Shravani Mela: द्वादश ज्योतिर्लिंगों में बैद्यनाथ धाम क्यों है सबसे खास?
Shravani Mela: बैद्यनाथ धाम की श्रृगांर पूजा के वक्त इस्तेमाल होने वाला मुकुट जेल के कैदियों द्वारा तैयार किया जाता है. लोग 100 कि.मी पैदल चलकर भगवान शिव के दर्शन करने जाते हैं.
Shravani Mela: झारखंड के देवघर में स्थित बैद्यनाथ धाम भगावन शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक है. हर वर्ष सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन के लिए देवघर जाते हैं. लोग कांवर लेकर 100 किलोमीटर पैदल चलकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.
बाबाधाम मंदिर परिसर में हैं 22 अन्य मंदिर
आखिर क्यों शिव के भक्तों को अपने आराध्य का जलार्पण करने के लिए इतनी घोर तपस्या करनी पड़ती है. आईए, आपको बताते हैं कि सभी ज्योतिर्लिंगों में यह ज्योतिर्लिंग क्यों है खास? बाबा बैद्यनाथ के दरबार में मुख्य मंदिर के अलावा 22 अन्य मंदिर भी हैं. इसके साथ ही मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है.
शृंगार पूजा है सबसे विशेष
बैद्यनाथधाम में प्राचीनकाल से चली आ रही शृंगार पूजा का अपना अलग महत्व है. देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ के शृंगार में इस्तेमाल होने वाला मुकुट जेल के कैदियों द्वारा तैयार किया जाता है. जेल में इसके लिए बाकायदा एक बाबा वार्ड बना है. इस वार्ड में बंद कैदी बाबा के शृंगार के लिए विशेष तौर पर फूलों के मुकुट का निर्माण करते हैं.
पंचशूल के स्पर्श को उमड़ पड़ती है भक्तों की भीड़
बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर त्रिशूल की जगह पंचशूल लगा है. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह एकमात्र शिवधाम है, जिसके शिखर पर त्रिशूल की जगह पंचशूल लगा है. इसको मंदिर का कवच भी माना जाता है. मंदिर पर लगे पंचशूल को प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से 2 दिन पहले उतारा जाता है. उस दिन इसका स्पर्श करके भक्त खुद को धन्य समझते हैं.
मंदिर के आस-पास हैं और भी पवित्र स्थल
बैद्यनाथ मंदिर के आस-पास और भी अन्य पवित्र स्थल हैं. इनके साथ प्राचीन कथाएं और मान्यताएं भी जुड़ी हैं. उन्हीं में एक है नंदन पहाड़. बैद्यनाथ मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नंदन पहाड़ देवघर के आकर्षक पर्यटन स्थलों में एक है. इस पहाड़ पर भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय के साथ नंदी महाराज का भी मंदिर है. प्राचीन कथा के अनुसार, जब रावण शिवधाम में प्रवेश करने का प्रयास कर रहा था, तब नंदी ने रावण को रोका. रावण ने गुस्से में नंदी को पहाड़ी पर फेंक दिया. इसलिए पहाड़ी का नाम नंदन पहाड़ पड़ा.
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