देवघर : बाबा बैद्यनाथ की धरती देवघर और माता पार्वती की धरा मिथिला के बीच का सदियों से चला आ रहा रिश्ता आज भी दोनों ही स्थलों को एक-दूसरे से जोड़ कर रखा हुआ है. भोलेनाथ से मिथिला के महाराज दक्ष की पुत्री माता पार्वती से विवाह के बाद से ही मिथिला के लोग खुद को बाबा का सार (साला) मानते हैं. इसी रिश्ते और परंपरा को निभाते हुए आदिकाल से मिथिलांचल के लोग बसंत पंचमी पर बाबा का तिलक चढ़ाने बैद्यनाथ की नगरी देवघर आते हैं. इन्हें तिलकहरुआ भी कहा जाता है. मौनी अमावस्या से ही जत्थे में तिलकहरुओं का बाबाधाम आने का सिलसिला जारी हो जाता है. इस बार बसंत पंचमी 14 फरवरी को है. इस दिन भोलेनाथ की तिलक पूजा होगी. इसे लेकर तिलकहरुओं का भी बाबाधाम में आगमन प्रारंभ हो गया है. पूरे मिथिला में फाग गीत एवं होली की शुरुआत हो जायेगी. दोनों ही जगहों के संबंधों की यह परंपरा आज तक जारी है. मिथिलावासी एक महीने पहले पारंपरिक कांवर लेकर घर से पैदल ही निकलते हैं और मौनी अमावस्या के अवसर पर सुल्तानगंज पहुंच कर जल भर कर कांवर लेकर पैदल बाबानगरी के लिए निकलते हैं. देवघर आने के बाद ये लोग सबसे पहले बाबा मंदिर पहुंचते हैं. उसके बाद परिसर स्थित मंदिरों की परिक्रमा करते हैं. बाबा, मां पार्वती, काल एवं आनंद भैरव की मंदिर में पूजा करने के बाद बासुकिनाथ में जाकर पूजा करते हैं.
कांवरियों के अनुसार, घर से निकलने वाली पैदल कांवर यात्रा भोले शंकर के तिलक को सादगी की तरह जीवन बिताने के साथ करने की परंपरा है. भोलेनाथ जिस तरह खुले आसमान में रहते हैं उसी तरह उनके संबंधी में उनके जैसे ही रहकर उनकी पूजा में शामिल होते हैं, इसलिए ये लोग खुल आसमान में रहकर पूजा करते हैं.
बाबा के दरबार में आने वाले सभी तिलकहरुए एक समान
बाबा के दरबार आने वाले तिलकहरुओं में किसान ही नहीं, डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर छोटे से लेकर ओहदेदार पोस्ट वाले और गरीब से लेकर अमीर हर वर्ग के लोग होते हैं. लेकिन, यहां सभी एक समान सामान्य भक्त की तरह जत्थे में पहुंचते हैं. सभी का अपना-अपना जत्था और इसमें एक खजांची यानी कोषाध्यक्ष होता है. सामूहिक भोजन, पूजा एवं ठहराव स्थल पर होने वाले खर्च का हिसाब-किताब रखना और सभी से पैसे इकठ्ठा करना तथा ग्रुप की हर परेशानी को अपनी तरह से हैंडिल करना खजांची का ही दायित्व होता है. ये लोग बाबा नगरी में मुख्य रूप से सर्राफ स्कूल, आर मित्रा, बीएड कॉलेज, कबूतर धर्मशाला, पशुपालन विभाग परिवहन विभाग, क्लब ग्राउंड जैसे अन्य जगहों में रहते हैं.
बाबा मंदिर के इस्टेट पुरोहित श्रीनाथ पंडित बताते हैं कि, बाबा भोले नाथ की शादी महाशिवरात्रि के दिन हुई थी. इसके पहले कन्या पक्ष की ओर से बाबा की तिलक पूजा हुई थी. तब से मिथिलावासियों के लिए भोलेनाथ आराध्य देव हो गये. बाेलचाल की भाषा में भी लोग बाबा का ही नाम लेते हैं. कन्या पक्ष होने के नाते और बसंत पंचमी के शुभ दिन पर तिलक पूजा की परंपरा का निर्वहण करने लिए तब से आजतक ये लोग कांवर यात्रा कर इस पूजा में शामिल होने के आते रहे हैं. हर साल लोग पुश्तैनी परंपरा का निर्वहन करने के लिए आते हैं.
भैरव पूजा के बाद होगा यात्रा का समापन
तिलक पूजा के लिए घर से निकले इन तिलकहरुए के लिए हर दिन खास होता है. रास्ते भर ये लोग पूरे नियम से यात्रा करते हैं. रात में एक बार भोजन बनता है. इसके पहले रास्ते में भैरव की पूजा होती है. इन लोगों का मानना है कि इस महायात्रा को सफल बनाने में भैरव की खास कृपा होती है. भैरव भी भोलेनाथ का ही रूप है. हर ज्योर्तिलिंग में बाबा के आने के पहले भैरव आये और भक्तों को संरक्षित करने की जिम्मेदारी उठायी तब भोलेनाथ आए. पूजा करने के बाद सभी कांवरियों का अलग-अलग जत्था अपने आवासन स्थल पर भैरव की विशेष पूजा करने के बाद गुलाल अर्पित करने के बाद एक-दूसरे को लगाने के उपरांत यात्रा को संपन्न कर लौटते हैं.
तिलक पर चढ़े गुलाल से नवविवाहित जोड़ों की पहली होली होगी शुरू
बसंत पंचमी के दिन भैरव पूजा के बाद से ही मिथिलांचल की होली प्रारंभ हो जायेगी. बसंत पंचमी के दिन बाबा बैद्यनाथ पर जलार्पण करने के बाद सभी अपने ठहराव स्थल पर पहुंचेगे, जहां भैरव पूजा के दौरान भैरव को गुलाल अर्पित कर प्रिय भोग लड्डू चढ़ाने के बाद ढोल एवं करताल की भी पूजा होगी. इसके साथ ही एक-दूसरे को गुलाल लगाकर फाग की गीत प्रारंभ हो जायेगा, जो फाल्गुन मास में होली के दिन तक जारी रहेगा. बाबा एवं भैरव पर अर्पित गुलाल को ये लोग अपने साथ घर ले जायेंगे. वहां पर मिथिला की प्राचीन परंपरा में शामिल कुजाग्रा होगा. इसमें नव विवाहित जोड़े जिनके शादी के बाद पहली होली होगी. दोनों को यह गुलाल लगाकर होली शुरू की जायेगी. बसंत पंचमी पर होगी बाबा की विशेष पूजा. बुधवार को बसंत पंचमी के दिन अहले सुबह बाबा मंदिर खुलने के बाद दैनिक कांचा जल पूजा शुरू होगी. फिर, सरदारी पूजा के बाद आम भक्तों के जलार्पण के लिए मंदिर का पट खोल दिया जायेगा. शाम में मंदिर का पट शृंगार पूजा के लिए खाेला जायेगा. यह पूजा दो भाग में होगी. पट खुलने के बाद शिवलिंग को मलमल के कपड़े से पोंछने के बाद बाबा मंदिर महंत सरदार पंडा श्रीश्री गुलाब नंद ओझा बाबा को फूले लगायेंगे. इसके बाद बाबा की शृंगार पूजा रोक कर लक्ष्मी नारायण मंदिर में तिलक पूजा का आयोजन होगा. यहां बाबा मंदिर उपचारक भक्ति नाथ फलहारी की देखरेख में आचार्य मंदिर के इस्टेट पुरोहित श्रीनाथ पंडित ओझा जी को बाबा की तिलक पूजा करायेंगे. विशेष पूजा कर आरती आदि के उपरांत गुलाल अर्पित कर ओझा जी शृंगार पूजा के लिए गर्भगृह प्रवेश करेंगे. यहां पर बाबा को चंदन आदि लगाने के बाद बाबा को गुलाल चढ़ाया जायेगा. गुलाल चढ़ाने की यह परंपरा होली फाल्गुन मास पूर्णिमा तक जारी रहेगी.
भारी मात्रा में चढ़ेगा मोतीचूर का लड्डू एवं देशी घी
बसंत पंचमी के दिन बाबा मंदिर की ओर से बाबा एवं काल भैरव को मोतीचूर लड्डू का विशेष भोग लगाया जायेगा. तिलकहरुए भी बाबा पर लड्डू का भोग अर्पित करेंगे. रात करीब दस बजे तक उबटन के रूप में देशी घी चढ़ायेंगे. बाबा पर अर्पित घी को उठाने के लिए ड्रम रखा जाता है. बाबा के गर्भगृह सहित परिसर स्थित सभी मंदिरों के गर्भगृह में अखंड दीप को जलाने में इसी घी का उपयोग किया जाता है. इस दौरान इतना घी जमा हो जाता है कि, पूरे साल तक मंदिर में दीप जलाने के लिए घी की कमी नहीं होती है.
कतार के लिए की गयी बैरिकेडिंग, 500 रुपये होगी शीघ्रदर्शनम कूपन की दर
बाबा मंदिर में आये तिलकहरुए को सुलभ जलार्पण कराने के लिए बाबा मंदिर एवं जिला प्रशासन ने चुस्त व्यवस्था कर रखी है. बसंत पंचमी के दिन के लिए बड़ी तादाद में पुलिस बल की तैनाती कर दी गयी है. कतार मैनेजमेंट के लिए पंडित शिवराम झा चौक तक बैरिकेडिंग कर दी गयी है. वहीं, शीघ्र दर्शनम का लाभ लेने वाले भक्तों को बेहतर सुविधा देने के उद्देश्य से अलग से एक होल्डिंग प्वाइंट सुविधा केंद्र में तैयार किया गया है. इस दिन शीघ्रदर्शनम कूपन की भी दिर 500 रुपये प्रति श्रद्धालु रखी गयी है. मंदिर परिसर में कांवर रखने नहीं देने पर चल रही चर्चा. हर बार कांवरिये बसंत पंचमी के दौरान जलार्पण करने तक कांवर को बाबा मंदिर परिसर में ही रख देते हैं. कांवर की वजह से आम लोगों को एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक जाने में हो रहे परेशानी को देखते हुए मंदिर प्रशासन ने कांवर को मंदिर में रखने नहीं देने की व्यवस्था पर चर्चा की है. इसके लिए तैयारी भी चल रही है. मिल रही जानकारी के अनुसार, इस संबंध में अंतिम समय में ही निर्णय लिया जायेगा.
बाबा मंदिर में खास कर मिथिला ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार के भक्तों का खास लगाव है. यहां 12 महीने सबसे अधिक बिहार से आये भक्तों की भीड़ होती है. लेकिन, बाबा नगरी में बसंत पंचमी का उत्सव ही अलग है. ये लोग तिलक पूजा के लिए आते हैं और बाहर ही रहते . आने की सूचना हमलोगों को देते हैं और जाते समय मिलकर दक्षिणा देकर जाते हैं.
मुन्ना मिश्र, पुरोहित
तिलकहरुए हर साल बसंत पंचमी पर आते हैं. ये लोग साधारण वेश में जरूर होते हैं, लेकिन इनमें से अधिकतर लोग शिक्षित होते हैं और अपने पूर्वजों की परंपरा का निर्वहण करने के लिए आजतक बसंत पंचमी पर देवघर आते हैं. ऐसा कोई परिवार नहीं है जिसके सदस्य इस यात्रा में शामिल नहीं हो रहे हैं.
बांके द्वारी
हमारा परिवार मिथिलांचल का पंडा है. हमलोग हर साल इस मेले में पूरी तरह से व्यस्त रहते हैं. मेरा पूरा घर इन कांवरियों से भरा रहता है. इनके साथ आये लोग सर्राफ स्कूल में रहते हैं. ये लोग पूजा करने के बाद भैरव पूजा के समय अपने पंडा को बुलाकर ले जाते हैं और वहीं पर आशीर्वाद लेने के बाद दक्षिणा देते हैं. इस समय ये लाग बाबा के साले के तौर पर रहते हैं. गजानंद पंडा
इस मेले में आने वाले कांवरिये नहीं बाबा के तिलकहरुए होते हैं. इनका मेले से खानदानी संबंध है. इसमें अधिकतर कांवरिये खुद से पूजा करने के बाद ही पुरोहितों से संपर्क कर आने की सूचना के बारे में बताते हैं. अंत में जाने के समय पुरोहित काे दान-दक्षिणा देने के बाद घर पर आने का निमंत्रण देते हैं. जयानंद खवाड़े, दानी पंडा