दीर्घकालीन विकास के पथ पर अग्रसर गोड्डा
11 साल लगे लेकिन 2011 में रेल लाइन का सपना पूरा हो गया, गोड्डा -हंसडीहा रेल लाइन को स्वीकृति मिली. 10 साल और लगे लेकिन महगामा में 300 बेड का अस्पताल भी बनाने लगा है.
2000 में झारखंड की स्थापना हुई, इसी साल मैं भी अपना मैनेजमेंट की पढाई खत्म कर कॉलेज से निकली और युवा राजनीति की तरफ कदम बढ़ाना शुरू किया. असीम संभावनाओं, कई सपनों के साथ हम दोनों आगे बढ़े. 22 साल बाद जब वापस मुड़ कर देखती हूं तो कुछ पूरे हुए, कुछ अधूरे ख्वाब नजर आते हैं. कुछ कसक भी है, कि यूं होता तो फिर हमारा राज्य वहां होता. कसक हमेशा रहेगी, शायद हमारा प्रदेश वहां तक नहीं पहुंच पाया, जहां की कल्पना हम सबने की थी, लेकिन हमारे राज्य में वो सब कुछ है जो इससे देश का सबसे विकसित राज्य बना सकता है.
दो साल बाद, 2002 में गोड्डा मेरा घर बन गया. जब में पहली बार गोड्डा आयी और बातों-बातों में महगामा के पूर्व विधायक और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री और मेरे ससुर जी अवध बिहारी सिंह से पूछा कि गोड्डा, महागामा में पहला काम क्या होना चाहिए तो उन्होंने दो बातें कहीं. गोड्डा और महगामा रेल से जुड़े और यहां एक बड़ा अस्पताल बने. 11 साल लगे लेकिन 2011 में रेल लाइन का सपना पूरा हो गया, गोड्डा -हंसडीहा रेल लाइन को स्वीकृति मिली. 10 साल और लगे लेकिन महगामा में 300 बेड का अस्पताल भी बनाने लगा है. अब जल्द ही महागामा भी रेल लाइन से जुड़ेगा. वक्त लगता है, लेकिन सतत प्रयास करते रहने से अंत में मंजिल जरूर मिलती है.
गंगा का पानी आने से किसानों को भी होगा फायदा: जब गोड्डा कांग्रेस की अध्यक्षा बनी और गांव-गांव घूमना शुरू किया तो जो समस्या सबसे ज्यादा उभर कर आयी वो ये कि पिछले 20 -25 सालों में हमारी सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी है. ये मुद्दा मेरे बहुत करीब है और जब से मैं विधायिका बनी, इसको लेकर हमेशा चिंतित थी. पिछले कुछ महीनों में सिंचाई व्यवस्था को ठीक करने पर बहुत काम हुआ है.
जल्द ही महागामा के हर गांव तक नहर से गंगा का पानी पहुंचेगा. छोटे-बड़े नहरों को दुरुस्त करने का काम जारी है. गंगा से पानी आने के बाद इसका फायदा अभी महगामा को और आशा है जल्द ही गोड्डा के लगभग हर परिवार को मिलेगा. इससे बहुत सारे मजदूर भाइयों को पंजाब हरियाणा के खेतों में काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. आने वाले सालों में ये बहुत जरूरी है कि हमारी कृषि उत्पादन बढ़े और हम खेती में पंजाब हरियाणा को टक्कर दे सकें. जब तक एक साल में तीन फसल जब तक नहीं उपजा पायेंगे, तब तक हमारे किसानों की समस्या खत्म नहीं होगी.
इसके लिए जरूरी है कि हमारी खेती वैज्ञानिक तरीके से हो. हमारे किसानों को नाबार्ड जैसी संस्थाओं से आसान तरीके से लोन उपलब्ध हो और उनको खेती की नयी पद्धतियों के लिए नियमित तरीके से ट्रेनिंग मिले. फसलें उगाना ही पर्याप्त नहीं है, जरूरी ये है कि फूड प्रोसेसिंग यूनिट भी यहीं हो, उसका पैकेजिंग यूनिट भी यहीं हो, ताकि हमारे ज्यादा से ज्यादा युवाओं को यहां रोजगार भी मिल सके. हमारे युवाओं को स्वाबलंबी बनाने में भी सहायक हो. मेरा मानना है कि हमें दलहन और तेलहन की खेती पर विशेष ध्यान देना चाहिए. 10 सालों में स्थिति ऐसी हो कि पूरा देश जाने कि उनका तेल और दाल गोड्डा से आता है.
तसर सिल्क को मिले पहचान, बुनकरों को मिले प्रशिक्षण:
नये रोजगार सृजन के लिए जरूरी है कि हम अपनी शक्तियों को पहचानें. तसर सिल्क हमारी पहचान थी, लेकिन धीरे-धीरे वो नीचे जाता जा रहा है. इसके कई कारण हैं. गुणवत्ता सबसे प्रमुख है. इसके लिए जरूरी है कि हमारे बुनकरों को ट्रेनिंग और सपोर्ट मिले, ताकि वो बेंगलुरु और चीन के सिल्क से ज्यादा अच्छा कपडा यहां बना सकें. जो सिल्क हमारे भगैया में बनता है वो भागलपुरी सिल्क के नाम पर बिकता है, हमारी खुद पहचान जरूरी है.
बसंतराय में बने बैज को भी नहीं मिली पायी उचित पहचान: हमारे बसंतराय का बना हुआ बैज और एंब्रॉयडरी देश विदेश में लग रहा है, लेकिन फिर भी जिस स्तर पर ये पहुंच सकता था वो नहीं पहुंच पाया है. जिस व्यवसाय में हमारे लोग हैं, उसकी बड़े स्तर पर उत्पादन हो. हमारा ब्रांड बन सके. हमारे यहां के हज़ारों युवा सूरत और तिरपुर में काम कर रहे हैं, उनके पास हुनर है. जरूरी है कि उनको स्थानीय स्तर पर रोजगार मिले ताकि उसका सारा पैसा हमारी लोकल अर्थव्यवस्था में लगे.
हम सिर्फ फैक्ट्री में काम ही नहीं करें, फैक्ट्री भी हमारी हो, हमारे घर के पास हो. इस पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है. फैक्ट्री लगाना हमारे लोगों को आता है, फैक्ट्री चलाना आता है. हमें गुणवत्ता, मार्केटिंग और ब्रांडिंग पे ध्यान देने की जरूरत है.
वैज्ञानिक तरीके से आम की खेती:
मेहरमा व ठाकुरगंगटी, जो आम की खेती का सबसे उन्नत क्षेत्र माना जाता है. इस क्षेत्र के किसान आम की खेती कर आथिर्क रूप से सबल भी हो रहे हैं. यहां के आम मसलन मालदह ,जरदालु ,गुलाबखास जैसे क्वालिटी न केवल झारखंड व बिहार बल्कि दिल्ली ,मुंबई ,कोलकाता तथा अन्य बड़े महानगरों में अपनी पहचान व खुशबू से लोगों को आकर्षित करता है. इस खेती को ओर भी वैज्ञानिक तरीके के साथ सहयोग व संवर्धन के लिए योजना तैयार की जा रही है.
मेरा सपना है कि अगले 10 सालों में गोड्डा- देवघर पूरे देश में सस्टेनेबल डेवलपमेंट (दीर्घकालीन विकास) की मिसाल बने. हमारे युवकों को स्थानीय रोजगार मिले और स्वाबलंबन का मौका मिले. अगले 10 साल में हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि गोड्डा में बने सामानों की एक मालगाड़ी रोज राज्य से बहार जाये. लोग हमें सिर्फ कोयला उत्पादक की तरह न देखें, बल्कि देश के सबसे अच्छी गुणवत्ता के सिल्क, एंब्रॉयडरी, हैण्डीक्राफ्ट निर्माता के रूप में देखें. देवघर में तिरुपति से जायदा सांस्कृतिक पर्यटक आयें.
प्रोफेशनल शिक्षा पर काम जारी
जब पहली बार यूथ कांग्रेस की कार्यकर्ता के तौर पर गोड्डा आयी और अपने युवा साथियों से गोड्डा की समस्याओं पर बातें करती थीं तो शिक्षा की बात अक्सर आती थी. प्रोफेशनल कोर्सेस, इंजीनियरिंग, डिप्लोमा, नर्सिंग इत्यादि का कॉलेज नहीं है. युवाओं की सबसे बड़ी समस्या रोजगार की थी और आज भी है. उस दिशा में भी हमलोग आगे बढ़े हैं, कुछ नये शिक्षण संस्थान आये हैं, आगे भी टेक्निकल और प्रोफेशनल शिक्षा पर काम जारी है.
शिकायत थी कि कोयला यहां का, लेकिन आज तक गोड्डा में न कोई पावर प्लांट है न ही सुचारु रूप से बिजली मिलती है. अब गोड्डा में पावर प्लांट भी आ गया और उम्मीद है जल्द ही गोड्डा के हर गांव में 24 घंटे बिजली मिलेगी. उसका असर न सिर्फ घरेलू होगा बल्कि रोजगार सृजन में भी दिखेगा. बिजली मददगार साबित होगी. कई कुटीर उद्योग आयेंगे, मार्केट में पैसा आयेगा तो सर्वांगीण विकास में सहायक होगी.
झारखंड बने हरित रोजगार की पहचान
पर्यावरण और सस्टेनेबल ग्रोथ बहुत बड़ा मुद्दा बन कर उभर रहा है. हर जगह सरकारें ग्रीन जॉब्स की बात कर रही है. झारखंड इसमें अग्रगणी भूमिका निभा सकता है. हमारा प्रदेश अपनी हरियाली के लिए जाना जाता है, आने वाले वक्त में हरित रोजगार के लिए भी जाना जाना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि हम अपने अवशिष्ट प्रबंधन पर बहुत ज्यादा ध्यान दें, हर कुछ रिसाइकल हो. सर्कुलर इकॉनमी पर काम करना जरूरी है. ये न सिर्फ रोजगार के नये अवसर लायेगा, बल्कि कार्बन क्रेडिट और हरित उत्पादन में काफी मददगार साबित होगा.
देवघर को रमणीक बनाने की जरूरत
देवघर हिन्दू धर्म के पवित्रतम स्थानों में से एक है. इसको विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक स्थलों में से एक बनाने की ओर काम करना होगा. इसके लिए जरूरी है कि देवघर के इंफ्रास्ट्रक्चर पर इन्वेस्टमेंट किया जाय और पर्यटकों की सुविधा पर ध्यान दिया जाये. जो एक बार देवघर आये उसको वापस जाने का मन न हो, देवघर तो उतना रमणीक बनाने की जरूरत है. देवघर को इको टूरिज्म हब की तरह विकसित करना जरूरी है ताकि लोगों को यहां लम्बे वक्त तक रुकने का अवसर मिले. इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को काफी फायदा मिलेगा.