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महालया का क्या है महत्व, कैसे करें कलश स्थापना, किन चीजों की जरूरत..सब कुछ बता रहे बाबाधाम के पुरोहित

धर्म शास्त्र के अनुसार, महालया अमावस्या तिथि को होते है, जिसे बहुत ही शुभ माना गया है. महालया के दिन साधक को कुछ विशेष कार्य करने चाहिए. बाबाधाम के पंडित संजय मिश्र ने बताया कि हर जगह कलश स्थापन का समय अलग- अलग होगा, क्योंकि दिन व तिथि सूर्योदय के अनुसार तय होता है.

Mahalaya 2023: बाबा नगरी में देवी दुर्गा की अराधना के लिए तैयारी जोर-शोर से चल रही है. पूजा मंडप, पंडाल समेत घरों में कलश स्थापन के लिए लोग जुटे हुए हैं. रविवार को कलश स्थापन के साथ शारदीय नवरात्र शुरू हो जायेगा. इससे एक दिन पहले यानी शनिवार को महालया है. इस दिन है. पूजा-पाठ और स्नान-ध्यान करने से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है. साथ ही महालया के दिन साधक को कुछ विशेष कार्य करने चाहिए. इस संबंध में पंडित संजय मिश्र ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना करने से साधक को विशेष लाभ मिलता है. इससे पहले यानि महालया के दिन खुद को पवित्र जरूर करें और पूजा के समय दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें. इस दिन नये वस्त्र पहनकर पूजा करने से लाभ मिलता है. साथ ही महालया के दिन नवरात्रि पर्व से संबंधित चीजों की खरीदारी करने की मान्यता है.

महालय का महत्व

धर्म शास्त्र के अनुसार, महालया अमावस्या तिथि को होते है, जिसे बहुत ही शुभ माना गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन पितरों की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है. साथ ही महालया के दिन पितृपक्ष का समापन हो जाता है. मान्यता है कि इस दिन पिंडदान और तर्पण इत्यादि कर्म करने से पितरों को जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है और श्री हरि के चरणों में स्थान प्राप्त होता है. यदि कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों के मृत्यु की तिथि याद नहीं रख पाता है, ताे उन्हें इस दिन तर्पण और पिंडदान जरूर करना चाहिए.

कलश स्थापन का मुहूर्त

पंडित संजय मिश्र ने बताया कि हर जगह कलश स्थापन का समय अलग- अलग होगा, क्योंकि दिन व तिथि सूर्योदय के अनुसार तय होता है. देवघर में दो समय खास तौर पर कलश स्थापना के लिए शुरू माना गया है. पंचांग के अनुसार, रविवार को सुबह 6:00 बजे से 7:45 बजे तक तथा उसके बाद सुबह 9:30 बजे से लेकर 12:30 बजे तक कलश स्थापन के लिए शुभ मुहूर्त है.

कलश स्थापन के लिए आवश्यक

शक्ति उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र में देवी की आराधना का महत्व है. नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के नौ अलग-अलग स्वरूप के दर्शन का विधान है. प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना से पूजा की शुरुआत होती है. इस दिन लोग घरों में कलश स्थापित कर देवी का आह्वान करते है और नौ दिनों तक उनकी पूजा की जाती है. पंडित जी ने बताया कि नवरात्र में कलश स्थापना से देवी प्रसन्न होती हैं. कलश स्थापना के लिए मिट्टी का घड़ा, जौ, गंगा की शुद्ध मिट्टी, नारियल, कलावा, लाल चुनरी, गंगा या किसी पवित्र नदी का जल, सुपारी, अक्षत, दीया, घी आदि की जरूरत होती है.

ऐसे करें कलश स्थापना

शुभ मुहूर्त में प्रथम पूज्य भगवान गणेश का ध्यान करने के बाद देवी दुर्गा का स्मरण करना चाहिए. इसके बाद मिट्टी से जमीन पर गोल आकृति बनाकर और उस पर जौ छिड़कर कलश रखना चाहिए. मिट्टी के कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसमें कलावा जरूर बांधना चाहिए. उसके बाद कलश में गंगा जल, दुर्वा, सिक्का, सर्वोषधि, पंचरत्न, सुपाड़ी के बाद आम्र पल्लव व धातु को कलश में डालकर उसे स्थापित करना चाहिए. इसके बाद नारियल पर कलावा के जरिए बांधकर उसे कलश पर रखकर लाल चुनरी पहनाना चाहिए. इस नारियल यानी श्रीफल को ही देवी का स्वरूप माना जाता है.

अंखड दीप आवश्यक

कलश स्थापना की पूजा के समय अखंड दीप जलाना चाहिए और फिर धूप व अगरबत्ती से उनकी पूजा करनी चाहिए. नवरात्रि पर पूरे नौ दिनों तक देवी की पूजा का ये क्रम अनवरत चलना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि इसके देवी प्रसन्न होती है और भक्तों की मनोवांछित फल की कामना को पूर्ण करती हैं.

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