सारवां में विभाग से लंबे हैं जंगल माफिया के हाथ!
सारवां : सारवां अंचल क्षेत्र के घोरपरास, घाटघर, वाराकोला, बाघापाथर, पहारिया, रतुरा, बढ़ैता, मृगबांधी, रोशन, एटवा, जियाखाड़ा, बनवरिया, डूबा, डकाय, कल्होड़, देवपहरी, धावाटांड़, बिरांय, मनीगढ़ी, सिरसा आदि अनेक जगहों पर सरकारी जंगल प्रखंड की शोभा में चार चांद लगा देते थे. विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर एवं पक्षियों से गुलजार रहा करते थे। लेकिन अब […]
सारवां : सारवां अंचल क्षेत्र के घोरपरास, घाटघर, वाराकोला, बाघापाथर, पहारिया, रतुरा, बढ़ैता, मृगबांधी, रोशन, एटवा, जियाखाड़ा, बनवरिया, डूबा, डकाय, कल्होड़, देवपहरी, धावाटांड़, बिरांय, मनीगढ़ी, सिरसा आदि अनेक जगहों पर सरकारी जंगल प्रखंड की शोभा में चार चांद लगा देते थे. विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर एवं पक्षियों से गुलजार रहा करते थे। लेकिन अब वन माफियाओं ने इसे बरबादी के कगार पर पहुंचा दिया है. जंगल के सैकड़ों पेड़ काट लिये गये व वन विभाग को इसका पता तक नहीं चला. जंगल की सफाई के कारण कई जंगली जानवर पलायन कर गये या फिर मर गए.
एेसा ही बाघापाथर एवं भालगढ़ा मौजा में लगा हजारों एकड़ में विशाल खैर का जंगल है. यह घाटघर से पहरीडीह मुख्य मार्ग के किनारे था. जंगल इतना घना था कि वहां से लोगों का गुजरना दूभर था. जिस पर माफियाओं की वक्र दृष्टि पड़ गयी और देखते ही देखते दो महीने में 80 फीसदी जंगलों का सफाया हो गया.
शेष बचे जंगलों पर भी माफियाओं की गिद्ध दृष्टि लग गयी है. इसे संरक्षित करने की मांग लोगों ने की है. मिली जानकारी के अनुसार उक्त जंगल के समीप के गांव बाराकोला में वन विभाग का एक प्लांट एवं बीट आॅफिस है. फिर भी जंगल का कटना विभाग की कार्यशैली पर प्रश्न चिह्न खड़ा करता है.