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श्रावणी मेले में एक महीना बाकी और अभी से तैयार हो रहा मिलावटी खोवा

श्रावणी मेले की शुरुआत 22 जुलाई से है, लेकिन मेला शुरू होने के एक महीना पहले ही घोरमारा के पेड़ा बाजार में मिलावटी खोवा तैयार होने लगा है.

मिलावट के लिए पाउडर दूध व लोथ का बड़ा स्टॉक पहुंचा घोरमारा

संवाददाता, देवघर

पिछले कई श्रावणी मेला में फूड सेफ्टी की टीम मिलावटी खाद्य सामग्री के मामले में छापेमारी कर कार्रवाई के नाम खानापूर्ति करती रही है, लेकिन ठोस नतीजा अब तक नहीं निकला. श्रावणी मेले की शुरुआत 22 जुलाई से है, लेकिन मेला शुरू होने के एक महीना पहले ही घोरमारा के पेड़ा बाजार में मिलावटी खोवा तैयार होने लगा है. एक महीने के बाद इस मिलावटी खोवा का पेड़ा तैयार कर ग्राहकों को परोसा जायेगा. घोरमारा में कई बड़े-बड़े दुकानों में पाउडर दूध की बड़ी खेप सहित लोथ ट्रकों से मंगवाये गये हैं. कैंपस में ही पाउडर दूध व लोथ को मिलकर मशीन से खोवा तैयार किया जा रहा है. यह सस्ती दरों वाले पाउडर दूध देवघर, दुमका सहित रांची व पटना से ट्रकों से मंगवाये जा रहे हैं. पहले पश्चिम बंगाल के कांदी, ब्रह्मपुर, बड़हिया आदि जगहों सिंथेटिक दूध से तैयार पाउडर को सावन में मंगवाया जाता था, लेकिन इस वर्ष सिंथेटिक दूध का पाउडर मंगवाकर घोरमारा में ही खोवा तैयार किया जा रहा है. बताया जाता है कि लो ग्रेड के एक किलो के पाउडर दूध से दो से ढाई किलो खोवा तैयार किया जा रहा है. इसमें लोथ की मिलावट भी होती है. यह लोथ बगैर मठ्ठा वाला खोवा व सफेद पाउडर रहता है, जिसे मिलाकर तैयार किया जाता है. लोथ अधिकांश झांसी, ग्वालियर, बनारस आदि इलाके से मंगवाये जा रहे हैं. लोथ एक तरह से सूखा रहता है, जिसे तीन-चार महीना पहले ही कई बड़े दुकानों में स्टॉक कर लिया गया है. लोथ व पाउडर दूध से मठ्ठा पूरी तरह निकाल लिया जाता है, इसे आग में भूनकर मिला लिया जाता है, उसके बाद श्रावणी मेला नजदीक आने पर चीनी मिलाकर पेड़ा तैयार किया जाता है.

रोक के बाद भी पेड़े में रिफाइन तेल का प्रयोग

बताया जाता है कि मिलावटी पेड़े में पानी का अंश आने पर खराब होने की संभावना रहती है, इसलिए इसे भूनने में रिफाइन तेल का प्रयोग होता है. घोरमारा कई बड़े दुकानों में ट्रकों से रिफाइन तेल भी मंगवाकर प्रयोग किया जा रहा है, जबकि फूड सेफ्टी एक्ट के अनुसार पेड़ा बनाने में शुद्ध देशी खोवा व चीनी का प्रयोग करना है, इसमें रिफाइन तेल का भी प्रयोग नहीं करना है. इस मिलावट से प्रति किलो 100 से 150 रुपये की बचत होती है. इसे तैयार करने में मशीन सहित मजदूर काफी लगते हैं. छोटे दुकानदार इसका प्रयोग नहीं कर पाते हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर यह कारोबार घोरमारा में अभी से चलने लगा है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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