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बाबा बैद्यनाथ धाम में महाकाली के साथ महाकाल हैं विराजमान, तांत्रिक विधि से होती है कालभैरव की पूजा

बाबा बैद्यनाथ मंदिर प्रांगण में बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, मां पार्वती सहित विभिन्न देवी-देवताओं के कुल 22 मंदिर अवस्थित हैं. मंदिरों का अपना पौराणिक इतिहास व महत्ता है. इनके बारे में रोचक कहानियां हैं. हर एक मंदिर की जानकारी हम आपको देंगे. आज पढ़ें महाकाल भैरव मंदिर के बारे में...

By Prabhat Khabar News Desk | July 9, 2023 3:49 PM
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Baba Dham Deoghar: देवघर के बाबा मंदिर में स्थित सभी 22 देवी देवताओं का अलग अलग महत्व है. सभी मंदिरों का अपना पौराणिक इतिहास व महत्ता है. इनके निर्माण व निर्माणकर्ता के बारे में रोचक कहानियां हैं. सावन के पहले दिन हमने आपको मां पार्वती मंदिर के बारे, दूसरे दिन मां जगतजननी व मां संकष्टा मंदिर, तीसरे दिन भगवान गणेश मंदिर, चौथे दिन मां संध्या मंदिर और पांचवे दिन चतुर्मुखी ब्रह्मा मंदिर के बारे में जानकारी दी. आज हम आपको महाकाल भैरव मंदिर के बारे में बताएंगे.

बाबा बैद्यनाथ मंदिर प्रांगण में भक्त बाबा के स्वरूप बटुक भैरव की पूजा करते हैं. इस मंदिर में भगवान महाकाल व महाकाली स्वयं विराजमान हैं. इस मंदिर का निर्माण बौधकालीन युग में हुआ है. इस मंदिर से शिव रूपी महाकाल के साथ शक्तिरूपी महाकाली का महत्व है. महाकाल भैरव मंदिर की बनावट अन्य मंदिरों से अलग है. इस मंदिर में दो शिखर है. पहला शिखर पिरामिडनुमा है, इसकी लंबाई लगभग 25 फीट व चौड़ाई लगभग 35 फीट है. उसके बाद मंदिर की छत है. इसके बाद महाकाल भैरव का मुख्य शिखर इसकी लंबाई लगभग 40 व चौड़ाई 35 फीट है. महाकाल भैरव के शिखर पर तांबे का कलश है. इसके ऊपर पंचशूल भी लगा है. शिखर के गुंबद के नीचे गहरे नीले रंग से रंगा हुआ है.

तांत्रिक विधि से होती है महाकाल भैरव की पूजा

महाकाल भैरव का मंदिर मुख्य मंदिर दक्षिण की ओर है. इसके दो दरवाजे हैं एक पूरब और पश्चिम में, दूसरा उत्तर की ओर है. इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए मंदिर प्रांगण से सर्वप्रथम प्रथम दो सीढ़ियों को पार करके भक्त महाकाल भैरव के प्रांगण में पहुंचते हैं. सामने पीतल के दरवाजे को भक्त प्रणाम कर सिर झुका कर गर्भ गृह में पहुंचते हैं. जहां महाकाल भैरव के दर्शन होते हैं. जहां महाकाल भैरव आसन मुद्रा में बैढ़े काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है. इस मूर्ति की ऊंचाई पांच फीट है. महाकाल भैरव के दाई हाथ में सोटा है. यहां पर भक्तों व पुजारी सभी के लिए प्रवेश व निकास द्वार का एक ही रास्ता है. यहां पर महाकाल भैरव की तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है.

महाकाल भैरव को लगता है रोट का विशेष भोग

मंदिर स्टेट की ओर से भैरो चतुर्दशी को महाकाल भैरव की वार्षिक पूजा विधि विधान से षोडशोपचार उपचार विधि से किया जाता है. इसके अलावा मठपति परिवार की ओर से सालों भर पूजा की जाती है. भैरो चतुर्दशी व भैरवाष्टमी को मठपति परिवार की ओर से विशेष पूजा की जाती है. भव्य महाश्रृंगार किया जाता है. इस अवसर पर भगवान महाकाल भैरव को रोट का विशेष भोग लगाया जाता है.

सफेद पत्थर का लिंग

महाकाल भैरव के गर्भ गृह से निकलते ही बायीं ओर सफेद पत्थर का लिंग निकला है जिसे भैरव का सौटा कहते है. भैरव की पूजा के बाद इसकी पूजा का विशेष महत्व है. इसके अलावा अश्विन मास के नवरात्रि के समय पंचमी तिथि से महाकाल मंदिर व जगत जननी मंदिर में राजहंस परिवार द्वारा अखंड दीप जलाया जाता है. जो दशमी को पूजा तक जलता है. इसे गह्ववर पूजा कहते हैं. इस मंदिर में प्रवेश करते ही मठपति परिवार के वंशज महाकाल भैरव प्रांगण में अपने यजमान को संकल्प पूजा कराने के लिए अपने गद्दी पर रहते हैं.

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