मधुपुर. शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी बाहुल्य गांवों में सोहराय पर्व को लेकर ग्रामीणों ने अपने घरों की निपाई-पोताई कर ली है. साथ ही घरों को आकर्षक तरीके से सजाने के लिए रंगोली बनाने के काम में जुटे गये हैं. बताया जाता है कि सोहराय पर्व आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. इसमें आदिवासी समाज खेत खलिहान प्रकृति की पूजा करते हैं. पर्व में परंपरागत नृत्य करते हुए खूब नाचते गाते हैं. सोहराय पर्व बुधवार से प्रारंभ हो गया है. इसको लेकर क्षेत्र में आदिवासी समाज की महिला व पुरुषों की ओर से पर्व को पांच दिनों तक लगातार मनाया जाता है. पर्व में आदिवासी समाज प्रकृति पूजा खेत खलिहान और मवेशी की पूजा करते हैं. साथ ही अपने पूर्वजों को याद करते हैं. पर्व के दौरान आदिवासी महिला पुरुष मांदर की थाप पर गांव टोलों में थिरकते नजर आये. पांच दिनों तक लगातार चलने वाले पर्व के दौरान प्रथम दिन स्नान व बथान कर शाम को पूजा करते है. दूसरे दिन गोहाल पूजा व तीसरे दिन खुटाउ मनाते हैं. इस दौरान बैल को सजाकर बांधते है. गांव के चारों तरफ घूमते हुए नृत्य करते हैं. चौथे दिन जाली मनाते है. इसमें सामूहिक रूप से एक-दूसरे के घर जाते है और नाचते-गाते हैं. पर्व के अंतिम दिन पांचवें दिन को हाकुकटाम कहा जाता है. इस दिन शिकार खेलने की प्रथा है. इस पर्व को भाई-बहन के अटूट रिश्ते का पर्व भी माना जाता है. इसमें भाई अपनी बहन को निमंत्रण देता है. बहन भाई के घर आकर भाई के लिए लंबी उम्र की कामना करते हैं. शिकार खेलने की प्रथा के साथ पर्व का समापन होता है. ——————– आदिवासी समुदाय का सोहराय पर्व शुरू
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है