरूरत पड़ी, तो स्थानीय नीति में भी संशोधन होगा. जब संविधान, सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन हो सकता है, तो स्थानीय नीति में क्यों नहीं हो सकता. मुख्यमंत्री सोमवार को देवघर के सर्किट हाउस में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे. उन्होंने कहा : स्थानीय नीति पर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने जो पत्र मुझे दिया है, उसमें कोई आपत्ति नहीं है. अर्जुन मुंडा सहित भाजपा के सभी सांसद, आजसू पार्टी और विपक्ष के लोगों ने भी मुझे स्थानीय नीति लागू करने पर बधाई दी है.
कोई भी दे सकता है सुझाव : अर्जुन मुंडा के पत्र पर मुख्यमंत्री ने कहा : कानून इनसान ही बनाते हैं. कई प्रश्न काल्पनिक होते हैं, शंकाएं भी होती हैं. लेकिन, कार्यान्वयन के बाद ही शंकाओं व सवालों का जवाब मिलता है. सुझाव कोई भी दे सकता है. स्थानीय नीति पर कई सुझाव आये हैं. सुझाव झारखंड की जनता के हित में लगेगा, तो सरकार स्थानीय नीति में संशोधन करेगी.
जरूरत पड़ी…
पांच लाख डोभा बनेगा : उन्होंने कहा : दो महीने पानी व बिजली की समस्या विश्व स्तर पर होती है. जल संचय केवल सरकार नहीं, बल्कि सब की जिम्मेदारी है. सरकार इसे झारखंड में आंदोलन का रूप देगी. कृषि विभाग से एक माह में एक लाख डोभा बनायेगी. पूरे वित्तीय वर्ष में कुल पांच लाख डोभा बनाने का लक्ष्य है. निजी के अलावा मनरेगा से भी 50 हजार तालाब बनाया जायेगा.
बोले मुख्यमंत्री
जनहित में होगा सुझाव तो करेंगे बदलाव
जब संविधान में संशोधन हो सकता है, तो स्थानीय नीति में क्यों नहीं
अर्जुन मुंडा ने आपत्ति नहीं की है, बल्कि बधाई दी है
अर्जुन मुंडा ने क्या-क्या दिये हैं सुझाव
1़ यदि किसी व्यक्ति ने अनुसूचित क्षेत्र में किसी तरह धोखाधड़ी से 1985 से पहले जमीन खरीद ली हो, तो उस तरह के लोगों को, मूलवासी को स्थानीय मानना उचित नहीं होगा. सिर्फ कट ऑफ डेट के अनुपालन से सदानों के साथ न्यायोचित निर्णय न होने का खतरा बना रहेगा. इस प्रकार से स्थानीयता प्राप्त करना संविधान के अनुच्छेद 244 के अनुसार भी त्रुटि पूर्ण कहा जायेगा.
2़ स्थानीय नीति जहां एक ओर 1985 या उसके पूर्व में जमीन पर मालिकाना हक दिखानेवालों को स्थानीय मानता है, वहीं दूसरी ओर खतियान की बाध्यता की भी बात कहता है, जो पारस्परिक अंतर्विरोधी है. मूल राज्य के निवासी जहां के खतियानी रैयत हैं-कहीं वे दोनों राज्यों के स्थानीयता का लाभ न ले सकें. इसे सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.
3. जनजातीय और गैर जनजातीय दोनों श्रेणी की जमीन के हस्तांतरण की वैधता सुनिश्चित करना आवश्यक है. गलत तरीके से जमीन पर मालिकाना हक दिखानेवालों को स्थानीयता के लाभ से वंचित रखने की जरूरत है. अन्यथा ऐसे लोग जमीन के साथ-साथ नौकरियों पर भी अपना कब्जा जमा कर निर्दोष और
ठगे गये वास्तविक मालिकों को सारे लाभों से वंचित
करते रहेंगे.
4. वर्तमान स्वरूप में नीति को लागू करने से असली लाभुकों के कानूनी अधिकारों के हनन और न्यायोचित लाभ नहीं मिलने के साथ-साथ कहीं-न-कहीं भारत के संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन होने का खतरा भी बना रहेगा.