देवघर: झारखंड में कुष्ठ मरीजों की पहचान के लिए 2021-22 में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के तहत अभियान चलाया गया. इस दौरान राज्य में 4025 कुष्ठ मरीज मिले, जिसमें सबसे अधिक कुष्ठ रोगी देवघर जिले में पाये गये. देवघर में 411 कुष्ठ मरीजों की पहचान की गयी, इनमें पॉसीबैसीलरी (पीबी) 230 और मल्टी बैसीलरी (एमबी) केटेगरी के 181 मरीज शामिल हैं.
जिले में सर्वाधिक 72 कुष्ठ मरीज सारवां प्रखंड क्षेत्र के हैं, इनमें पीबी के 44 और एमबी केटेगरी के शामिल हैं. राज्य भर में चले इस अभियान में दूसरे स्थान पर इस्ट सिंहभूम और तीसरे स्थान पर रांची जिला है. इस्ट सिंहभूम में 410 और रांची में 310 कुष्ठ रोगियों की पहचान हुई है.
एक तरफ जहां कुष्ठ उन्मूलन के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है, वहीं रोगियों के बढ़ने से स्वास्थ्य महकमा सतर्क हो गया है. खासकर मल्टी बैसीलरी केटेगरी के 181 कुष्ठ मरीजों के मिलने से चिंता और बढ़ गयी है. 2020-21 में 384 कुष्ठ मरीजों की पहचान हुई थी. मगर, इस बार मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार जिला में इनमें 249 का इलाज अभी भी चल रहा है. शेष इलाज के बाद रोगमुक्त हो चुके हैं.
कुष्ठ होने के बाद व्यक्ति के शरीर उक्त भाग में खुजली होती है, इसके बाद पर लाल या तांबे जैसे रंग का दाग, दाग में सूनापन, हाथ-पैर में झनझनाहट, इसके अलावा जीवाणुओं के संक्रमण से खून दूषित होता है, धूप के संपर्क में त्वचा में तैज जलन होती है, घावों में हमेशा मवाद का बहना व घाव का ठीक ना हो पाना, खून का घावों से निकलते रहना, घावों के ठीक नहीं होने से कुष्ठ मरीज के अंग धीरे-धीरे गलने लगते हैं और पिघल कर गिरने लगते हैं, धीरे-धीरे अपाहिज होने लगता है.
कुष्ठ मरीज के लगातार संपर्क में नहीं आकर इस बीमारी से बचा जा सकता है. डब्ल्यूएचओ की ओर से साल 1955 में सभी प्रकार की की लेप्रोसी कुष्ठ के इलाज के लिए मल्टीड्रग थेरेपी विकसित कर चुकी है. इसके अलावा कई एंटीबायोटिक्स से इसके बैक्टीरिया को मारकर लेप्रोसी का इलाज किया जाता है. इनमें डैपसोन, रिफैम्पिन, क्लोफेजाइमिन, मिनोसाइक्लिन और एफ्लोक्सिन जैसी दवाएं शामिल हैं. जो डॉक्टर के सलाह पर ले सकते है.
कुष्ठ बीमारी मायकोबैक्टीरियम लैप्री नाम के बैक्टीरिया से होती है, यह बैक्टीरिया कुष्ठ मरीजों में होती है. ऐसे में कुष्ठ मरीजों के श्वसन के संपर्क में आने से फैल सकती है. हालांकि, यह बीमारी मरीजों के साथ लंबे समय तक मरीजों के संपर्क में रहने से कुष्ठ की बीमारी हो सकती है.
Posted By: Sameer Oraon