सुहागिनें शिव-पार्वती की पूजा कर लेंगी वरदान
देवघर: भाद्रपद शुक्ल तृतीया, जो इस वर्ष आगामी रविवार(4 सितंबर) को पड़ रहा है, इस दिन हरितालिका (कुछ स्थानों पर हरितालिका भी कहते हैं) तीज व्रत मनाया जाता है. वैसे तो तृतीया तिथि आगामी शनिवार (3 सितंबर) को अपराह्न 3:30 बजे (राष्ट्रीय पंचांग के अनुसार संध्या 5:01 बजे) से आरंभ हो रही है, जो रविवार(4 […]
देवघर: भाद्रपद शुक्ल तृतीया, जो इस वर्ष आगामी रविवार(4 सितंबर) को पड़ रहा है, इस दिन हरितालिका (कुछ स्थानों पर हरितालिका भी कहते हैं) तीज व्रत मनाया जाता है. वैसे तो तृतीया तिथि आगामी शनिवार (3 सितंबर) को अपराह्न 3:30 बजे (राष्ट्रीय पंचांग के अनुसार संध्या 5:01 बजे) से आरंभ हो रही है, जो रविवार(4 सितंबर) को अपराह्न 4:52 बजे (राष्ट्रीय पंचांग से संध्या 6:53 बजे) तक रहेगी, इस प्रकार उदया तिथि व्यापिनी तृतीया तिथि हमें 4 सितंबर को ही प्राप्त हो रही है, इसलिए हमें इसी दिन हरितालिका तीज व्रत करना होगा.
दूसरी तरफ इसी दिन (4 सितंबर) को ही संध्या 4:52 बजे के बाद (राष्ट्रीय पंचांग के अनुसार संध्या 6:54 बजे), चतुर्थी तिथि भी आरंभ हो जा रही है जो सोमवार की संध्या 6:42 बजे तक ही रहेगी. इस प्रकार हमें चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि हमें 4 सितंबर को ही प्राप्त होने के कारण पत्थर चौथ, कलंक चतुर्थी एवं चंद्र दर्शन निषेध भी इसी दिन करना होगा. किंतु गणेशोत्सव सोमवार को मनाया जायेगा, क्योंकि इसी दिन चतुर्थी तिथि सूर्योदय व्यापिनी से लेकर संध्या 6:42 बजे तक रहेगी.
ऐसे करें हरितालिका तीज : व्रती को प्रात: स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए तथा पूरे दिन निर्जला रह कर प्रदोष काल में नवीन वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर नजदीक के शिवालय अथवा परंपरानुसार घर में भगवान शिव एवं माता पार्वती के साथ श्रीगणेश की सविधि पूजन करना चाहिए. परंपरानुसार इस व्रत को एक बार शुरू करने के बाद बीच में बंद नहीं किया जाता.
व्रत करने की विधि : रंगोली बनाकर उस पर फुलेहरा बनायें एवं उस पर चौकी रख लाल कपड़े से ढकें. उसके उपर केले का पत्ता रखकर उस पर मिट्टी या बालू से बनी भगवान शिव, माता पार्वती एवं भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित कर उनकी पंचोपचार अथवा शोड़षोपचार विधि से पूजा करें. माता पार्वती को सारी श्रृंगार सामग्रियां अर्पित करें तथा उसके बाद हरितालिका व्रत की कथा का वाचन या श्रवण करें. इस व्रत में रतजगा का विशेष महत्व महत्व माना गया है. इसलिए व्रती कथा वाचन अथवा गीत आदि गाते हुए रात्रि जागरण करती है. रात के आखिरी प्रहर में व्रती माता पार्वती को सिंदूर अर्पित कर उसी में से सुहाग लेती हैं. मां पार्वती को इसमें नैवेद्य के रूप में खीरा एवं हलवे का भोग लगाया जाता है. व्रती पूजा के पश्चात खीरे का सेवन कर व्रत तोड़ती हैं तथा पूजा की सारी सामग्रियां पास की नदी में प्रवाहित की जाती हैं.
पूजन सामग्री : थाली, पुष्पहार, पीली मिट्टी या बालू, केले के पत्ते, फल, फूल, बेलपत्र, शमीपत्र, धतूरे का फूल एवं फल, आक, फूल, तुलसी की मंजरी, जनेऊ. (माता पार्वती के लिए) सुहाग का जोड़ा, श्रृंगार की सामग्रियां, घृत, चमेली का तेल, दीपक, कर्पूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चंदन, नारियल, कलश, दूध, दही, शहद आदि. चूंकि यह व्रत कुछ क्षेत्रों में प्रात:, मध्याह्न या प्रदोष काल में मनाया जाता है, किंतु इसका सर्वोत्तम काल प्रदोष काल माना जाता है क्योंकि भगवान शिव को यह काल सबसे प्रिय है.