मजबूर चिंटू शर्मा से ठग ली उसकी किडनी!

देवघर : कर्ज उतारने के लिए उसके पास कोई चारा नहीं था. इसलिए उसने किडनी बेचने का फैसला कर लिया. लेकिन, उसे क्या पता था कि यह आखिरी विकल्प भी उसे कर्ज-मुक्ति नहीं दिला सकेगा. यह त्रासदपूर्ण कहानी है जमशेदपुर के 40 वर्षीय चिंटू शर्मा की, जो इन दिनों देवघर की सड़कों की खाक छान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 13, 2016 9:44 AM
देवघर : कर्ज उतारने के लिए उसके पास कोई चारा नहीं था. इसलिए उसने किडनी बेचने का फैसला कर लिया. लेकिन, उसे क्या पता था कि यह आखिरी विकल्प भी उसे कर्ज-मुक्ति नहीं दिला सकेगा. यह त्रासदपूर्ण कहानी है जमशेदपुर के 40 वर्षीय चिंटू शर्मा की, जो इन दिनों देवघर की सड़कों की खाक छान रहा है. जिस पवन गुप्ता नामक शख्स को उसने किडनी बेची थी, उसने देवघर का ही पता बताया था. चिंटू का कहना है कि देवघर के नेताजी रोड निवासी पवन गुप्ता ने अपनी पत्नी मंजू देवी के लिए 25 लाख रुपये में किडनी का सौदा किया था. लेकिन, किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद पवन गुप्ता का कोई अता-पता नहीं चल रहा है. अक्सर उसका फोन बंद रहता है.
कभी-कभार अगर फोन लगता भी है तो वह रिसीव नहीं करता. पवन गुप्ता से मिलने के लिए वह पिछले दिनों जमशेदपुर से देवघर पहुंचा, लेकिन बताये गये पते पर पवन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

उसने प्रभात खबर को अपनी पीड़ा बताते हुए मदद की गुहार लगायी है. अपनी व्यथा का जो लिखित पत्र उसने प्रभात खबर को सौंपा है उसके मुताबिक, जरूरी काम के लिए उसने कुछ समय पहले जमशेदपुर के ही एक रसूखदार से कर्ज लिया था. उसका काम नहीं संभला, लेकिन कर्ज की राशि भी खत्म हो गयी. कर्ज चुकता करने के लिये उसके पास कोई उपाय भी नहीं था. इसी बीच किसी अखबार में देवघर के किसी पवन गुप्ता द्वारा दिये गये विज्ञापन पर उसकी नजर गयी. पवन की पत्नी को किडनी की जरूरत थी. जिस ग्रुप का ब्लड उसका था, वही ब्लड ग्रुप चिंटू का भी था. उसने सोचा कि एक-दूसरे को मदद कर काम निकल सकता है. विज्ञापन में दिये नंबर पर संपर्क कर उसने पहल किया. दोनों के बीच सशर्त समझौता भी हुआ. कागजी प्रक्रिया पूरी कर उसने मित्रवत नजदीकी रिश्तेदार का हवाला देते हुए पवन की पत्नी मंजू देवी के लिये वर्ष 2014 में ही रविंद्रनाथ टैगोर अस्पताल, कोलकाता में किडनी डोनेट भी कर दिया. अब चिंटू को लग रहा है कि उसके साथ ठगी हो गयी.
अब स्थिति यह है चिंटू शारीरिक रूप से कमजोर हो गया है. वह कोई भारी काम भी नहीं कर सकता. कर्ज चुकाने के लिए महाजन दबाव बढ़ता जा रहा है. बकौल चिंटू अब उसके पास परिवार के गुजारे के लिए कोई विकल्प भी नहीं रहा. इसलिए उसकी आस पवन गुप्ता पर ही टिकी है. बहरहाल, वह देवघर में एक लॉज में रुक कर पवन को खोज रहा है. लेकिन पवन, इस तरह हवा हो गया है कि लाख कोशिश के बावजूद उसका चिंटू को कोई सुराग नहीं मिल रहा है. बहरहाल, इस प्रकरण ने मानव अंगों के लेनदेन पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है. आखिर इतने कानून व चेकिंग प्वाइंट होने के बावजूद कोई किसी के अंग को ठगने में कैसे कामयाब हो सकता है ?

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