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बाबा बैद्यनाथ के साथ महाशक्ति हैं विराजमान, गायत्री मंत्र बताता है शिव-तत्व, जानें भू-भुव-स्व: का मतलब

बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर स्थित पंचशूल शिव-तत्व के वाहक पांच महामंत्रों को बतलाता है. तत्वमसि, गायत्री, मृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र और चिंतामणि मंत्र. इसमें तत्वमसि मंत्र की चर्चा पिछले अंक में हो चुकी है. आज हम गायत्री मंत्र की चर्चा करेंगे.

डॉ मोतीलाल द्वारी. गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर हैं और जो चारों पुरुषार्थ रूपी फल देने वाला है. जो गायी जाये, वह गायत्री है. जो चलती जाये, वह गायत्री है. जो साधक को भूमि से उठा कर भूमा तक ले जाने में समर्थ तथा गतिशील है, वह गायत्री है. जो गायक को ”परे स्थिति” में पहुंचाकर पतन से त्राण दे दे, वह गायत्री है. जो ज्योतिर्मयलिंग स्वरूप प्रभाकर की प्रभा है, वह गायत्री है. जो हृदय में स्थित अनाहत चक्र के द्वादश दल कमल को अपने अरुण चरण स्पर्श से ज्योतिर्मय बना देती है, वह गायत्री है. जो पंचानन शिव के श्रीविग्रह की पंचानना श्री रूपिणी शिवा है, वह गायत्री है.

भू:,भुव:,स्व: का मतलब

गायत्री के व्याहृतियों के संबंध में तैत्र रीयोपनिषद के पंचम वाक्य में आया है. भू:,भुव:,स्व: ये तीन प्रसिद्ध व्याहृतियां हैं. उन तीनों की अपेक्षा से जो चौथी व्याहृति ”मह” नाम से प्रसिद्ध है. यह ”मह:” ही ब्रह्म है, वह आत्मा है. अन्य सब देवता उसके अंग हैं. भू: यह व्याहृति ही यह पृथ्वी लोक है. भुव:, यह अंतरिक्ष लोक है. स्व:, ही वह प्रसिद्ध स्वर्ग लोक है. चौथी व्याहृति ”मह:” यह आदित्य है.आदित्य से ही समस्त लोक महिमान्वित होते हैं. इस मंत्र से स्पष्ट है कि आकाश को जन्म देने वाली वह आत्मा ही ब्रह्म है. यही चौथी भूमि हृदय में ”मह:” नाम से प्रसिद्ध है. यह ”मह:” ही ब्रह्म है, यही आत्मा है. यह हृदय में स्थित है. ”हृदि ह्येष आत्मा”, यही ज्योतिर्मय आदित्य है. यही हृदय पीठ में स्थित बैद्यनाथ ज्येतिर्लिंग है.

शिव और शिवा में अंतर नहीं

शिव और शिवा में कोई भेद नहीं है. शिव ही शिवा के रूप में सृष्टि रचते हैं. इसलिए सृष्टि मूल उमा है, अदिति हैं और गायत्री भी यही हैं. यही गायत्री कामेश्वर की कामेश्वरी हैं. यही गायत्री साधक को भू, भुव, स्व से उठाकर चौथी भूमि ”मह” में ले जाती है. गायत्री मंत्र में इसी चौथी भूमि में ले जाने के लिए प्रार्थना की गयी है. चौथी भूमि में गायत्री शिव तत्व से मिलाप कराती है. इसी चौथी भूमि हृदय में लाकर गायत्री साधकों को अपने श्री चरणों में स्थान देकर अपने गायक को पतन से उबार लेती है.

गायत्री की तीन व्याहृतियां ही तीनों वेद हैं

शिव पुराण के कैलाश संहिता में आया है कि ये भगवती गायत्री साक्षात ईश्वर शंकर के आधे शरीर में वास करने वाली हैं. गायत्री संपूर्ण जगत की माता, तीनों लोकों की जननी, त्रिगुणमयर, निर्गुणा तथा अजन्मा है. गायत्री की तीन व्याहृतियां ही तीनों वेद हैं. इसलिए गायत्री को वेद माता भी कहा गया है. तैत्तिरीयो उपनिषद्- पंचम अनुवाक के द्वितीय चरण में आया है, ”भू:” यह व्याहृति ही ऋग्वेद है. भुव :, यह साम वेद है. स्व: यह यजुर्वेद है, ”मह:” यह ब्रह्म है. ब्रह्म से ही समस्त वेद महिमावान होते हैं. ”मह:” की भूमि हृदय है. इसी हृदय पीठ में बैद्यनाथ के साथ यह महाशक्ति स्थित है. गायत्री कामेश्वरी हैं, ओंकारेश्वरी हैं. अपने चौबीस अक्षर युक्त मंत्र रूप में प्रकट होकर वह अपने साधक के शरीर में स्थित चौबीस तत्वों को पवित्र करती हुई उसे ”मह:” की भूमि में आसीन कराने की कृपा करती है. ”मह:” ही भूमि हृदयपीठ है, जहां श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग विराजते हैं.

गायत्री का अग्नि मुख है. अग्नि में बहुत सा इंधन भी डालें, तो वह अग्नि उन सबों को भस्म कर देती है. उसी प्रकार गायत्री मंत्र साधक के सारे दोषों को मिटाकर उसे शुद्ध कर देता है. साधक अग्नि के समान पवित्र रहकर अजर अमर हो जाता है.

नोट : मृत्युंजय मंत्र जानकारी अगले अंक में दी जाएगी, बने रहे प्रभात खबर के साथ…

(लेखक डॉ मोतीलाल द्वारी, शिक्षाविद् सह हिंदी विद्यापीठ के पूर्व प्राचार्य हैं)

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