नवरात्र को लेकर शक्ति की अराधना का हर जगह-अलग विधान एवं मान्यताएं होती हैं. बाबा मंदिर में शक्ति की अराधना का अपना खास विधान है. यहां सभी प्रकार की पूजा तांत्रिक एवं गुप्त विधि से की जाती रहीं हैं. इस परंपरा का निर्वहण आज तक जारी है. बाबा मंदिर के प्रशासनिक भवन में स्थित हवन कुंड मंदिर का द्वार साल में एक बार ही खोलने की परंपरा है. इस कुंड को 14 अक्तूबर को शनिवार के दिन सुबह करीब आठ बजे खोला जायेगा. खोलने के बाद मंदिर में कार्यरत भोला भंडारी की अगुवाई में कुंड व पूरे मंदिर की साफ-सफाई की जायेगी. उसके बाद पहले पूजा से यहां तांत्रिक विधि से हवन प्रारंभ हो जायेगी.
हर साल नवरात्र में खोला जाता है यह मंदिर
यह हवन पूरे नवरात्र तक जारी रहेगी. नवमी के दिन बाबा मंदिर का पट बंद होने के बाद रात में मां पार्वती सहित सभी 22 मंदिरों में विशेष पूजा के बाद अहले सुबह दशमी के दिन विसर्जन पूजा व जयंती बली के बाद हवनकुंड के मुख्य द्वार को बंद कर दिया जायेगा, जो पुन: अगले शारदीय नवरात्र में ही खोला जायेगा. इस मंदिर में हर दिन दैनिक पूजा के लिए पुजारी दूसरे दरवाजे से प्रवेश करेंगे.
बाबा नगरी में आने वाले भक्तों का उनके पुश्तैनी पुरोहित के पास रिकॉर्ड होता है. यजमानों के पूर्वजों की वंशावली की जानकारी पुरोहित के खाते में दर्ज है. यह परंपरा सालों से चली आ रही है. इस समय पितृ पक्ष का चल रहा है. इस दौरान खास कर यूपी, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आदि इलाके के भक्त गया में अपने पूर्वजों के नाम पिंड दान कर बाबा नगरी आते हैं. बाबा का दर्शन करने के बाद सभी अपने-अपने पुश्तैनी पुरोहित से मिलकर पूर्वजों के बारे में जानकारी अवश्य लेते हैं. उसके बाद एक-एक कर अपना भी नाम दर्ज कराते हैं. इनका मानना है कि यहां पर लिखे हुए लेख से घर परिवार में काफी समृद्धि मिलती है. कई बार तो वंशावली का नाम जानने के लिए लोग अपने पुरोहित से संपर्क कर जानकारी लेते हैं.
एमपी से आये कमलेश्वर प्रसाद सिंह बताते हैं कि उनके पुरोहित के खाते में छह पुश्तों का नाम दर्ज है. पिताजी का तो दस बार नाम लिखा है, यानि कि वह जितनी बार बाबाधाम आये पुरोहित के खाते में अपना नाम लिखवाया है. वह भी 15 बार नाम दर्ज करा चुके हैं. हर बार घर के किसी न किसी सदस्यों के साथ आता हूं तो उनका भी नाम यहां दर्ज होता है.
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