देवघर में किशोर सशक्तीकरण और बाल-विवाह निर्मूलन कार्यक्रम चलाकर सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है. कृतिका पिछले आठ-दस सालों से जिले की एक स्वयंसेवी संस्था से जुड़कर महिला उत्थान व बाल विवाह की दिशा में काम कर रहीं हैं. कृतिका के पास पत्रकारिता का भी खासा अनुभव है. झारखंड की महिलाओं के उत्थान व आंगनबाड़ी केंद्रों की व्यवस्था पर पंचायत पोर्टल पर उन्होंने कई सारे लेख लिखे हैं. सामाजिक सरोकार के मुद्दे पर छपे लेखों के आधार पर ही वह वर्ष 2022 में रांची में आयोजित सम्मान समारोह में पद्मश्री बलवीर दत्त मीडिया फेलोशिप अवार्ड से सम्मानित हो चुकीं हैं. देवघर से पहले चतरा व गुमला में भी कृतिका ने महिला उत्थान, किशोरियों के सशक्तीकरण और बच्चियों के लिए बेहतर और सरंक्षनात्मक माहौल बनाने में काम किया है. देवघर की महिलाओं को मुख्य धारा से जोड़कर काम कर रहीं हैं.
कृतिका कहती हैं कि, भारत में 10-19 वर्ष के किशोर-किशोरियों की जनसंख्या लगभग 22 प्रतिशत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किशोरावस्था को परिभाषित करने के लिए 10 से 19 साल की उम्र-सीमा निर्धारित की गयी है. यही वो समय होता है, जब उनकी उर्जा, विकास और वृद्धि को नई दिशा मिलती है. ऐसे में यह बेहद आवश्यक हो जाता है कि जीवन के इस पड़ाव में इनको उचित सलाह, मार्गदर्शन एवं एक सुरक्षित माहौल प्रदान किया जाये. किशोरावस्था में कई चुनौतियां होतीं हैं, जिनका सामना किशोरों को करना पड़ता है. इनमें विकास के अवसरों का नहीं मिलना, शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपलब्धता, लैंगिक भेदभाव, लिंग आधारित हिंसा, बालविवाह, बाल श्रम तथा सामाजिक बंधन शामिल हैं. इसलिए यह जरूरी है कि किशाेरावस्था से लेकर महिला उत्थान की दिशा में सभी आगे आयें, ताकि एक स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सके.