क्रांतिकारी सखाराम गणेश देउस्कर की 155वां जयंती आज
स्तभंकार पंडित सखाराम गणेश देउस्कर पर सटीक बैठता
करौं. ” शोक सिंधु में डूब न रहना, रखना मन में भारी धीर,
” वही वीर जननी का जाया, हरै सदा जो उसकी पीरये कथन भारत भूमि के स्वतंत्रता के ओत-प्रोत भाव-भावनाओं में समर्पित करने वाले क्रांतिकारी, पत्रकार, लेखक व स्तभंकार पंडित सखाराम गणेश देउस्कर पर सटीक बैठता है. सखाराम गणेश देउस्कर को करौं ग्रामवासी प्यार से सखाराम बाबू कहकर बुलाते थे. इनका जन्म 17 दिसम्बर 1869 ई को देवघर जिले के चर्चित गांव करौं ग्राम में हुआ था. इनके पूर्वज मराठी मूल के थे. महाराष्ट्र के देउस गांव इनके परिवार रहते थे. कालान्तर में अठ्ठारह सदी में मराठा का सविस्तार के फलस्वरूप सखाराम बाबू के सपरिवार करौं ग्राम आकर बस गये. बताया जाता है कि सखाराम जब पांच वर्ष के थे तभी इनकी माता का देहान्त हो गया. इनका लालन-पालन-पोषण उनकी बुआ ने बड़ी जतन से किया. उनकी उपदेश से प्रेरण ग्रहण करते वेद-पुराण, दर्शन, इतिहास, राजनीति शास्त्र आदि पुस्तकों का गहन अध्ययन किया. इनके राजनीतिक गुरु बाल गंगाधर तिलक थे. सखाराम बाबू देवघर स्थित आर मित्रा विद्यालय से 1891 ई. मैट्रिक पास कर इसी विद्यालय में शिक्षक के पद पर 1893 में आसीन हुए. अध्यापन के साथ राजनैतिक व सामाजिक गति-विधियों पर चिंतन-मनन करते रहे. क्रांतिकारी राजनारायण बसु से रिश्ता बना. अपनी अभिव्यक्ति को प्रकट करते के लिए बंगला की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं आलेख लिखते थे. उल्लेखनीय है कि 1894 ई हार्ड नामक अंग्रेज मजिस्ट्रेट देवघर में उनके अत्याचारों से लोग परेशान थे. सखाराम बाबू नियमित हार्ड के खिलाफ लिखते थे. हितवादी पत्रिका लेख कारण स्कूल से निकालने की धमकी दी. उन्होंने शिक्षक पद त्यागपत्र देकर कोलकत्ता आकर हितवादी पत्रिका जुड़ गये. 1907 में सूरत में कांग्रेस के अधिवेशन को लेकर हितवादी के मालिक ने सखाराम बाबू को गरम दल व तिलक के विरुद्ध सम्पादकीय लिखने का आदेश दिया. वे इनकार करते हितवादी से त्याग पत्र देकर कलकत्ता के ही राष्ट्रीय शिक्षा परिषद में योगदान किये. इतिहास के बतौर शिक्षक पद ग्रहण किया. वे अरविन्द घोष सरेखे लोगों के रहकर कई पुस्तकों का प्रकाशन किया. 1904 ई. दशेर कथा पुस्तक बंगला में प्रकाशित होने से अंग्रेज सरकार को झकझोर कर रख दिया. पुस्तक में ब्रिटिश सरकार के अत्याचार, शोषण, अन्याय का आलेख है. अंग्रेज सरकार ने इस पुस्तक जब्त कर लिया. सखाराम बाबू करौं स्थित आवास शिशु मंदिर चलया, वहीं छात्र-छात्राये नियमित से पढ़ते हैं. वहीं फिलहाल सखाराम/ जयप्रकाश पुस्तकालय की स्थापना की गयी. देउस्कर चौक स्थित सखाराम बाबू की एक प्रतिमा स्थापित है. स्वराज्य के लिए सखाराम बाबू कठिन से कठिन संघर्ष करते रहे. ऐसे क्रांतिकारी से सदैव हमें प्रेरणा मिलती है.
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