नरेंद्र कुमार महतो : झारखंड में बसने वाले कोड़ा जनजाति, राज्य का प्राचीन व मूल निवासी हैं. ये राज्य में छिटपुट तरीके से निवास करते हैं. संताल परगना की बात करे तो, इनकी आबादी लगभग 50 हजार है, जो गोड्डा, दुमका, पाकुड़, साहेबगंज, देवघर के साथ जामताड़ा आदि जिलाें में निवास करते हैं. गोड्डा जिले में इनकी आबादी 15 हजार है, जो गोड्डा प्रखंड में पांडुबथान और अमरपुर गांव के अलावा पथरगामा में लौटना और खरियानी, पोड़ैयाहाट में कठौन, महगामा के मोतीचक व आलोला गांव के अलावा बोआरीजोर में बिलथू, लावाभुंजोनि, रोलडीह, गोपालपुर, गोढ़िया आदि गांवों में बसोबास करते हैं.
मेहरमा में इस जाति की जनसंख्या नगण्य है. ठाकुरगंगटी के कलिकितता-हरिपुर के साथ भिखारीकिता, बसंतराय में, मननकररिया, सुंदरपहाड़ी प्रखंड के एक सुंदरमोड में ही इस जाति के लोगों का बसोबास है. कोड़ा जाति की सबसे ज्यादा आबादी वाला गांव बिलठू बोआरीजोर में है. इस गांव में इस जाति की कुल आबादी 800 के करीब है. लगभग 100 घर के इस बस्ती में इस गांव जिले का सबसे पिछड़ा गांव है. इस गांव में जहां एक भी मैट्रिक पास व्यक्ति नहीं है. वहीं दूसरी आबादी कालिकिता ठाकुरगंगटी में है, जहां 60 घर निवास करते हैं. वहीं तीसरी आबादी वाला गांव पांडुबथान जहां करीब 40 घर में निवास करते हैं.
वहीं शिक्षा की बात करे तो संतालपरगना में ग्रेजुएट नणगन्य, मैट्रिक व इंटर एक प्रतिशत है. वहीं इनका जीवन यापन मजदूरी है. राजनीतिक व प्रशासनिक क्षेत्र में एक भी नहीं है. वहीं पहले की अपेक्षा थोड़ी बहुत सुधार है. वर्तमान की बात करे तो इन जनजाति के लिए चुनौती बहुत है, क्योंकि आज के समय में भी शिक्षा की घोर कमी है. गोड्डा प्रखंड में एकमात्र ग्रेजुएट पांडुबथान में है, जो शिक्षा मित्र बिहार में कार्यरत है. वहीं महिलाओं की बात करे तो शिक्षा शून्य है.
वहीं शिक्षा की बात करे तो संतालपरगना में ग्रेजुएट नणगन्य, मैट्रिक व इंटर एक प्रतिशत है. वहीं इनका जीवन यापन मजदूरी है. राजनीतिक व प्रशासनिक क्षेत्र में एक भी नहीं है. वहीं पहले की अपेक्षा थोड़ी बहुत सुधार है. वर्तमान की बात करे तो इन जनजाति के लिए चुनौती बहुत है, क्योंकि आज के समय में भी शिक्षा की घोर कमी है. गोड्डा प्रखंड में एकमात्र ग्रेजुएट पांडुबथान में है, जो शिक्षा मित्र बिहार में कार्यरत है. वहीं महिलाओं की बात करे तो शिक्षा शून्य है.
समाज की स्थिति बहुत ही नाजुक है. आज के समय में भी समाज को जीने के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. वहीं राजकुमार कोड़ा की माने तो जिस प्रकार कोड़ा जनजाति की आबादी नगण्य है, वहीं ये लोग सरकारी लाभ से भी वंचित हैं. इस पर सरकार पहल करे तो समाज का कुछ अस्तित्व बच पायेगा. वहीं संजय कोड़ा की माने तो, कोड़ा जनजाति जिस प्रकार पूरे झारखंड में पिछड़ा है, उसी तरह गोड्डा जिला में भी बहुत ही पिछड़ा है.
आज भी गांव के लोग रोजी-रोजगार के लिए ईंट-भट्ठा में काम करने बंगाल के लिए पलायन करते हैं. किसुन कोड़ा की माने तो, कोड़ा जनजाति राज्य बनने के बाद भी किसी प्रकार का कोई सुधार नहीं हुआ है. आगे भी उम्मीद दूर-दूर तक नहीं दिखता है. वहीं सुकुरमुनी कोड़ा की माने तो सरकार की और से केवल राशन मिलती है. समाज में कई लोगों को विधवा या वृद्धापेंशन तक नहीं मिलती है. वहीं बसंत कोड़ा की माने तो, कोड़ा जनजाति में युवा वर्ग के जीवन यापन में भी बहुत बड़ी चुनौती है.
इस चुनौती का मुख्य कारण कोड़ा जाति में शिक्षा की घोर कमी बताया जाता है. शिक्षा की वजह से जाति समुदाय के लोगों की जीवन यापन का कार्य केवल दैनिक मजदूरी या फिर छोटे स्तर पर खेती कर निर्भर है. कोड़ा जाति के लोगों के आमने आर्थिक परेशानी की वजह से ही आज इस जाति के लोगों का जीवन स्तर काफी निम्न है. इसी वजह से इस जाति समुदाय के लोगों में पढ़ाई के प्रति अभिरुचि कम है. इनका शिक्षा पेट व भूख की वजह से प्रभावित है. जीविकोपार्जन के लिए बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर माता-पिता के साथ मजदूरी करने के लिए विवश हो जाते हैं.