संताल परगना प्रक्षेत्र राज्य में दूध उत्पादन का एक बड़ा हब बन चुका है. दूध के कारोबार से यहां रोजगार पनप रहा है और लोग अच्छी कमाई कर रहे हैं. 2013 में झारखंड में राज्य सरकारी दुग्ध उद्पादक महासंघ लिमिटेड के गठन के बाद संताल परगना में श्वेत क्रांति के एक नये युग का उदय हुआ है. फेडरेशन की मेधा ब्रांड ने राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली है. मेधा डेयरी ने यह उपलब्धि देवघर के मशहूर पेड़ा की खेप को बहरीन निर्यात कर हासिल की है.
10 साल पहले जहां छोटे से प्लांट में प्रतिदिन 500 लीटर दूध का उत्पादन हो रहा था, वहीं वर्तमान में यहां से हर दिन 35 हजार लीटर दूध संग्रह करने के साथ मेधा डेयरी के नाम से दूध से अलग-अलग खाद्य पदार्थ तैयार कर झारखंड ही नहीं बिहार व बंगाल के बाजारों तक अपनी पैठ बना चुकी है. दूध के कारोबार से संताल परगना क्षेत्र में बड़ा रोजगार पनप रहा है.
मेधा हर दिन संताल के 600 गांवों में करीब 20,000 दुग्ध उत्पादकों से उनके गांव में ही दूध संग्रहण कर रही है. इसके लिए मिल्क फेडरेशन की ओर से 205 दूध संग्रहण केंद्र बनाये गये हैं. जहां किसान सुबह एवं शाम दो बार दूध जाकर देते हैं. केंद्र पर ही दूध की गुणवत्ता की जांच कर मशीन से बता दिया जाता है और उसी आधार पर भुगतान किया जाता है. मशीन के द्वारा ही किसान को दूध का रेट भी तुरंत पता चल जाता है.
वहीं, फेडरेशन द्वारा दुग्ध उत्पादकों को सहयोग करने के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले दूध उत्पादन के लिए पशुचारा अनुदानित दर पर समय-समय पर उपलब्ध कराने के अलावा पशु चिकित्सक की भी व्यवस्था में सहयोग किया जाता है. दूध की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए अबतक 20 बल्क सेंटर की स्थापना की जा चुकी है. जहां दूध की गुणवत्ता बनाये रखने एवं उसे ठंडा रखने के लिए रखने की व्यवस्था है.
इससे उन्हें घर पर ही बाजार उपलब्ध हो पा रहा है और उनकी बचत भी हो रही है. हर महीने फेडरेशन द्वारा दुग्ध उत्पादकों को प्रति 10 दिन में दूध की कीमत खाते में भेजी जा रही है. फेडरेशन द्वारा हर महीने चार करोड़ रुपये दुग्ध उत्पादकों के खाते में भुगतान किया जा रहा है. वहीं, दुग्ध उत्पादकों को उनके द्वारा उपलब्ध कराये गये दूध की गुणवत्ता के आधार पर दर का भुगतान करने के अलावा राज्य सरकार की ओर से प्रति लीटर दो रुपये प्रोत्साहन राशि एवं गुणवत्ता के आधार पर फेडरेशन की ओर से 0.59 पैसा से लेकर दो रुपये तक प्रति लीटर बढ़ी हुई दर से भुगतान किया जा रहा है.
संताल परगना में 1.20 लाख लीटर दूध उत्पादन की क्षमता का प्लांट : श्वेत क्रांति को गति देने के लिए फेडरेशन ने देवघर में 20 हजार, सारठ में 50 हजार एवं साहेबगंज में 50 हजार लीटर की क्षमता वाला प्रोसेसिंग प्लांट का संचालन किया जा रहा है. इन प्लांट से जुड़े 20 हजार से अधिक दुग्ध उत्पादकों व जरूरतमंदों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से रोजगार उपलब्ध कराया है.
झारखंड सरकार के मेधा ब्रांड के दूध की हर दिन डिमांड बढ़ती जा रही है. हर दिन बाजार में 30 हजार लीटर दूध भेजा जा रहा है. जिसमें बिहार के बांका, भागलपुर एवं मुंगेर में आठ हजार लीटर और बंगाल में करीब दो हजार लीटर हर दिन दूध को भेजा जा रहा है.
मेधा हर दिन लस्सी,घी, मीठा दही, प्लेन दही, रबड़ी, गुलाब जामुन सहित अलग अलग प्रोडक्ट की काफी डिमांड है. इन सारे प्रोडक्ट को तैयार करने में हर दिन 10 हजार लीटर दूध की खपत हो रही है.
हमारे गांव में झारखंड मिल्क फेडरेशन की ओर से 2014 से फेडरेशन के द्वारा दुग्ध संग्रहण केंद्र का संचालन किया जा रहा है. ग्रामीण प्रतिदिन दो पाली में आकर दूध जमा करते हैं. पारदर्शिता के साथ दूध की जांच कर उसक उचित मूल्य हर 10 दिन में किसानों के खाते में भुगतान किया जा रहा है. इससे आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है. किसान खेती के साथ पशुपालन से जुड़कर आर्थिक संपन्न हो रहे हैं.
नीलेश कुमार राय, उपरबांधी,पालाजोरी
हमलोग कई वर्षों से दूध के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. कोविड के कारण लॉकडाउन के वक्त काफी परेशान हुए. कोई दूध खरीदने वाला नहीं था. मेधा डेयरी द्वारा 2020 जुलाई-अगस्त में कांगोई में संग्रहण केंद्र खोला गया. इसके बाद केंद्र में ही दूध बेचने लगे. प्रतिदिन 8-10 लीटर दूध बेचती हूं.
ऊषा देवी, कनगोई,जामताड़ा
मैंने 2012 में एक गाय से दूध का व्यवसाय प्रारंभ किया था. नोनीहाट में मेधा का दूध संग्रहण केंद्र खुलने के बाद स्कीम के तहत बैंक से लोन लेकर 10 गाय खरीदी. वर्तमान में मेरे पास कुल 12 दुधारू गाय हैं. हर महीने दूध से 25 से 30 हजार की आमदनी हो रही है. दूध के व्यवसाय से पक्के का मकान भी बनाया. फेडरेशन से जुड़ने के बाद पशुपालकों को फायदा पहुंचा है.
जयराम दास, नौनीहाट, दुमका
मेरा गांव कठौना गोड्डा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर है. हर दिन मुख्यालय जाना संभव नहीं है. गांव में खेती के अलावा दूध का मुख्य व्यवसाय है. मेधा द्वारा संग्रहण केंद्र खोलने के बाद अब गांव के हर घर में दुधारू मवेशी हैं. पहले दूध बेचने के लिए हर दिन शहर की ओर जाना पड़ता था, लेकिन अब सभी लोगों को केंद्र पर ही फायदा मिल जा रहा है. समय पर भुगतान भी हो रहा है.
जयकृष्ण महाराणा, कठौन, गोड्डा
रिपोर्ट- संजीव मिश्रा