डॉ मोती लाल द्वारी, शिक्षाविद. सृष्टि पंचक – बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशूल पांच प्रकार की सृष्टि का भी उल्लेख करता है, तमो गुणी सृष्टि, स्थावर सृष्टि, तिर्थक्रश्रोता सृष्टि, ऊर्ध्वश्रोता सृष्टि और अर्वाक्स्रोता सृष्टि.
तमोगुणी सृष्टि – सर्वप्रथम असावधानी में धाता ने पापपूर्ण तमोगुणी सृष्टि की. इसे पंचपर्वा अविद्या की श्रेणी में रखा गया है.
स्थावर सृष्टि – इसकी अंतर्गत स्थावर-संज्ञक वृक्षादि की सृष्टि हुई
तिर्यक्स्रोता सृष्टि- पशु पक्षी आदि की सृष्टि, यह सृष्टि के नाम के अंतर्गत है, यह सृष्टि भी पुरुषार्थ का साधक नहीं था.
ऊर्ध्वस्राेता सृष्टि – यह सात्विक सृष्टि देवसर्ग के नाम से विख्यात हुआ. यह सृष्टि सत्यवादी तथा अत्यन्त सुखसयक है तथापि पुरुषार्थ साधन की रूचि एवं अधिकार से रहित है.
अर्वाक्स्रोता सृष्टि – इस सर्ग या सृष्टि के प्राणी मनुष्य हैं. ”अर्वाक का अर्थ ऊपर-नीचे आगे-पीछे सभी हैं. यह शब्द बड़ा ही अर्थ पूर्ण है.
देव सृष्टि भी मनुष्य सृष्टि के नीचे
मनुष्य अपने कर्म से ऊपर उठकर संस्कृति में जिने का अधिकारी हो सकता या अपने कर्म से नीचे भी गिरकर विकृति में जी सकता है. वह नीच में, प्रकृति में जीने का अधिकारी नहीं है. सभी जीव-जंतु खग-मृगादि प्रकृति में जीने के अधिकारी हैं. वे न तो संस्कृति में जी सकते हैं और न विकृति में. केवल मनुष्य योनि संस्कृति और विकृति दोनों में जी सकते हैं. मनुष्यों को अपने कर्म में सावधान रहने की आवश्यकता है. आत्म-ज्ञान का अधिकार ईश्वर ने केवल मनुष्यों को ही दिया है. यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह उस ब्रह्म की ऊंचाई को भी छूये पवित्र होकर विकृत जीवन जीने लगे. ऊर्ध्व स्रोता सृष्टि या देव सृष्टि भी मनुष्य सृष्टि के नीचे क्रम में है. मनुष्य यदि देव-सृष्टि में भी चला जाता है तो यह उसका ह्रास है,क्योंकि देव-योनि भी योग- योनि है.सात्विक कर्मनल से देव योनि मिलती है, स्वर्ग का सुख भी मिलता है किंतु सात्विक -वर्ग का भी धीरे-धीरे क्षय होता है. देव-योनि की जमा पूज्य राशि घटती ही जाती है, इस योनि में आगे बढ़ने का कोई उपाय नहीं है. आगे बढ़ने का उपाय केवल मनुष्य योनि को ही है.
मनुष्य शरीर देवताओं को भी दुर्लभ
एकदिन देवयोनि के पुण्य का क्षय होते-होते वह निकृष्ट योनि में चला जाता है. राजानहुष को स्वर्ग में इंद्र का पद मिला था. पुण्य का क्षय होने पर वे पतित होकर अजगर बन गया. उसी प्रकार राजा नृगको गिरगिट की योनि प्राप्त हो गयी. देव योनि की गति केवल नीचे की ओर ही है. पहले तीन प्रकार की सृष्टि के जीव सदा आगे बढ़ेंगे, पीछे नहीं लौटेंगे और एक दिन मनुष्य योनी प्राप्त करेंगें. केवल मनुष्य योनि में आगे-पीछे दोनों ओर गति है. मनुष्य सावधान रहे रहे. मनुष्य तुलसी कहते हैं- यह मनुष्य शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है. यह साधन का धाम तथा मोक्ष का दरवाजा है. इस शरीर को पावर भी जिसने परलोकन बना लिया, वह परलोक में भी दुख ही पाता है. सिर पीट-पीटकर पछताता है. तथा अपनी गलती को न मानकर काल पर, कर्मपर और ईश्वर पर मिथथ दोष मढृता हे. इस मनुष्य शरीर के प्राप्त होने का फल विजयन्योग नहीं है. स्वर्ग का योग बहुत थोड़ा है. और अंत में दुखदायी है. अतः जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषय-योगों में बहुत अपना मन लगा देते हैं, ने मूर्ख अमृत को देकर बदले में विष ले लेते हैं. पारस पत्थर देकर जो बदले में लाल रंग के आकर्षण में कट रंगनी धुंधनी ले लेते है. उन्हें बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता है.
ऐसा व्यक्ति ही निम्नतर लाखों योनियों में चक्कर लगाता रहता है. मायाब्दी प्रेरणा से कल कर्म स्वभाव और गुणों के वशीगत सदा भटकता रहता है. किया कारण स्लेह करने वाले ईश्वर कभी विरले ही दया करके मनुष्य का शरीर दे देते है. यह मनुष्य शरीर भव सागर को पार लगाने वाला जहाज है. ईश्वर की कृपा अनुकूल वायु है. सदगुरू इस जहाज के कर्णधार हैं. ऐसे साधन पाकर भी जो मनुष्य भवसागर से न तरे, वह कृतघ्न, मंदबुद्धि तथा आत्म हत्यारा है. उसे आत्म-हत्या करने वाले वी गति प्राप्त होती है. सृष्टि पंचक में जिस तमोगुणी सृष्टि कसे को असावधानी में की गयी सृष्टि कही गयी है. उसका भी बड़ा महत्वपूर्ण संकेत है. अपने पाप-कर्म में लिप्त पतित मनुष्य की धीरे- धीरे अंतिम पायदान पर पर भी पहुंच सकता है. मनुष्य को अति सावधान रहने की आवश्यकता है.
”घटे तो बस मुश्त खाक है. इन्सां। बढ़े तो जन्नत भी अदना है प्यारे ।।
पंचशूल का इस सृष्टि पंचक का संकेत भी बड़ा महत्वपूर्ण है.
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