Srawani Mela 2020 : बाबाधाम में स्वयं विराजमान हैं महाकाल और महाकाली, यहां महाकाल की पूजा का है विशेष महत्व
Srawani Mela 2020 : देवघर (दिनकर ज्योति) : द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ के मंदिर प्रांगण में कुल 22 मंदिर हैं. सभी मंदिरों का अपना पौराणिक महत्व है. यहां महाकाल व महाकाली स्वयं विराजमान हैं. इनमें महाकाल भैरव का विशेष महत्व है. महाकाल भैरव बाबा के ही स्वरूप माने जाते हैं. इन्हें बटुक भैरव के नाम से भी जाना जाता है. बाबा की पूजा के बाद शिव भक्त बटुक भैरव की पूजा अवश्य करते हैं. कई बार महाकाल की पूजा के लिए घंटों कतार में लगना पड़ता है.
Srawani Mela 2020 : देवघर (दिनकर ज्योति) : द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ के मंदिर प्रांगण में कुल 22 मंदिर हैं. सभी मंदिरों का अपना पौराणिक महत्व है. यहां महाकाल व महाकाली स्वयं विराजमान हैं. इनमें महाकाल भैरव का विशेष महत्व है. महाकाल भैरव बाबा के ही स्वरूप माने जाते हैं. इन्हें बटुक भैरव के नाम से भी जाना जाता है. बाबा की पूजा के बाद शिव भक्त बटुक भैरव की पूजा अवश्य करते हैं. कई बार महाकाल की पूजा के लिए घंटों कतार में लगना पड़ता है.
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण बौद्धकाल में हुआ. इस मंदिर में शिव रूपी महाकाल के साथ शक्ति स्वरूपा महाकाली का अपना महत्व है. महाकाल भैरव मंदिर की बनावट अन्य मंदिरों से अलग है. इस मंदिर में दो शिखर हैं. पहला शिखर पिरामिडनुमा है. इसकी लंबाई लगभग 25 फुट व चौड़ाई लगभग 35 फुट है. इसके बाद मंदिर की छत है. महाकाल भैरव के मुख्य शिखर की लंबाई लगभग 40 फुट, चौड़ाई लगभग 35 फुट है.
महाकाल भैरव के शिखर पर तांबे का कलश है. इसके ऊपर पंचशूल भी है. शिखर के गुंबद के नीचे गहरे नीले रंग से रंगा हुआ है. इस मंदिर की बनावट अन्य मंदिरों से अलग है. महाकाल भैरव का मंदिर मुख्य मंदिर के दक्षिण में स्थित है. इसके दो दरवाजे हैं. मुख्य दरवाजा दक्षिण दिशा की ओर है, जबकि दूसरा दरवाजा पश्चिम की ओर निकलता है.
इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए मंदिर प्रांगण से सर्वप्रथम दो सीढ़ियों को पार करके भक्त महाकाल भैरव के प्रांगण में पहुंचते हैं. सामने पीतल के दरवाजे को प्रणाम करके गर्भ गृह में प्रवेश करते हैं. इसके बाद महाकाल भैरव के दर्शन होते हैं. यहां महाकाल भैरव आसन मुद्रा में बैठे काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है. इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 5 फुट है.
महाकाल भैरव के दायें हाथ में सोटा है. माना जाता है कि दोषियों को भगवान महाकाल इसी सोटा से पीटते हैं. महाकाल भैरव की तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है. मंदिर स्टेट की ओर से भैरो चतुर्दशी को महाकाल भैरव की वार्षिक पूजा षोड्शोपचार विधि से होती है. इसके अलावा मठपति परिवार की ओर से सालों भर पूजा की जाती है. भैरो चतुर्दशी व भैरवा अष्टमी को मठपति परिवार की ओर से विशेष पूजा की जाती है.
महाकाल भैरव के गर्भ गृह से निकलते ही बायीं ओर सफेद पत्थर का बड़ा सोटा है. भैरव की पूजा के उपरांत इसकी पूजा का विशेष महत्व है. महाकाल भैरव का भव्य महाशृंगार किया जाता है. भगवान महाकाल भैरव को रोट का विशेष भोग लगाया जाता है. भक्त साल भर महाकाल भैरव की पूजा कर सकते हैं.
अश्विन मास की नवरात्रि में पंचमी तिथि से महाकाल मंदिर व जगत जननी मंदिर में राजहंस परिवार द्वारा अखंड दीप जलाया जाता है. यह दशमी तक जलता है. इसे गह्वर पूजा कहते हैं. इस मंदिर में प्रवेश करते ही मठपति परिवार के वंशज महाकाल भैरव प्रांगण में अपने यजमान को संकल्प पूजा कराने के लिए अपनी गद्दी पर विराजमान रहते हैं.
Posted By : Mithilesh Jha