संथाल की विशिष्ट संस्कृति व पारंपरिक न्याय व्यवस्था
संथाल जनजाति अपनी विशिष्ट संस्कृति और परंपरागत न्याय व्यवस्था के लिए जानी जाती है. इनकी संस्कृति ही पहचान है. घर से बाहर खेत-खलिहान, हाट-बाजार जहां भी मुलाकात हो गयी.
आजादी का अमृत काल मना रहा भारत अपनी जनता की समस्याओं से अनभिज्ञ-सा रहा है. झारखंड सहित देश के विभिन्न राज्यों में निवास करने वाली संथाल जनजाति की स्थिति कमोवेश आज तक निरीह प्राणी की रही है. अपने संरक्षण प्रयासों और प्रकृति के साथ संबंधों के लिए पहचाने जाने के बजाय आदिवासी समुदाय विकास की कीमत चुका रहा है. जल, जंगल और जमीन के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों ने जंगल की सफाई की. गांव बसाये और खेती कर उन क्षेत्रों में निवास किये.
आदिवासी और कूल समुदायों की भाषाई व सांस्कृतिक पहचान उन्हीं जंगलों, नदियों और पहाडों के बीच प्रकृति की गोद में विकसित हुई. बदलाव और संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को देखते हुए यदपि लुकूर समिति के द्वारा स्थापित मानदंडों को अप्रासंगिक कहा तो गया, लेकिन आज भी उनके मानदंड ही प्रचलन में हैं.
संथाल जनजाति अपनी विशिष्ट संस्कृति और परंपरागत न्याय व्यवस्था के लिए जानी जाती है. इनकी संस्कृति ही पहचान है. घर से बाहर खेत-खलिहान, हाट-बाजार जहां भी मुलाकात हो गयी. एक दूसरों का अभिवाहन डोबोक जोहार सभ्य समाज की सभ्यता सिखाती है. घर आये मेहमानों का कुशल क्षेम पूछना, लोहा और थाल लेकर पैर पखारना हृदय को आनंदित करता है. जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कार का जिस परंपरागत तरीके से इस समुदाय में निर्वहन किया जाता है.
जिस सादगी का आत्ममिलन होता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है. जन्म के पश्चात डगरीन दाई द्वारा बच्चे का नाल तांबे के पैसे में रखकर नुकीले तार से काटा जाना, छठी का आयोजन करना, छूत से निजात के लिये नाई द्वारा नख, बाल की कटाई, नीम दाक हांडी (एक प्रकार का औषधीय पेय), नामकरण संस्कार, पहले नीमदाक हांडी ग्राम नायकी पीता है, फिर गांव के पांच लोगों को दिया जाता है. फिर प्रसूता मां तथा अन्य सभी आगंतुकों के बीच वितरित किया जाता है.
इसी प्रकार प्रकृति प्रेमी आदिवासी परंपरागत तरीके से पूजा-पाठ करते हैं. इसमें किसी पुरोहित की आवश्यकता नहीं होती. सभी प्रकार की पूजा नायकी आमस्तर पर कुडोम नायकी गांव से बाहर तथा देहरी पहाड़ वन में शिकार के समय करते हैं. विशेष रूप से मरांग बुरू,जाहेर इरा, गोसांय इहा, मांझी बल जाहेर थान, परगना बोंया, सीमा बोंगा आदि की पूजा की जाती है. विभिन्न अवसरों पर लड़कियां, महिला, साकोम, बांह में खागा, गले में हंसली, शिकानों में सोने व चांदी से निर्मित, नाक में प्रकड़ी, पांव में बांक, बकडी, पांवों की अंगुलियों में बहरिया जैसे पारंपरिक गहने पहनती हैं.
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वैसे ही पुरुष कानों में कुंडल के साथ-साथ फूल-पत्तियों से सजते-संवरते हैं. संथाल जनजाति मुख्य रूप से परंपरागत वेषभूषा यथा कुपनी, कांच पंची, पारहाड़, दहडी, पाटका, गोदना, झंख, कांये, पीतल, तांबा तथा सोने, चांदी के गहने पहनते हैं.
चार स्तरों की है न्याय व्यवस्था
संथाल जनजाति में परंपरात और सुदृढ न्याय व्यवस्था स्थापित है. ग्रामस्तर पर मांझी, गौडेन, नायकी, कुडोम बापकी, मोड़े के साथ-साथ कई गांवों अथवा प्रखंड स्तरीय परगनैत होते हैं. इनकी न्याय व्यवस्था चार स्तरों पर होती है. आतो बैसी, विगर बैसी, मोड़े मांझी बैसी, दिशोम मांझी बैसी, लो बीर बैसी,आतो बैसी. ग्राम स्तर पर घटित घटनाओं या विवाद को सुलझाने के लिए ग्राम प्रधान तथा उनके सहयोगियों द्वारा फैसला किया जाता है.
बिगर बैसी- मोड़े मांझी बैसी वैसे मामले जो ग्राम प्रधान के स्तर से नहीं सुलझाये जाते या फैसला नहीं माना जाता, ऐसी स्थिति में आसपास के पांच या सात गांवों के ग्राम प्रधान एक साथ बैठक कर न्याय संगत फैसला देते हैं. दिशोम मांझी बैसी- लडाई-झगड़ा विशेष के साथ महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं. लो बीर बैसी- संगीन अपराध गैर जाति से यौन संबंध, गैर गोत से यौन संबंध या विवाह निशिद्ध यौन संबंध अपने सगे संबंधी आदि में बिठलाहा की कार्रवाई हेतु लो वीर वैसी का आयोजन किया है.
इसमें आरोपी या आरोपित परिवार काे समाज से अलग कर दिया जाता है. हुक्का पानी, किसी प्रकार का किसी से संबंध नहीं रखने का फरमान जारी होता है. घर बार तोड़ दिये जाते हैं. संपति नष्ट कर दिये जाते हैं या लूट लिए जाते हैं. आरोपित के घर में मल मूत्र त्याग करते हैं. विशेषकर जनजाति समुदाय में परिवार, विभाजन, संपत्ति बंटवारा, विवाहित कन्या संबंधी झगड़े, पति-पत्नी का झगड़ा, अत्याचार, बलात्कार, कन्या अपहरण, निश्श्चित यौन संबंध तथा भूत या डायन संबंधी मामलों का निष्पादन करते हैं.