Jharkhand News: देवघर जिला अंतर्गत मधुपुर प्रखंड क्षेत्र के कई गांव के बेरोजगार और किसान पारंपरिक खेती से अलग हटकर इनदिनों रेशम कीट का पालन कर अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं. इससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है. प्रखंड क्षेत्र के सलैया, लोहराजोर, कालीपहाडी, मोहनाडीह, चेचाली, जीतपुर, लफरीटांड, रघुनाथपुर, जावागुढ़ी आदिवासी बाहुल्य गांवों के सैंकड़ों किसान और बेरोजगार युवक तसर कीट का पालन कर रहे हैं.
जुलाई और दिसंबर के महीने में पेड़ों से निकाला जाता है कोकून
मधुपुर स्थित बुनियादी बीज प्रगुणन एवं प्रशिक्षण केंद्र रेशम बोर्ड के अधिकारी सी सिलवराज ने बताया कि इलाके के अधिकतर किसान सिर्फ वर्षा आधारित खेती पर ही निर्भर थे, जिससे उनकी आमदनी काफी सीमित थी. लेकिन, अब पिछले कई वर्षों से विभाग द्वारा कोकुन पालन के लिए दिये गये प्रशिक्षण के बाद क्षेत्र में जागरूकता आयी है और इससे आमदनी बढ रही है. उन्होंने बताया कि साल में जुलाई और दिसंबर के महीने में पेड़ों से कोकून निकाला जाता है. मधुपुर स्थित उनलोगों के कार्यालय द्वारा सूचना निकाल कर खरीदारी की जाती है.
कोकून बेच कर 45 हजार की हुई अतिरिक्त कमाई
कारीपहाडी के किसान पूरन मुर्मू ने बताया कि पहले वे सिर्फ धान की खेती करते थे और उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब रहती थी, जिसके बाद मधुपुर के तसर विभाग के संपर्क में आये और कोकुन उत्पादन की जानकारी और प्रशिक्षण लेकर खेती में लग गये. बताया कि इस साल नौ हजार कोकुन का उत्पादन किये हैं, जिससे 45 हजार की कमाई हुई है. उनको देखकर कई और लोग भी इस खेती से जुडकर अपनी आय बढ़ा रहे हैं.
कैसे तैयार होते हैं कोकून
किसान मधुपुर स्थित बुनियादी बीज ब्रिडिंग सेंटर से कीट का अंडा ले जाते हैं. इसके बाद उससे निर्धारित समय के बाद कीड़े निकलते है. उन कीड़ों को अर्जुन एवं अन्य पेड़ों में छोड़ दिया जाता है. यही कीड़े पेड़ों की पत्तों को खाकर पेड़ में ही 30-35 दिन में कोकून बनाते हैं और कोकून के अंदर कीड़े चले जाते हैं, जिसके बाद उसकी छंटाई कर मधुपुर स्थित कार्यालय या सीधे व्यापारी को बेच देते हैं.