……यूं निकलती है कंघी से गाने की धुन, लोग हो जाते हैं मंत्रमुग्ध
देवघर : सुकून के दो पल की चाहत जब इंसान को होती है तब वह संगीत सुनना चाहता है. संगीत की इसी चाहत ने इंसानों से वाद्य यंत्रों का आविष्कार करवाया. इंसानी सभ्यता जब पनप रही थी, तो उन्हीं दिनों लोगों ने काम के बीच मनोरंजन की तरकीब ढूंढ निकाली. बैलों के गरदन में घंटी […]
देवघर : सुकून के दो पल की चाहत जब इंसान को होती है तब वह संगीत सुनना चाहता है. संगीत की इसी चाहत ने इंसानों से वाद्य यंत्रों का आविष्कार करवाया. इंसानी सभ्यता जब पनप रही थी, तो उन्हीं दिनों लोगों ने काम के बीच मनोरंजन की तरकीब ढूंढ निकाली. बैलों के गरदन में घंटी बांध दी ताकि मधुर ध्वनि उसके कानों तक पहुंचे और कठोर मेहनत के बीच भी मनोरंजन होता रहे.धीरे -धीरे कई वाद्ययंत्रों का आविष्कार हुआ.
इसी फेहरिस्त में शामिल हैं देवघर के धनंजय खवाड़े. धनंजय खवाड़े ने एक ऐसे वाद्ययंत्र का ईजाद कर दिया. जिसका इस्तेमाल आपके और हमारे घरों में बाल झाड़ने के लिए होता है लेकिन आज उनके कंघी से निकले धुन का लाखों लोग मुरीद है. अपने स्कूल के दिनों से ही खास तरह के धुन निकालने के लिए प्रसिद्ध है. धनंजय को कंघी धुन बजाने की प्रेरणा अपने मामाजी से आयी.
अपने इस अनोखे यात्रा के बारे में बात करते हुए धनंजय खवाड़े बताते हैं मेरे मामाजी चाकू और ब्लेड मुंह के बीच में रखकर धुन निकाला करते थे, लेकिन ऐसा करने के लिए संतुलन की आवश्यकता थी. मामा ने ही सलाह दी कि कंघी से कोशिश करों. उस वक्त उन्हें मालूम नहीं था, बचपन की कौतुकता आगे चलकर उनके जिंदगी से इस कदर जुड़ जायेगी कि उन्हें बेशुमार शोहरत दिलायेगी.
अकसर क्लास में खाली वक्त में वो अपने सहपाठियों और शिक्षकों को सुनाया करते थे. धीरे -धीरे यह क्लासरूम से बाहर महफिलों तक पहुंचने लगी. दिल्ली, गोवा, यूपी, बेंगलुरू कई जगहों में अपना कार्यक्रम पेश कर चुके धनंजय खवाड़े को हर जगह संगीतप्रेमियों ने सराहा. देवघर के श्रावणी मेले में हर साल झारखंड सूचना व जनसंपर्क विभाग द्वारा आयोजन में कार्यक्रम पेश करते हैं. अपने इस हुनर की बात करते हुए धनंजय बताते है कि कंठ, तालु और जिह्वा तीनों के समन्वय से गाने की धुन निकालना संभव हो पाता है. संगीत की अनवरत यात्रा आज भी जारी है.
संगीत की दुनिया में एक ऐसे ही शख्स एहसान भारती है. जो 84 तरह की घुंघरू और पायल की आवाज बजाते हैं. खास बात यह कि आवाज घुंघरू की होती है, लेकिन घुंघरू नहीं होती है. एहसान भारती गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं. लोकप्रियता का आलम यह कि एहसान भारती को आज दुनिया घुंघरूवाले से जाने जाते हैं.