देवघर : सारवां थाना क्षेत्र में वर्ष 2004 के एक मामले में एक किशोरी के साथ दुष्कर्म कर जला देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को दोषी पाते हुए हाइकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया तथा जिला सत्र न्यायालय की सजा को बरकरार रखा. इस मामले में जिला सत्र न्यायालय ने 10 अक्तूबर, 2006 को पारित आदेश के द्वारा प्रतिवादी को धारा 302, 341, 376 और 448 के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया था. इस क्रम में 11 अक्टूबर 2006 को पारित आदेश के द्वारा धारा 302 के तहत प्रतिवादी को आजीवन कठोर कारावास और धारा 376 के तहत 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनायी थी. आरोपित पर दोनों सजाएं साथ-साथ चलाने का आदेश पारित किया गया था. इसके बाद प्रतिवादी ने झारखंड उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी. 27 जनवरी, 2018 को पारित फैसले में उच्च न्यायालय ने सत्र न्यायालय के फैसले को रद्द कर प्रतिवादी को बरी कर दिया था. इसके बाद वादी पक्ष ने सुप्रीमकोर्ट में अपील की. अक्तूबर 2023 में सुप्रीमकोर्ट न्यायाधीश डॉ डी वाई चंद्रचूड़ ने अभियोजन पक्ष द्वारा परीक्षण कराये गये गवाहों की सात गवाही व बचाव पक्ष के तीन गवाही का अवलोकन कर सत्र न्यायालय के निर्णय और अपील पर उच्च न्यायालय के निर्णय का विश्लेषण करने के पश्चात मामले में हाईकोर्ट की सजा को निरस्त करते हुए सत्र न्यायालय की सजा को ही बहाल कर दिया.
सात नवंबर 2004 की दोपहर को सारवां थाना क्षेत्र के एक गांव में पीड़िता (मृतका) के घर में एक व्यक्ति घुसा. आरोप लगाया गया है कि उसने पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया और धमकी दी कि अगर उसने शोर मचाया, तो वह उसे जान से मार देगा. जब वह बचाव के लिए चिल्लायी, तब आरोपित ने कथित तौर पर उस पर केरोसिन डाल दिया और आग लगा दी. चिल्लाने पर उसके दादा, मां और गांव का एक व्यक्ति उसके कमरे में आये. आरोप है कि आरोपित उन सभी को देखकर मौके से फरार हो गया. घटना के बाद पीड़िता को देवघर सदर अस्पताल लाकर भर्ती कराया गया. बाद में घटना की जानकारी होने पर सारवां के थाना प्रभारी ने उसी दिन यानी सात नवंबर, 2004 को पीड़िता का फर्द बयान सदर अस्पताल पहुंचकर लिया था. डॉक्टर की मौजूदगी में बयान पर पीड़िता व उसके परिजनों ने हस्ताक्षर किया था. पीड़िता के बयान पर डॉक्टर ने भी हस्ताक्षर कर प्रमाणित किया था कि पीड़िता बयान देने में सक्षम थी.
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