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एक ऐसा बाजार… जहां दुकानों में सिर्फ पेड़ा

करीब 70 साल पहले यहां सिर्फ एक पेड़े की दुकान थी. सुखाड़ी मंडल नामक व्यक्ति अपनी चाय की दुकान के साथ-साथ पेड़ा भी बेचा करते थे. श्रावणी मेला में जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गयी, उस अनुसार घोरमारा में पेड़ा का कारोबार बढ़ता चला गया.

अमरनाथ पोद्दार- देवघर बासुकिनाथ मुख्य पथ पर घोरमारा एक ऐसा बाजार बन कर उभरा है, जहां सिर्फ पेड़े की दुकाने हैं. करीब एक किलोमीटर तक पूरे घोरमारा बाजार में श्रावणी मेला के दौरान 360 दुकान खुली हुई हैं, जबकि अन्य दिनों में 125 दुकानें खुली रहती हैं. श्रावणी मेला में तो यहां रात भर दुकानें खुली रहती हैं. जब आपकी गाड़ी इस मार्ग से गुजरेगी, तो लगेगा शायद कोई बड़ा शहर है, लेकिन दरअसल यह एक छोटा सा गांव है. बाजार के पीछे खेत -खलियान नजर आयेंगे. घोरमारा की पूरी अर्थव्यवस्था पेड़े के बाजार पर टिकी हुई है. करीब ढाई हजार आबादी वाले घोरमारा गांव के 80 फीसदी लोग पेड़े के कारोबार से जुड़े हैं. अनुमान के अनुसार श्रावणी मेला के दौरान घोरमारा बाजार में करीब 110 करोड़ रुपए के पेड़े का कारोबार होता है, जबकि अन्य दिनों में भी यहां पेड़ा का काफी अच्छा कारोबार है.

बताया जाता है कि करीब 70 साल पहले यहां सिर्फ एक पेड़े की दुकान थी. सुखाड़ी मंडल नामक व्यक्ति अपनी चाय की दुकान के साथ-साथ पेड़ा भी बेचा करते थे. श्रावणी मेला में जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गयी, उस अनुसार घोरमारा में पेड़ा का कारोबार बढ़ता चला गया, लेकिन पिछले 15 वर्षों के दौरान यहां तेजी से 100 से अधिक स्थायी दुकानें खुल गयी. बताया जाता है कि यहां पेड़ा बनाने में देसी खोआ का इस्तेमाल अधिक होता है. श्रावणी मेला के दौरान देसी खोआ कम पड़ जाने पर बिहार, बंगाल और यूपी से मंगवाया जाता है. घोरमारा में इस पेड़े के कारोबार की वजह से श्रावणी मेला में करीब 3,000 मजदूरों को रोजगार मिल रहा है, जबकि अन्य दिनों में करीब 1,000 मजदूरों को रोजगार मिलता है. यह मजदूर खोआ की भुनजाई से लेकर पेड़ा बनाने तक काम करते हैं.आसपास के करीब 15 गांव के लोग घोरमारा के पेड़ा कारोबार से लाभान्वित हो रहे हैं.

पेड़ा का इको फ्रेंडली पैकिंग भी आकर्षण का केंद्र

इस मार्केट में सबसे खासियत है कि आधुनिकता के इस दौर में मिठाई की तरह प्लास्टिक और डिजाइनदार पैकिंग पेड़ा की नहीं होती है, बल्कि आज भी 80 फ़ीसदी पेड़ा बांस से निर्मित टोकरी और पत्तल में पैक कर दिया जाता है. इस इको फ्रेंडली पैकिंग में पुरानी परंपरा के अनुसार यहां पेड़ा खरीदारी करने वाले ग्राहकों को अलग-अलग वजन के अनुसार बांस की टोकरी और सखुआ के पत्तल से पेड़ा को पैक कर ग्राहकों को दी जाती है, जिससे स्थानीय कुटीर उद्योग को भी बढ़ावा मिल रहा है और इससे जुड़े गरीब परिवारों को रोजगार मिल रहा है .बासुकिनाथ की पूजा- अर्चना कर लौटने वाले अधिकतर श्रद्धालु घोरमारा बाजार में रुक कर पेड़ा की खरीदारी करना नहीं भूलते हैं.

इस छोटे से गांव को बाजार के रूप में विकसित करने के लिए स्थानीय लोग भी शुद्धता को बनाए रखने पर जोर देते हैं. इस बाजार की वजह से केवल सरकार को जीएसटी और आयकर ही नहीं, बल्कि बिजली विभाग, खाद्य सुरक्षा विभाग , माप तौल विभाग को भी राजस्व प्राप्त हो रहा है. दुकानों में कमर्शियल बिजली कनेक्शन के साथ-साथ फूड सेफ्टी लाइसेंस और माप तोल विभाग से लाइसेंस प्राप्त करने में सरकार को सालाना काफी राजस्व मिल रहा है. ग्रामीण क्षेत्र होने की वजह से यहां सफाई की व्यवस्था बाजार के दुकानदारों को खुद करनी पड़ती है. श्रावणी मेला के दौरान प्रत्येक दिन यहां मजदूर के माध्यम से बाजार की सफाई की जाती है. कई दुकानदारों ने तो ग्राहकों के लिए निशुल्क शौचालय की भी व्यवस्था की है.

महिलाएं भी चला रही दुकाने

घोरमारा बाजार में पेड़ा का व्यवसाय बढ़ने के साथ ही गांव की महिलाएं भी इस कारोबार में अपने पति का साथ दे रही है.कई दुकानों में महिलाएं खुद काउंटर संभाल रही है, जबकि अन्य दुकानों में खोवा की खरीदारी से लेकर पेड़ा तैयार करने और मजदूरों के भुगतान का हिसाब- किताब रखने का काम महिलाएं कर रही हैं. अपने चूल्हा-चौकी संभालने के साथ-साथ महिलाएं सही तरीके से बिजनेस को भी संभाल रही है, जिस कारण से यह व्यवसाय तेजी से आगे बढ़ रहा है.

घोरमारा के पेड़ा की जीआई टैगिंग और पेड़ा कलस्टर बनाने का प्रस्ताव

देशभर में घोरमारा की सोंधी खुशबू वाले पेड़े की डिमांड को देखते हुए राज्य सरकार ने भी घोरमारा के पेड़े को जीआई टैगिंग का प्रस्ताव भेजा है. साथ ही घोरमारा में बढ़ते पेड़ा के बाजार को विस्तार करने के लिए सरकार ने यहां पेड़ा कलस्टर और जिला परिषद ने पेड़ा मार्केट कॉम्प्लेक्स बनाने का भी निर्णय लिया है. सरकार की इन योजनाओं पर विभागीय प्रक्रिया चल रही है, जिससे यहां के पेड़ा की ब्रांडिंग सरकारी स्तर पर भी आने वाले समय में हो सकती है. छोटे से एक गांव में बड़ा मार्केट डेवेलप होने पर सरकार को भी जीएसटी और आयकर के माध्यम से बड़े पैमाने पर टैक्स भी प्राप्त हो रहा है.

घोरमारा बाजार में कई पेड़ा कारोबारी जीएसटी व इनकम टैक्स का भी भुगतान करते हैं. इससे देश की अर्थ व्यवस्था में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं. देशभर में डिमांड होने की वजह से ऑनलाइन मार्केटिंग में भी घोरमारा के पेड़ा अपना दबदबा बना रहा है. जिला प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे देवघर मार्ट के जरिए देश के कई राज्यों में घोरमारा का पेड़ा सप्लाई हो चुका है. बेंगलुरु, दिल्ली, कोलकाता व बिलासपुर आदि इलाके में घोरमारा का पेड़ा देवघर मार्ट के जरिए ऑनलाइन आपूर्ति की जाती है.

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