Baba Dham Deoghar: द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित मां चामुंडा मां काली की पूजा अर्चना का बहुत महत्व है. जहां भक्त मां की पूजा करने के लिए घंटों कतार में लगे रहते हैं. यहां मां काली दक्षिण मुखी विराजमान हैं. बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के साथ मां शक्ति विराजमान यहां मां की तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है. इस मंदिर का निर्माण पूर्व सरदार पंडा स्वर्गीय श्रीश्री जयनारायण ओझा ने 1712 ई में कराया. इस मंदिर से शिव के साथ शक्ति दोनों एक साथ पूजा का महत्व है. मां काली मंदिर की लंबाई लगभग 50 फीट व चौड़ाई लगभग 30 फीट है. मां काली के शिखर पर तांबे का कलश है. इसके ऊपर पंचशूल भी लगा है. शिखर के गुंबद के नीचे गहरे लाल रंग से रंगा हुआ है.
इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए मंदिर प्रांगण से सर्वप्रथम तीन सीढ़ियों को पार करके भक्त मां शक्ति मां काली के प्रांगण में पहुंचते हैं. सामने पीतल के दरवाजे को शिव भक्त प्रणाम कर शीश झुका कर मां के गर्भगृह में पहुंचते हैं, जहां मां काली के दर्शन होते हैं. मां काली की प्रतिमा को तीन ओर तांबा की ग्रील से घिरा हुआ है. इस कारण मां शक्ति मां काली की पूजा करने के लिए प्रवेश कर भक्त बायीं ओर से पूजा करते हुए दायीं ओर से बहार निकलते हैं. यहां पर भक्त व पुजारी सभी के लिए प्रवेश व निकास द्वार का एक ही रास्ता है. इस मंदिर में शालिग्राम श्रृंगारी परिवार, परिहस्त परिवार, अडेवार परिवार, उज्ज्वल मिश्र परिवार, महाराज खवाड़े परिवार, फलाहारी परिवार के वंशज अपने पारी अनुसार मां की पूजा करते हैं. इस मंदिर में बाबा वैद्यनाथ से पहले मां काली का शृंगार ओझा परिवार मंदिर इस्टेट की ओर से करते हैं. यहां पर मां काली की तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है.
पूर्व में यहां कई साधक मां की साधना पूजा की इनमे शिवचंद्र महाशय, रामाकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद आदी थे. इस मंदिर में वेद पाठ की शिक्षा भी दी जाती है. इस मंदिर में मां काली को प्रतिदिन बंगला भजन श्यामा संगीत का भजन कर मां को प्रसन्न किया जाता है. यहां भक्त सालोंभर मां शक्ति की पूजा कर सकते हैं. लेकिन आश्विन मास के नवरात्र के समय भक्त चार दिन तक पूजा नहीं कर सकते हैं. जो नवरात्र के सप्तमी तिथि से नवमी तिथि तक. इस समय मां का पट सभी के लिए बंद रहता है. दशमी तिथि दोपहर विशेष पूजा के उपरांत भक्तों के लिए पट खोल दिया जाता है. इसके अलावा इस मंदिर में अगहन मास में चतुशमश खप्पर पूजा की जाती है.
पंडा धर्मरक्षिणी द्वारा चैत्र कृष्ण पक्ष में नगर वार्षिक गंवाली पूजा का आयोजन किया जाता है. यहां जनरेल समाज व छोटा जनरेल समाज द्वारा विल्व पत्र प्रदर्शनी की जाती है. इस मंदिर में प्रवेश करते ही तीर्थ पुरोहित के वंशज मां पार्वती के प्रांगण में अपने यजमान को संकल्प पूजा कराने के लिए अपने गद्दी पर रहते हैं. इनमें शृंगारी परिवार, फलाहारी परिवार, परिहस्त परिवार, महाराजजी परिवार के वंशज अपने यात्रियों के संकल्प पूजा, उपनयन, विवाह, मुंडन, विशेष पूजा आदि अनुष्ठान कराते है. 1962 में चेचक की बीमारी से नगरवासी को निजात दिलाने के लिए पूर्व सरदार पंडा श्रीश्री भवप्रिता नंद ओझा ने तंत्रिक पूजा कर नगरवासियों को चेचक से निजात दिलाया था.