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सीबीएसइ की सीसीइ प्रणाली जमीनी हकीकत से अलग
देवघर : संत जेवियर्स हाइस्कूल देवघर के प्रिंसिपल डीआर सिंह ने कहा कि सीबीएसइ का सीसीइ (सतत व्यापक मूल्यांकन) प्रणाली बहुत ही वैज्ञानिक, उचित और सही पाठ्यक्रम है, लेकिन दुर्भाग्यवश जमीनी हकीकत इससे अलग है. सीबीएसइ ने सीसीइ के क्रियान्वयन के पहले मजबूत ढंग से प्रैक्टिस की थी. मैं भी सीबीएसइ शासी निकाय का सदस्य […]
देवघर : संत जेवियर्स हाइस्कूल देवघर के प्रिंसिपल डीआर सिंह ने कहा कि सीबीएसइ का सीसीइ (सतत व्यापक मूल्यांकन) प्रणाली बहुत ही वैज्ञानिक, उचित और सही पाठ्यक्रम है, लेकिन दुर्भाग्यवश जमीनी हकीकत इससे अलग है. सीबीएसइ ने सीसीइ के क्रियान्वयन के पहले मजबूत ढंग से प्रैक्टिस की थी. मैं भी सीबीएसइ शासी निकाय का सदस्य था. उस वक्त डीएवी जवाहर विद्या मंदिर श्यामली रांची के प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत था. शासी निकाय की बैठक में बोला था कि हमारे लोग परिवक्व नहीं हैं. सही अर्थों में सीसीइ को लागू करने के लिए पर्याप्त अनुभव चाहिए. बावजूद विरोध के बाद भी इसे लागू किया गया था. इस प्रणाली की वास्तविकता है कि बेहतर परिणाम दिखाने के उद्देश्य से अधिकांश स्कूलों में 10 सीजीपीए स्कोरिंग छात्रों का किया जाता है. 10 सीजीपीए प्राप्त करने वाले छात्र उसी विद्यालय में 11वीं में डिटेंट कर जाता है.
यह स्कूल आधारित मूल्यांकन है. ज्यादातर स्कूलों में छात्र-छात्राएं इसे गंभीरता से नहीं लेकर हलके में लेते हैं. सीबीएसइ के गाइड लाइन के अनुसार इसमें सीखने का कोई रास्ता नहीं है. इसमें 91 और 99 अंक प्राप्त करने वाले बच्चों की बीच के योग्यता का माप सही-सही नहीं होता है. व्यक्तिगत आकलन है कि बच्चों के माता-पिता भी ग्रेड सिस्टम को नहीं समझते हैं. इसकी वास्तविकता प्रतिस्पर्धा से काफी दूर है. एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हमेशा बौद्धिक दुनिया, प्रतिस्पर्धी दुनिया अथवा पेशेवर दुनिया से होना चाहिए. माता-पिता भी दैनिक आधार पर लगातार मूल्यांकन करते हैं, इसलिए यह कई बार बहुत व्यस्त व बोझिल हो जाता है. सीसीइ प्रणाली की विवशता है कि वर्तमान में भारतीय स्कूलों में न तो बुनियादी ढांचे मजबूत हैं.
न ही समग्र संसाधन और न ही गतिविधि आधारित मॉड्यूल का संचालन कर रहे हैं. गतिविधियां के नाम पर नकल के लिए इंटरनेट से सामग्रियों को डाउनलोड किया जाता है. सीसीइ प्रणाली सह शैक्षिक प्रदर्शन के आधार पर ग्रेड संवर्धन है. अच्छे व्यवहार, अनुशासन, कलात्मक, सौंदर्य कौशल बच्चों के व्यक्तित्व में जोड़ने के लिए है. लेकिन, उनके संज्ञानात्मक उत्कृष्टता का मापदंड नहीं हो सकता है. अभी प्रतीक्षा करना होगा. यह भारतीय शैक्षिक परिदृष्य के लिए असंगत है.
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