देवघर जिले सहित आसपास के सभी प्रमुख पर्यटन स्थल सैलानियों के लिए सजधज कर तैयार हैं. पहली जनवरी को हजारों लोग त्रिकुट पहाड़, तपोवन, नंदन पहाड़ समेत आसपास के जिलों के पर्यटन स्थल मसानजोर, खंडोली, मलुटी समेत अन्य जगहों पर जुटेंगे. इसके अलावा साल की शुरुआत पूजा पाठ से करने के लिए सैकड़ों लोग बाबा मंदिर पहुंचेंगे. इन सभी जगहों पर भक्तों व सैलानियों के उमड़ने की संभावना को देखते हुए कई इंतजाम किये गये हैं. पर्यटन स्थल में लोग पिकनिक का भी मजा लेंगे.
खंडोली बांध गिरिडीह शहर के मुख्य शहर से उत्तर-पूर्व दिशा में 10 किमी दूर स्थित है. बांध का नाम खंडोली की पहाड़ियों के नाम पर रखा गया है. जंगल और नदी से घिरी खंडोली पहाड़ी काठी के आकार की है. बांध के निर्माण के साथ, साइट को एक भ्रमण स्थल के रूप में विकसित किया गया है, ताकि लोग प्रकृति के बीच आनंद ले सकें. सुबह और शाम के वक्त यह जगह और भी खूबसूरत हो जाती है. 1955 में जलाशय के निर्माण के बाद यह स्थान प्रवासी पक्षियों के लिए हॉट स्पॉट बन गया.
मसानजोर डैम दुमका जिले में मयूराक्षी नदी पर स्थित है. यह दुमका जिले से 31 किलोमीटर की दूरी पर है. स्थानीय और आसपास के शहरों के लोगों के लिए पिकनिक का आनंद लेने के लिए सबसे अच्छा स्थल है. इस डैम का निर्माण वर्ष 1954-56 में भारत के प्रथम पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत कनाडा सरकार की सहायता से कराया गया था. इसे बनाने का मुख्य उद्देश्य सिंचाई और बिजली उत्पादन करना था. यह पूर्ण रूप से झारखंड क्षेत्र में है, लेकिन इसके पानी का इस्तेमाल ज्यादातर बंगाल सरकार करती है.
देवघर से तारापीठ जाने से पहले ही है मलूटी गांव है. इसे गुप्तकाशी मलूटी भी कहा जाता है. झारखंड की उपराजधानी दुमका से इसकी दूरी 60-70 किलोमीटर है. शिकारीपाड़ा के पास यह गांव झारखंड बंगाल की सीमा पर है, यहां की भाषा भी बंगाली मिश्रित हिंदी है. मंदिरों की एक के बाद एक कतार हो जैसे सड़क के दोनों तरफ मंदिर मलूटीगांव स्थित मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है. मंदिरों में टेराकोटा (पकाई गयी मिट्टी से बनाई गयी कलाकृति) इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाता है, मलूटी के मंदिरों में किसी स्थापत्य शैली का अनुकरण नहीं किया गया है. शुरू में यहां सब मिलाकर 108 मंदिर थे जो अब घटकर 65 रह गये हैं. इनकी ऊंचाई कम से कम 15 फुट तथा अधिकतम 60 फुट हैं. मलूटी के अधिकांश मंदिरों के सामने के भाग के ऊपरी हिस्से में संस्कृत या प्राकृत भाषा में प्रतिष्ठाता का नाम व स्थापना तिथि अंकित है. इससे पता चलता है कि इन मंदिरों की निर्माण अवधि वर्ष 1720 से 1845 के भीतर रही है. हर जगह करीब 20-20 मंदिरों का समूह है. हर समूह के मंदिरों की अपनी ही शैली और सजावट है. ज्यादातर मंदिरों में शिवलिंग स्थापित थे. मंदिर में प्रवेश करने के लिए छोटे-छोटे दरवाजे बने हुए हैं. सभी मंदिरों के सामने के भाग में नक्काशी की गई है. विभिन्न देवी-देवता के चित्र और रामायण के दृश्य बने हुए थे.
अजय बराज, सिकटिया, देवघर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूरी पर सारठ प्रखंड के सिकटिया गांव के अजय, पतरो व जयंती नदी के संगम पर बना हुआ है. 15 गेट मुख्य नदी में व दो गेट नहर में बनाये गये हैं. बहुउद्देश्यीय परियोजना से पेयजलापूर्ति, फसलों की सिचाई के लिए पानी, ताप विद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन, तैराकी प्रशिक्षण की अपार संभावनाएं हैं. पर्यटक क्षेत्र के रूप में भी इसे विकसित किया जा सकता है. हालांकि हर साल नये वर्ष के मौके पर बाहर से लोग घूमने व पिकनिक मनाने पहुंचते हैं.
देवघर शहर से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित तपोवन पहाड़ है. कहा जाता है कि पुराने समय में यह ऋषियों की तपोभूमि थी. बालानंद ब्रह्मचारी ने इस पहाड़ पर सिद्धि पायी थी और उनके शिष्य मोहनानंद ब्रह्मचारी भी तपस्या के लिए आते थे. किंवदंती यह है कि रावण भी तपोवन पहाड़ पर तप के लिए आये थे और देवताओं द्वारा उनका ध्यान तोड़ने हनुमान जी को भेजा गया था. तपोवन पहाड़ पर हनुमान जी की मंदिर, , कुंड, गुफा आदि देखने लायक है.
शहर के एक किनारे में अवस्थित नंदन पहाड़ को पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित किया गया है, जो टावर चौक से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां नंदी मंदिर, शिव मंदिर आदि है और इस पहाड़ को पार्क के तौर पर विकसित किया गया है. इस पार्क पर लाफिंग हाउस, भूतघर, मछली घर आदि बनाये गये हैं. साथ ही नंदन पहाड़ तालाब में बोटिंग की व्यवस्था है. इसके अलावे बच्चों के लिये झूला, जंपिंग फ्रॉग, टाय कार आदि है. इस पार्क की इंट्री फीस 10 रुपये लगती है.
टावर चौक से करीब दो किलोमीटर दूरी पर सारठ जाने वाले मार्ग पर अवस्थित है. यह मंदिर बेलूर के रामकृष्ण मंदिर की तरह दिखता है. इसके अंदर राधा-कृष्ण की मूर्तियां हैं. मंदिर की ऊंचाई 146 फीट है. मंदिर के निर्माण में खर्च की गई राशि लगभग नौ लाख रुपये (9 लाख) थी, इसलिए इसे नौलखा मंदिर के रूप में जाना जाने लगा. यह राशि रानी चारुशिला द्वारा पूरी तरह से दान की गयी थी, जो पाथुरिया घाट किंग के परिवार, कोलकाता से संबंधित थीं. कहा जाता है कि शुरुआती उम्र में उन्होंने अपने पति अक्षय घोष और बेटे जतिंद्र घोष को खो दिया. उन्होंने अपना घर छोड़ा और बालानंद ब्रह्मचारी से मुलाकात की. बालानंद ब्रह्मचारी ने उनसे मंदिर का निर्माण करने के लिए कहा था. अब नौलखा आश्रम परिसर में भव्य मोहन मंदिर का भी निर्माण कराया गया है, जो पर्यटक के आकर्षण का केंद्र है.