सुबोध झा (शिक्षाविद). द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नवम, कामना लिंग बाबा बैद्यनाथ की दैनिक पूजन पद्धति अनेक अलौकिक शास्त्रीय परंपराओं का अदभुत समागम है. यहां चतुष्प्रहर विभिन्न विन्यासों द्वारा शिवलिंग की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, जिसमें प्रत्येक दिन संध्या काल में बाबा बैद्यनाथ की शृंगार पूजा का अपना विशिष्ठ धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व है. कल्पनाओं से परे यहां की परंपरा इस शृंगार पूजा को ओर आकर्षक बनाती है.
अंग्रेजों के समय से चली आ रही है परंपरा
प्रत्येक दिन शृंगार के समय बाबा के ऊपर पुष्प मुकुट अर्पित किया जाता है, जिसका निर्माण जेल में कैदियों के द्वारा किया जाता है. यह परंपरा अंग्रेजों के समय से चली आ रही है, जिसका मुख्य उद्देश्य शायद अपराधियों को सुमार्ग पर लाने की हो. इस मुकुट के निर्माण की सामग्री जेल में प्रतिनियुक्ति सुरक्षा बलों के द्वारा भ्रमण कर एकत्रित किया जाता है और जिस कैदी के द्वारा उसका निर्माण होना होता है उसे दिनभर जेल में अवस्थित छोटे से मंदिर में उपवास के साथ रहकर सात्विक विचारों के साथ करना पड़ता है. संध्या काल में यह मुकुट सुरक्षा प्रहरियों के द्वारा नगर भ्रमण करते हुए बम भोले के जय घोष के साथ मंदिर लाया जाता है, जहां पुजारी उसे भोलेनाथ को अर्पित करते हैं. पुजारी को भी दिनभर पानी के एक बूंद के बिना (निर्जला) रहकर शृंगार करना होता है.
शृंगार देखने भर से मिलता है अलौकिक आनंद
बाबा बैद्यनाथ का शृंगार की क्रिया विधि को देखने से अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है. लगता है हम भक्ति के सागर में गोते लगा रहे हैं. शृंगार के समय मलमल के नव वस्त्र के साथ शिवलिंग को साफ किया जाता है जिसके बाद सवा किलो पीसा हुआ चंदन शिवलिंग के ऊपर रखा जाता है और विभिन्न प्रकार के पुष्पों इत्र व अन्य सामग्री के द्वारा उनका पूजन किया जाता है और अंत में पुष्प मुकुट से उनको सुसज्जित किया जाता है. यह प्रक्रिया घंटों तक चलती है.
बाबा पर अर्पित फुलेल के सेवन से मिलती है असाध्य रोगों से मुक्ति
बाबा पर अर्पित फुलेल (एक विशेष प्रकार का इत्र) को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की होड़ लग जाती है. कहते हैं कि फुलेल के सेवन से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है. शृंगार के उपरांत भोले नाथ को भोग भी लगाया जाता है जो समसामयिक उपलब्ध सामग्रियों से निर्मित होता है. शृंगार की प्रक्रिया में पुजारी के अतिरिक्त अनेक परिवारों की भी उपादेयता रहती है. सुबह कांचा पूजा के पहले शृंगार के आवरण को हटाया जाता है और माना जाता है कि चंदन (घामचंदन) को नित दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है.
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