बाबा बैद्यनाथ के पंचशूल का तीसरा मंत्र- मृत्युंजय मंत्र, जिसे जानकर मनुष्य अमृत हो जाता है
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल शिव-तत्व के वाहक पांच महामंत्रों को बतलाता है. तत्वमसि मंत्र, गायत्री मंत्र, मृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र और चिंतामणि मंत्र. इसमें तत्वमसि मंत्र और गायत्री मंत्र की चर्चा पिछले अंक में हो चुकी है. आज हम मृत्युंजय मंत्र की चर्चा करेंगे.
डॉ मोतीलाल द्वारी. बाबा बैद्यनाथ मंदिर का पंचशूल जिन पांच मंत्रों का उल्लेख करता है, उसका तीसरा मंत्र मृत्युंजय मंत्र है. इस मंत्र का सीधा अर्थ है, मृत्यु को जीतने वाला मंत्र. ऐसा मंत्र जो ज्ञान करा दे कि कोई मृत्यु है ही नहीं. मृत्यु एक भ्रम है, धोखा है, अज्ञान है. ऐसा मंत्र, जो मन पर प्रभाव डालकर उसे मृत्यु-भय से त्राण दिला दे, ज्ञान करा दे कि घबराओ नहीं, तुम मरने वाले नहीं हो, तुम अमर हो. इस मंत्र को जानकर मनुष्य अमृत हो जाता है-
ज्ञात्वा देवं अमृता भवति, ‘गीता में भगवान ने कृष्ण इसे इस प्रकार समझाया’
”देहिनोअस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तर प्राप्तिर्धीर स्तत्र न मुहयति ।।
बाल्यावस्था से किशोरावस्था, किशोरावस्था से युवावस्था, युवावस्था से बुढ़ापा आने पर शरीर बदल जाता है, पूर्व शरीर की मृत्यु हो जाती है. किंतु वह प्राप्त नये शरीर में जीवित ही रहता है, मात्र शरीर में परिवर्तन होता है. ठीक इसी तरह बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापा में क्रमश: शरीर में परिवर्तन होते चलता है. जब शरीर की मृत्यु हो जाती है, तब भी पूर्व गणित के अनुसार शरीर में ही परिवर्तन हुआ है, मृत्यु हुई नहीं है. वह व्यक्ति जिसे मृत समझा जा रहा है, तब भी किसी विशेष देह में जीवित ही रहता है. यही मृत्यु का सत्य है. मृत्यु भ्रम है, धोखा है, अज्ञान है. सभी जानने वाले इससे सहमत हैं. यह मृत्युंजय मंत्र आपको उसी जानने वाले की श्रेणी में ले जाने वाला मंत्र है. यह मृत्युंजय मंत्र मृत्यु पर विजय दिला देता है. मृत्यु भय से रहित हो जाते हैं. यह मृत्युंजय मंत्र जीव को मृत्यु पर विजय दिलाकर मृत्युंजय शिव के समीप लाकर खड़ा कर देता है. वह मृत्युंजय शिव स्वरूप ही हो जाता है.
श्रुति में ”हंस” शब्द जीवात्मा के लिए आता है. इस ”हंस” पद में तीन वर्ण हैं. इन तीनो में जो ”अ” है, वह पंद्रहवें अनुस्वार और सोलहवें विसर्ग के साथ है. सकार के साथ जो ”अ” है वह विसर्ग सहित है. वह यदि सकार के साथ ही उठकर ”हं” के आदि में चला जाय तो ”हंस” के विपरीत ”सोअहम्” यह महामंत्र हो जाता है. इसमें जो सकार है, शिव का वाचक है. शक्त्यात्मक शिव ही इस महामंत्र के वाच्यार्थ हैं, ऐसा जाननेवालों का निर्णय है. गुरु जब शिष्य को इस महामंत्र का उपदेश देते हैं, तब ”सोअहम” पद से उसको शक्त्यात्मक शिव को ही बोध करना अभीष्ट होता है. यानि वह शिष्य यह अनुभव करे कि मैं शक्त्यात्मक शिव रूप हूं. इस प्रकार जब यह महामंत्र जीवपरक होता है, तब जीव अपने को शक्त्यात्मक शिव के साथ अपनी एकता सिद्ध हो जाने से शिव की समता का भागी हो जाता है. पाशबद्ध जीवात्मा पाश मुक्त शिव स्वरूप हो जाता है.
ज्ञात्वा देवं मुच्चते सर्वं पाशै:
इस सत्य की अनुभूति कर आदि शंकराचार्य कहते हैं- न मेरा जन्म हुआ, न बुढ़ापे ने घेरा और न मेरा नाश ही हुआ. प्राकृत धर्म शरीर के ही कहे गये हैं. कर्तृत्वादि धर्म अहंकार के ही हैं, चिन्मय आत्म तत्व के नहीं. मैं तो शिव स्वरूप हूं. (अद्वैत पंचरत्नम्).
मृत्युंजय मंत्र की उपलब्धि यही है. जीवात्मा को मृत्यु पर विजय दिलाकर मृत्युंजय शिव स्वरूप बना देना. ”हंस” को ”सोअहम” में बदल देना. ”सोअहम” में प्रणव ओंकार शिव ही पद्दन्न रूप में स्थित हैं. ”सोअहम” पद में सकार और हकार लुप्त होने से ”ओम” शब्द ही निकल आता है. ”ओमिति ब्रह्म” इसी को श्वेताश्वततरोपनिषद् रुद्र कहता है. मृत्युंजय मंत्र जानकर जीवात्मा शिव स्वरूप होकर मृत्यु को जीतकर परम शांति को उपलब्ध हो जाता है. मृत्युंजय मंत्र के माध्यम से बाबा बैद्यनाथ से योग होने पर जीवात्मा योगाग्निमय शरीर को प्राप्त कर लेता है. तब जीवात्मा रोग, जरा और मृत्यु भय से रहित हो जाता है.
”न तस्य रोगोन जरा न मृत्यु प्राप्तस्य योगाग्नि मयं शरीरम्”. सभी ग्रह प्रतिकूल होकर यदि प्राणी को पीड़ित करता है, तो एकमात्र मृत्युंजय मंत्र से मृत्युंजय का ज्ञान मिलता है. बाबा बैद्यनाथ मंदिर का पंचशूल पांच महामंत्रों का संकेत देकर मृत्युंजय की महत्ता का उल्लेख करता है.
नोट : पंचाक्षर मंत्र जानकारी अगले अंक में दी जाएगी, बने रहे प्रभात खबर के साथ…
(लेखक डॉ मोतीलाल द्वारी, शिक्षाविद् सह हिंदी विद्यापीठ के पूर्व प्राचार्य हैं)