श्रावणी मेला 2023: पुरुषोत्तम मास व बांग्ला सावन 18 जुलाई से, बाबा मंदिर में आज लगेगी बेलपत्र प्रदर्शनी
पुरुषोत्तम मास शुरू होने पर खासकर यूपी, एमपी, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के श्रद्धालुओं का आगमन होगा. पुरुषोत्तम मास में तेरस तिथि का खास महत्व माना गया है. पुरुषोत्तम मास में दो तेरस होगा.
देवघर, संजीव मिश्रा: सावन के पहले पक्ष का समापन दूसरी सोमवारी को हो जायेगा. सोमवार की रात को राजगीर में झंडा गाड़ने के बाद मंगलवार से पुरुषोत्तम मास (मलमास) प्रारंभ हो जायेगा, जो कि 16 अगस्त तक जारी रहेगा. इसके साथ ही सोमवार को संक्रांति तिथि के अवसर पर बाबा मंदिर में बेलपत्र प्रदर्शनी लगेगी तथा बांग्ला सावन भी शुरू हो जायेगा. इससे पहले रविवार को बाबाधाम में कांवरियों की भारी भीड़ उमड़ी. झमाझम बारिश के बीच बोल बम का जयघोष करते हुए कांवरिये तेजी से बाबाधाम पहुंचते रहे. कांवरियों की कतार सुबह से पट बंद होने तक जलसार चिल्ड्रेन पार्क के पास से संचालित होती दिखी. दूसरी अंतिम सोमवारी पर अप्रत्याशित भीड़ होने की संभावना है.
तेरस पर उमड़ेंगे भक्त
पुरुषोत्तम मास शुरू होने पर खासकर यूपी, एमपी, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के श्रद्धालुओं का आगमन होगा. पुरुषोत्तम मास में तेरस तिथि का खास महत्व माना गया है. पुरुषोत्तम मास में दो तेरस होगा, जिसमें पहला 30 जुलाई को व दूसरा 13 अगस्त को है. इन दोनों दिनों में बाबा नगरी में लाखों की संख्या में भक्त आयेंगे. बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर बोल बम के जयघोष से गूंज रही है.
19 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद पवित्र श्रावण मास के बीच मलमास (पुरूषोत्तम मास) का संयोग लगा है। श्रावणी मेले की दूसरी सोमवारी जो आमावस्या तिथि पर पड़ने के कारण विशेष महत्व का दिन हो जा रहा है। वहीं सोमवार को ही कर्क संक्रांति भी है। अनूठे संयोग के बीच 18 जुलाई मंगलवार से… pic.twitter.com/XqongzePAQ
— BABA MANDIR (@BaidyanathDhaam) July 16, 2023
पुरुषोत्तम मास की क्या है मान्यता
शास्त्रों के अनुसार, पुरुषोत्तम मास में बाबा बैद्यनाथ को छोड़ कर देवलोक के सभी देवी-देवता राजगीर में निवास करते हैं. इस महीने में राजगीर का खास महत्व माना गया है, लेकिन बाबा बैद्यनाथ वचनबद्ध होने के कारण बाबाधाम को छोड़कर कहीं नहीं जाते हैं. कहा गया है कि जब रावण बाबा भोलेनाथ को अपने साथ लंका ले जा रहा था, तब बाबा ने रावण को वचन दिया था कि लंका के सिवाय कहीं भी मुझे जमीन पर रख दोगे, तो मैं उस जगह को छोड़कर दोबारा कहीं नहीं जाऊंगा. रावण के द्वारा बाबा को जब देवघर में रख दिया गया, तब से बाबा रावण को दिये गये वचन के अनुसार कहीं नहीं जाते हैं. मान्यता के अनुसार, राजगीर से पूजा करने के बाद पुरुषोत्तम मास के दौरान भारी संख्या में श्रद्धालु बाबाधाम आकर पूजा-अर्चना करते हैं. सावन में बाबा नगरी की शोभा देखते ही बन रही है.
The sacred month of #Sawan begins today. The most awaited time of the year is here that brings in joy and devotion.
Be a part of the vibrant celebration this year at the Shrawani Mela in #Deoghar, Jharkhand. @HemantSorenJMM
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. #Sawan#shrawanimela pic.twitter.com/a6bcCOPr3H— Jharkhand Tourism (@VisitJharkhand) July 4, 2023
18 जुलाई से बांग्ला सावन भी हो जायेगा शुरू
सोमवार को संक्रांति तिथि के अवसर पर बाबा नगरी में चली आ रही परंपरा के अनुसार अलग-अलग बेलपत्र समितियों के द्वारा अलग-अलग मंदिरों में बेलपत्र प्रदर्शनी का आयोजन किया जायेगा. इसके साथ ही मंगलवार से बांग्ला श्रावण प्रारंभ हो जायेगा, जो कि 16 अगस्त तक चलेगा. बांग्ला श्रावण की प्रत्येक सोमवारी को बेलपत्र प्रदर्शनी लगायी जायेगी. बांग्ला श्रावण में कुल पांच सोमवारी होगी. इसमें पहली 17 जुलाई, दूसरी 24 जुलाई, तीसरी 31 जुलाई, चौथी सात अगस्त तथा पांचवां व अंतिम सोमवारी 14 अगस्त को होगी. वहीं दूसरे पक्ष में पड़ने वाले श्रावण में दो सोमवारी होगी, जिसमें पहली 21 व दूसरी 28 अगस्त को होगी. इसके बाद 31 अगस्त को रक्षा बंधन के साथ मेला का समापन हो जायेगा.
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ये हैं खास बातें
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18 जुलाई से पुरुषोत्तम मास होगा शुरू
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18 जुलाई से बांग्ला सावन भी हो जायेगा शुरू
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बांग्ला सावन में होगी कुल पांच सोमवारी
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बांग्ला सावन की प्रत्येक सोमवारी को लगेगी बेलपत्र प्रदर्शनी
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31 अगस्त को रक्षा बंधन के साथ श्रावणी मेले का समापन
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पुरुषोत्तम मास में सभी देवता राजगीर में करते हैं निवास
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पुरुषोत्तम मास में सिर्फ बाबा बैद्यनाथ ही रहते हैं देवघर में
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पुरुषोत्तम मास में यूपी, एमपी, राजस्थान के श्रद्धालुओं का होगा आगमन
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर है पंचशूल
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर स्थित पंचशूल पांच योग पंचक को जानने की प्रेरणा देता है. वे पांच योग पंचक हैं- मंत्र योग, स्पर्श योग, भाव योग, अभाव योग और पांचवां महायोग. जिसकी दूसरी वृत्तियों का निरोध हो गया है, ऐसे चित्त की भगवान शिव में निश्चल वृत्ति स्थापित हो जाती है. संक्षेप में इसी को ”योग” कहा गया है.
प्रपंच को दग्ध कर शिव ने भस्म को लगाया शरीर में
प्रपंचकर्ता शिव ने अपने आधेय रूप से विद्यमान प्रपंच को जलाकर भस्म बनाया और उसका सार तत्व ग्रहण कर लिया. प्रपंच को दग्ध कर शिव ने उसके भस्म को अपने शरीर में लगाया है. शिव ने भभूत पोतने के रूप में जगत के सार तत्व को ही ग्रहण किया है. आकाश के सार तत्व से केश, वायु के सार तत्व से मुख मंडल, अग्नि के सार तत्व से हृदय, जल के सार तत्व से कटि प्रदेश और पृथ्वी के सार तत्व को घुटनों में धारण किया है. अपने ललाट में शिव ने जो त्रिपुंड धारण कर रखा है, वह ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र का सार तत्व है. भगवान शिव ने ही प्रपंच के सारे सार सर्वस्व को जगत के अभ्युदय का हेतु मानते हुए अपने वश में किया है. शिव के अनुयायी उन्हीं का अनुसरण करते हुए भस्म धारण करते हैं. जगत प्रपंच राख है. जिस प्रपंच के पीछे मनुष्य भाग रहा है. वह सिर्फ राख है. जगत की सच्चाई राख है. बारंबार अग्नि द्वारा यह जगत जलाया जा रहा है. इससे यह भस्मसात हो जाता है.
22 देवी-देवताओं का अलग-अलग महत्व
देवघर के बाबा मंदिर में स्थित सभी 22 देवी देवताओं का अलग-अलग महत्व है. सभी मंदिरों का अपना पौराणिक इतिहास व महत्ता है. इनके निर्माण व निर्माणकर्ता के बारे में रोचक कहानियां हैं. सावन के पहले दिन हमने आपको मां पार्वती मंदिर के बारे, दूसरे दिन मां जगतजननी व मां संकष्टा मंदिर, तीसरे दिन भगवान गणेश मंदिर, चौथे दिन मां संध्या मंदिर, पांचवे दिन चतुर्मुखी ब्रह्मा मंदिर, छठे दिन महाकाल भैरव मंदिर, सातवें दिन भगवान हनुमान के मंदिर, आठवें दिन मां मनसा मंदिर, नौवें दिन मां सरस्वती मंदिर, दसवें दिन बगलामुखी मंदिर, ग्यारहवें दिन सूर्य नारायण मंदिर और बारहवें दिन राम, सीता, लक्ष्मण मंदिर के बारे में जानकारी दी. आज हम आपको गंगा मंदिर के बारे में बताएंगे.
घंटों कतार में लगकर भक्त करते हैं मां गंगा की पूजा
12 ज्योतिर्लिंगों में से द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ मंदिर और इनके प्रांगण की सभी मंदिरों का पौराणिक महत्व है. इनमें सर्वाधिक महत्व बाबा की पूजा के उपरांत के बाबा वैद्यनाथ की जटा से निकलीं मां गंगा की पूजा का महत्व है. जहां भक्त पूजा करने के लिए घंटों कतार में लग कर मां गंगा की पूजा करते हैं. इस मंदिर का निर्माण 19 सदी में भवप्रिता नंद ओझा ने इसका निर्माण कराया. यह मंदिर मुख्य मंदिर के पीछे पश्चिम व उत्तर के कोने की तरफ स्थित है. यह राम मंदिर व आनंद भैरव मंदिर के सामने की तरफ है. गंगा मंदिर की बनावट अन्य मंदिरों से अलग है. यह सबसे छोटा मंदिर है. गंगा मंदिर षट्भुज आकार का यह मंदिर है. इस गंगा मंदिर का शिखर इसकी लंबाई लगभग 20 चौडाई 10 फीट है. गंगा मंदिर के शिखर पर तांबे का कलश सहित त्रिशूल लगा है. जिसमें पंचशूल नहीं लगा है. इस मंदिर का दरवाजा दक्षिण मुख की ओर है.
मां गंगा की वैदिक विधि से की जाती है पूजा
इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए सामने पीतल के दरवाजे को भक्त प्रणाम कर सिर झुका कर गर्भ गृह में पहुंचते हैं. जहां मां गंगा के दर्शन होते हैं. जहां मां गंगा की खड़ी मुद्रा में सफेद संगमरमर पत्थर की मूर्ति स्थापित है. इस मूर्ति की हाइट 2 फीट है. मां गंगा की चार हाथों वाली मूर्ति है. जो अपने वाहन मगरमच्छ पर खड़ी है. यहां पर भक्तों वह पुजारी सभी के लिए प्रवेश व निकास द्वार का एक ही रास्ता है. यहां पर मां गंगा की वैदिक विधि से पूजा की जाती है. इस मंदिर में खवाड़े परिवार की ओर से प्रतिदिन पूजा की जाती है. इसके अलावा खवाड़े परिवार वंशज के द्वारा अपने यजमान को संकल्प पूजा कराने के लिए यहा पर रहते हैं.
राम, सीता व लक्ष्मण मंदिर
देवघर के बाबा मंदिर में स्थित सभी 22 देवी देवताओं का अलग-अलग महत्व है. सभी मंदिरों का अपना पौराणिक इतिहास व महत्ता है. इनके निर्माण व निर्माणकर्ता के बारे में रोचक कहानियां हैं. सावन के पहले दिन हमने आपको मां पार्वती मंदिर के बारे, दूसरे दिन मां जगतजननी व मां संकष्टा मंदिर, तीसरे दिन भगवान गणेश मंदिर, चौथे दिन मां संध्या मंदिर, पांचवे दिन चतुर्मुखी ब्रह्मा मंदिर, छठे दिन महाकाल भैरव मंदिर, सातवें दिन भगवान हनुमान के मंदिर, आठवें दिन मां मनसा मंदिर, नौवें दिन मां सरस्वती मंदिर, दसवें दिन बगलामुखी मंदिर और ग्यारहवें दिन सूर्य नारायण मंदिर के बारे में जानकारी दी. आज हम आपको राम, सीता, लक्ष्मण मंदिर के बारे में बताएंगे.
शिव के 11वें रुद्रअवतार हनुमान हैं राम के सबसे बड़े भक्त
ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ मंदिर व इनके प्रांगण की सभी मंदिरों का पौराणिक महत्व है. भगवान विष्णु के अवतार होने के साथ शिव के 11वें रुद्रअवतार हनुमान को राम का सबसे बड़ा भक्त माना गया है. इन दोनों का एक साथ एक जगह होने से इस मंदिर का अलग महत्व है. जहां भक्त पूजा करने के लिए घंटों कतार में लग कर भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व हनुमान की पूजा करते हैं. इस मंदिर का निर्माण पूर्व सरदार पंडा स्वर्गीय श्रीश्री रामदत्त ओझा ने 1782 से 1792 के बीच कराया था. यह मंदिर मुख्य मंदिर के पीछे पश्चिम की तरफ स्थित है. इस मंदिर से राम के साथ हनुमान की पूजा का महत्व है.
राम मंदिर की लंबाई लगभग 60 फीट व चौड़ाई लगभग 35 फीट
राम मंदिर की लंबाई लगभग 60 फीट व चौड़ाई लगभग 35 फीट है. राम मंदिर के शिखर पर पहले तांबे का कलश स्थापित है. इसके ऊपर पंचशूल भी लगा है. इस मंदिर की बनावट अन्य मंदिरों से अलग है. इस मंदिर के बाहरी ओर के चारों तरफ तीन-तीन हनुमान जी की आकृति बनी है. इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए मंदिर प्रांगण से सर्वप्रथम दो सीढ़ियों को पार करके भक्त राम सीता के प्रांगण में पहुंचते है. सामने पीतल के दरवाजे को भक्त प्रणाम कर गर्भ गृह में पहुंचते हैं. जहां राम के साथ दो मूर्तियों के दर्शन होते हैं. बीच में भगवान राम उनके चरण के पास भरत व शत्रुघ्न. भगवान राम की मूर्ति बायीं ओर मां सीता की मूर्ति व दायीं ओर लक्ष्मण के साथ हनुमान की मूर्ति है. जहां भगवान राम सीता व लक्ष्मण की मूर्ति खड़ी मुद्रा की काले पत्थर की बनी मूर्ती स्थापित है.
भक्त व पुजारी के लिए प्रवेश व निकास द्वार एक ही
यहां पर भक्त व पुजारी सभी के लिए प्रवेश व निकास द्वार का एक ही रास्ता है. इस मंदिर में ओझा परिवार मंदिर स्टेट की ओर से पूजा की जाती हैं. यहां पर भगवान राम सीता व लक्ष्मण की वैदिक विधि से पूजा की जाती है. भक्त सालों भर भगवान की पूजा कर सकते हैं. लेकिन चैत्र शुक्ल पक्ष रामनवमी को पूजा का अलग महत्व है. इस दिन मंदिर स्टेट की ओर से विशेष पूजा की जाती है. इसके अलावा फलाहारी परिवार के द्वारा रामनवमी के दिन भगवान की विशेष पूजा व महाश्रृंगार किया जाता है. इस मंदिर में प्रवेश करते ही फलाहारी परिवार के वंशज भगवान राम मंदिर के प्रांगण में अपने यजमान को संकल्प पूजा कराने के लिए अपने गद्दी पर रहते हैं.