Prabhat Khabar Special: संताल परगना में खेती मुख्यत: बारिश पर निर्भर है. लेकिन, इस साल बारिश नहीं हुई, मानसून भी दगा दे गया है. ऐसे में किसानों की चिंता बढ़ गयी है, क्योंकि खेतों में बीचड़े सूख गये हैं. बुआई भी नाम मात्र की हुई है. ऐसी स्थिति में इस वर्ष संताल परगना में सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. दो वर्षों से कोरोना की मार झेलने के बाद किसान उस त्रासदी से उबरे, तो अब कृषि संकट को लेकर परेशान हैं. एक ओर जहां किसानों को धान नहीं होने की चिंता सता रही है, वहीं दूसरी ओर उन्हें यह चिंता भी खाये जा रही है कि कर्ज लेकर जो खेती के संसाधन जुटाये, खेतों को तैयार किया, बीज खरीदे वो पैसा भी नहीं आयेगा. धान की फसल से ही पशुओं का चारा भी मिल पाता था, अब तो उस पर भी संकट आने वाला है. जबकि पिछले वर्ष 2021 में धान की अच्छी फसल हुई थी.
पर्याप्त बारिश नहीं होने से खेतों में न हो सकी बुआई
संताल परगना में इस वर्ष सुखाड़ की स्थिति हो गयी है. पिछले वर्ष की तुलना में इस बार जून-जुलाई महीने में पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण धान का न बिचड़ा तैयार हो पाया है और न ही बुआई हो सकी है. इस बार संताल परगना के सभी जिले में किसानों के सामने गंभीर कृषि संकट उत्पन्न हो गया है. संताल परगना में कृषि विभाग ने 3 लाख 64 हजार 500 हेक्टेयर धान की खेती का लक्ष्य रखा था, इसके एवज में अभी तक मात्र 9 हजार 247 हेक्टेयर ही बुआई हो पायी है. इस तरह पूरे प्रमंडल की बात करें, तो मात्र 2.5 प्रतिशत ही धान की बुआई हो पायी है. इसका मुख्य कारण है, बारिश का नहीं होना. संताल परगना में सामान्य वर्षापात 316.75 एमएम होने की संभावना रहती है, जबकि 20 जुलाई तक मात्र 34.51 एमएम ही बारिश हुई है. इस तरह संताल परगना के सभी जिले देवघर, दुमका, गोड्डा, पाकुड़, साहिबगंज और जामताड़ा में सुखाड़ की भयावह स्थिति होने वाली है. लक्ष्य के अनुसार इस बार धान होना तो दूर, पशुओं के चारे तक के लिए भी संकट होने वाली है.
सबसे कम धनरोपनी जामताड़ा देवघर और दुमका में
संताल परगना जो पिछले दो सालों में धान का कटोरा बनकर उभर रहा था. इस वर्ष सुखाड़ की मार झेल रहा है. प्रमंडल में सभी जिले में धनरोपनी की स्थिति चिंताजनक है. इसमें सबसे कम धनरोपनी जामताड़ा, देवघर और दुमका जिले में हुई है. जामताड़ा में 0.10 प्रतिशत, देवघर में 1.06 प्रतिशत और दुमका में रोपा का प्रतिशत मात्र 0.44 प्रतिशत ही है. पूरे संताल परगना की बात करें, तो किसी भी जिले में सात प्रतिशत से अधिक रोपनी नहीं हुई है. अभी तक जो स्थिति है, उसमें गोड्डा में 5.20 प्रतिशत, पाकुड़ में 6.12 प्रतिशत और साहिबगंज में 6.08 प्रतिशत रोपा हुआ है.
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पिछले वर्ष हुई थी रिकार्ड धान की बुआई, इस वर्ष बिचड़े सूखे
पिछले वर्ष 2021 में संताल परगना के सभी छह जिले दुमका, देवघर, गोड्डा, पाकुड़, जामताड़ा एवं साहिबगंज में खरीफ में लक्ष्य से अधिक धनरोपनी हुई थी. माह सितंबर-2021 के आंकड़े के अनुसार, दुमका में 101.4 फीसदी धान रोपनी हुई थी. जबकि, गोड्डा में सर्वाधिक 105.5 फीसदी, जामताड़ा में 100 फीसदी धान की रोपनी हुई थी. साहिबगंज में 99.3, देवघर में 98.4 एवं पाकुड़ में लक्ष्य के विरुद्ध 96.7 फीसदी धान का रोपा हुआ था. 2021 में संताल परगना प्रमंडल में तय लक्ष्य 36,4625 हेक्टेयर भू-भाग पर धान की खेती का लक्ष्य तय था, इसके विरुद्ध 36,6304 हेक्टेयर भू-भाग धान की खेती हुई थी. जो तय लक्ष्य से 0.05 प्रतिशत अधिक थी. जबकि वर्ष 2020-21 में संताल परगना में धान की खेती का लक्ष्य 364500 हेक्टेयर तय किया गया था, जिसके विरुद्ध 356116 हेक्टेयर भू-भाग पर धान रोपनी हुई थी जो तय लक्ष्य का 97.7 प्रतिशत था.
80 फीसदी बिचड़ा हो चुका है नष्ट
इस वर्ष बारिश समय पर नहीं होने की वजह से देवघर में 80 प्रतिशत धान का बिचड़ा नष्ट हो चुका है. कृषि विभाग ने इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार को भेज दी है. कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त माह में अभी तक अनुमान से केवल सात प्रतिशत बारिश हुई है. नदी और जोरिया के आसपास 0.2% रोपनी हुई है. देवघर जिले में कुल 57,000 हेक्टेयर में धान की खेती करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. उस अनुसार रोपनी काफी कम है. किसान अब सनम रोपनी की उम्मीद भी छोड़ चुके हैं. कई इलाकों में बारिश होने के बावजूद भी अब रोपनी संभव नहीं है, निचले इलाके में जहां धान का बिचड़ा अभी भी है, वहां भी उसमें पीलापन आ गया है. कृषि विभाग के अनुसार वर्ष 2018 में अगस्त माह तक रोपनी 100 प्रतिशत पूरा होने के बाद बारिश नहीं होने से सुखाड़ की स्थिति हो गयी थी. वर्ष 2021 में 10 अगस्त तक 90 प्रतिशत रोपनी देवघर जिले में हो चुकी थी. हालांकि बारिश नहीं होने की वजह से इस वर्ष स्थिति काफी दयनीय हो गयी है.
अब रोशनी की सारी उम्मीदें टूट गयी
इस संबंध में मोहनपुर के कोदो महतो ने कहा कि शुरुआत में रोहन नक्षत्र में बारिश होने से धान का बिचड़ा खेतों में डाल दिया था. पर लगभग 90% नष्ट हो चुका है. अब अगर बारिश भी हो जायेगी तो रोपनी संभव नहीं है.
महज 0.4 प्रतिशत हुई रोपनी
दुमका जैसे जिले जहां संताल परगना के कुल प्रक्षेत्र 364500 में से अकेले 111000 हेक्टेयर में धानरोपनी होती रही है. वहां अब तक महज 0.4 प्रतिशत ही रोपाई हो सकी है. एक साल पहले इसी दिन तक 79.6 प्रतिशत आच्छादन पूरा हो गया था. उस वक्त दुमका में 111000 हेक्टेयर के विरुद्ध 90656 हेक्टेयर में बुआई हो गयी थी. जून-जुलाई में इतनी कम बारिश पिछले बीस सालों में कभी नहीं हुई. 2018 व 2019 में जुलाई महीने में उतनी बारिश तो हुई थी, जिससे किसान धनरोपनी खेतों में कर पाये थे. लेकिन अगस्त व सितंबर महीने में अपेक्षाकृत बारिश नहीं हो सकी थी. उस वक्त भारत सरकार की टीम ने इस इलाके का दौरा भी किया था. इस इलाके में सिंचाई का साधन बहुत ही कम क्षेत्र में है. ऐसे में वर्षा पर ही पूरी तरह निर्भरता रहती है. दुमका जिले में किसानों के खोतों में ही बिचड़े सूख गये है. इस कारण किसान काफी चिंतित हैं. अब तो खाने के लिए अनाज की किल्लत की चिंता सता रही है.
खेती नहीं हुई, तो खायेंगे क्या
किसान सलीम मरांडी ने कहा कि इस साल तो अब धान की खेती होने की स्थिति नहीं दिख रही है. हमलोगों का पूरा परिवार धान की खेती पर ही निर्भर करता है. खेती ही नहीं हुई तो खायेंगे क्या, मवेशियों को खिलायेंगे क्या?
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जिले में 6.1 फीसदी हुई रोपनी
पिछले साल जुलाई माह में ही धान रोपनी समाप्त हो गयी थी. लेकिन इस साल अभी तक शुरू नहीं हो पायी है. पिछले साल मई माह में 159.5 एमएम, जून माह में 300.8 एमएम और जुलाई माह में 294.5 एमएम बारिश हुई थी. इस साल जून माह में 81.4 और जुलाई माह में 80.1 एमएम बारिश हुई. इस कारण धान रोपनी शुरू ही नही हो पायी है. जिले में अब तक 6.1 फीसदी धान रोपनी ही हो पायी है. पाकुड़ जिले की स्थिति भी बेहतर नहीं कही जा सकती है जहां अभी तक 70-80 फीसदी रोपा हो जाता था, अभी तक महज कुछ प्रतिशत ही हुई है. हालांकि यह नदी, नालों और झरनों के आस-पास के इलाकों में ही हो पायी है. किसान बताते हैं कि अगर ऐसी ही स्थिति रही तो भुखमरी की नौबत आ जायेगी. वे कहते हैं कि ऐसी स्थिति 1970 के दशक में भी देखने को मिली थी, उस वक्त भुखमरी की स्थिति आ गयी थी. अब यदि इस बार थोड़ी भी बारिश नहीं हुई तो इस साल स्थिति दयनीय हो जायेगी. जो कर्ज लिये हैं, उसे कैसे चुकायेंगे.
अब तक रोपनी शुरू नहीं हो सका
गोपालपुर के सुकुमार मंडल ने कहा कि लगभग 10 बीघा खेती की जमीन है. लेकिन समय पर माॅनसून में बारिश नहीं होने के कारण धान रोपनी कार्य अबतक शुरू नहीं हुआ है. इससे काफी नुकसान हुआ है.
सामान्य से 65 प्रतिशत कम बारिश
जिले में धान की रोपाई मात्र 5.2 प्रतिशत ही हो पायी है. कृषि विभाग के आंकड़े के मुताबिक जिले में 51500 हेक्टेयर में धान की फसल का लक्ष्य निर्धारित है. लेकिन अभी तक यहां मात्र 2678 हेक्टेयर में ही बुआई हो पायी है. जुलाई माह में बारिश नहीं होने के कारण इसका सीधा प्रभाव धनरोपनी पर पड़ा है. इस वर्ष 65 प्रतिशत कम बारिश हुई है. एक जून से अब तक सामान्य वर्षापात 488 मिमी की तुलना में मात्र 165 मिमी ही हो पायी है. चार पांच दिन पूर्व जिले का वर्षापात 73 मिमी कम था, मगर दो तीन दिनों की बारिश में वर्षापात का अंतर घट गया है. 2019 में जून माह में सामान्य वर्षापात 186.9 के विरुद्व 62.6 मिमी दर्ज की गयी थी. विभाग के अनुसार धनरोपनी का कार्य 15 अगस्त तक होता है. अभी थोड़ा समय है. अभी भी बारिश सामान्य सो जाये तो किसानों की स्थिति थोड़ी बहुत सुधर सकती है. लेकिन अब सबकुछ इंद्र देवता पर ही निर्भर है. किसान आज भी आसमान की तरफ टकटकी लगाये हुए हैं.
अब रोशनी की सारी उम्मीदें टूट गयी
प्रगतिशील किसान अतुल कुमार दुबे ने कहा कि जिले के किसानों के सामने विकट स्थिति आ गयी है. पोखर व अन्य साधनों से किसान पानी की व्यवस्था कर खेती बचाने में जुटे हैं. खेती का समय भी मात्र 10-15 दिन ही बचा है.
22 वर्षों में दूसरी बार सुखाड़ की स्थिति, किसान मायूस
साहिबगंज में 22 वर्षों में ऐसा दूसरी बार हुआ है कि जब जिले में जून-जुलाई में बारिश काफी कम हुई है. बारिश कम होने का सीधा असर खरीफ फसल की बुआई पर पड़ा है. जिले में ऐसा पहली बार हुआ है कि मॉनसून की शुरुआत और सावन में कम बारिश हुई. धान का ज्यादातर बिचड़ा सूख गया है. इस वर्ष ज्यादातर किसान धान की खेती करने से वंचित हो रहे हैं. कम बारिश होने से जिला सुखाड़ की ओर जा रहा है. किसान का फसल नष्ट होने से उनमें मायूसी छा गयी है. कृषि विभाग के आंकड़े को देखें तो वर्ष 2021 में जिले में 10 अगस्त तक 45 हजार 408 हेक्टेयर भूमि में धान रोपनी का कार्य हो गया था. वहीं इस वर्ष अब तक मात्र 4 हजार 937 हेक्टेयर भूमि में ही धान रोपनी हुई है.
खेतों में ही जल गया बिचड़ा
किसान बेटा राम हेंब्रम ने कहा कि बारिश नही होने से हम किसानों का ज्यादातर धान का बिचड़ा खेतो में ही जल गया है. कुछ किसानों का ही धान का बिचड़ा अभी तक बचा है, वही अभी धान रोपनी कर पा रहे हैं.
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बारिश नहीं होने से किसान परेशान, खेती पर छाया संकट
इस वर्ष जामताड़ा जिले में भी बारिश नहीं होने के कारण धान की खेती पर संकट है. प्रचंड धूप एवं गर्मी से खेत में लगे धान के बिचड़े झुलस कर सूखने लगे हैं. बारिश नहीं होने से किसान परेशान हैं. उम्मीदें अब खत्म होती जा रही है. बारिश के अभाव में इस वर्ष किसान धान रोपनी नहीं कर सके. जिले में जुलाई माह में मात्र 72.50 मिमी बारिश हुई है. इस कारण जिले भर में धनरोपनी मात्र 0.20 प्रतिशत ही हुई है. इसके अलावा अगस्त माह में 22.50 मिमी, जून माह में 70.30 मिमी बारिश हुई है. वहीं आंकड़े में अनुसार पिछले वर्ष 2021 में जिले भर में 1824.94 एमएम बारिश हुई थी. वर्ष 2020 में 994.90 एमएम बारिश हुई थी. बारिश कम होने से स्थिति भयावह हो गयी है.
पानी के अभाव में बिचड़े सूखे
नारायणपुर स्थित लक्ष्मीपुर के रविलाल हेंब्रम ने कहा कि हर साल अपनी दो एकड़ जमीन पर धान की खेती करते हैं. इस वर्ष भी लगभग 5000 रुपये का उन्नत बीज बाजार से खरीद कर लगाये. लेकिन बिचड़े सूख गये हैं.
रिपोर्ट : देवघर से संजीत मंडल और अमरनाथ पोद्दार, दुमका से आनंद जायसवाल, गोड्डा से निरभ किशोर, पाकुड़ से उमेश यादव और साहिबगंज से सुनील ठाकुर.