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संताल में पर्यटन स्थल: समुचित विकास की जोह रहे बाट

दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों के साथ आत्मीयता बढ़ती है, ज्ञान-फलक का विस्तार होता है तथा सामाजिक समरसता को भी नया आयाम मिलता है.

यातायात की आधुनिकतम एवं सुविधाजनक व्यवस्था के इस दौर में अब पर्यटन सिर्फ भ्रमण-उद्देश्य का पूर्तिपरक नहीं रह गया है, बल्कि अब तो इसने उद्योग का दर्जा भी हासिल कर लिया है और हो भी क्यों नहीं; पर्यटन-स्थलों में रोजगार के नये-नये अवसर उपलब्ध होते हैं, स्थल-विशेष का तीव्र गति से विकास संभव होता है, व्यवसाय और कारोबार के विस्तार के अवसर बढ़ते हैं,

दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों के साथ आत्मीयता बढ़ती है, ज्ञान-फलक का विस्तार होता है तथा सामाजिक समरसता को भी नया आयाम मिलता है. तभी तो दुनियाभर में अनेकानेक पर्यटन-स्थल वैश्विक पहचान बनाते हुए लाखों-लाख लोगों को आकर्षित कर रहे हैं और संबंधित देशों की अर्थ-व्यवस्था को नई मजबूती भी दे रहे हैं.

पर्यटन के लिहाज से विविधता-संपन्न अपने भारत वर्ष में भी अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि भारत के हर क्षेत्र में कुछ न कुछ अनूठापन है, विलक्षणताएं हैं तथा आकर्षण के विशेष कारण भी हैं; आवश्यकता है उनके समुचित विकास के साथ-साथ व्यापक प्रचार-प्रसार की.

ऐसी ही विशिष्टताओं से परिपूर्ण क्षेत्रों में से एक है बहुविध आकरों से संपन्न राज्य झारखंड का संताल परगना क्षेत्र. संताल परगना यानि खूबसूरत पहाड़ियों, अरण्यों,पहाड़ी नदियों,सरल-नेकदिल-ईमानदार तथा कर्मठ आदिवासीगण एवं आदिवासियों संग समरस भाव से रहने वाले गैर आदिवासियों की ऐसी धरा जो विशिष्ट दैवी ऊर्जा से संपन्न है. संताल परगना प्रमंडलीय क्षेत्र में कुल छह जिले आते हैं और हर जिला की अपनी-अपनी विशिष्टताएं हैं, जो बरबस पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखती हैं.

यदि गौर करें तो पूरे संताल क्षेत्र में पर्यटन स्थल की एक श्रृंखला -सी मौजूद है, जो देश-विदेश के सैलानियों को नैसर्गिक रूप से आकर्षित करने की सामर्थ्य रखती है और करती भी है. एक अकेला देवघर में ही पूरे वर्ष भर लाखों लोगों का आना-जाना लगा रहता है. धार्मिक पर्यटन-स्थल के रूप देवघर की विशिष्ट पहचान है, जहां द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक की अवस्थिति बाबा बैद्यनाथ के रूप में है साथ ही 51 शक्तिपीठों में से एक होने के कारण बाबा बैद्यनाथ की महिमा अन्यतम हो जाती है.

यहां वर्षभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लाखों कांवरिया 105 किमी पांव-पैदल चलकर काँधे पे कांवर में गंगाजल ढोकर बाबा बैद्यनाथ को अर्पित करने पहुंचते हैं, जिसका दृश्य वर्णणातीत है. बाबा मंदिर के अलावा देवघर के समीपस्थ ठाकुर अनुकूल चंद्र द्वारा स्थापित सत्संग नगर से करोड़ों श्रद्धालुओं का जुड़ाव है, स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित रिखिया आश्रम के साथ देश-विदेश के लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. देवघर के करनीबाद स्थित बालानंद आश्रम तथा मोहन मंदिर (मोहनानंद ब्रह्मचारी) से जुड़े हजारों अनुयायी देश-विदेश में हैं. नौलखा मंदिर की वास्तुकला का अवलोकन विस्मयपूर्वक आनंद की अनुभूति कराती है. कभी तपस्थली के रूप में ख्यात तपोवन की पहाड़ी पर मौजूद स्व-सृजित गुफा हर एक को आकर्षित करती है.

त्रिकूट पर्वत की तो बात ही क्या कहना!इसका नैसर्गिक सौंदर्य तथा रोप वे (तत्काल कुछ तकनीकी खामी के कारण सेवा बंद है) का रोमांचकारी सफर बड़े पैमाने पर हर आयु वर्ग के लोगों को खूब रिझाता है; युवा तो एडवेंचर गेम की तरह मजा लेते हैं.

मधुपुर के करीब पाथरौल स्थित काली मंदिर की महत्ता पर्यटकों में उत्सुकतापूर्ण श्रद्धा भाव को जागृत करती हैं. यदि यह कहें कि संताल परगना में देवघर अपने आप में एक सम्पूर्ण पर्यटन-स्थल है;धार्मिक भी-प्राकृतिक भी-सांस्कृतिक भी तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

देवघर से कोई 20 से 25 किमी पूरब की ओर चलते ही संताल परगना प्रमंडल का मुख्यालय और जिला दुमका की सीमा प्रारंभ होती है और महज 15-20 किमी बढ़ते ही संताल का दूसरा सबसे लोकप्रिय मंदिर बाबा बासुकिनाथ का मंदिर आता है ; यहां भी पूरे वर्ष भर देश-विदेश के शिव भक्तों का तांता लगा ही रहता है. देवघर पहुंचने वाले श्रद्धालु प्राय: बासुकिनाथ भी अवश्य ही पहुंचते हैं. बासुकिनाथ से कुछ ही दूरी पर प्रकृति की खूबसूरत वादी में छोटी पहाड़ियों के आगोश में तातलोई का गर्म जल-कुंड कौतूहल तो पैदा करता ही है साथ ही जल-साहचर्य से होनेवाले चिकित्सा लाभ भी यहां बड़ी संख्या में पर्यटकों को आमंत्रित करता है.

दुमका मुख्यालय से महज 30-35 किमी की दूरी पर संताल का सर्वाधिक नयनाभिराम प्राकृतिक सौन्दर्य को समेटे लघु-विशाल तरू-पादपों से आच्छादित दो पर्वतों के बीच निर्मित मसानजोर डैम की अनुपम छटा हर एक को विमोहित कर लेती है; जल-संग्रहण क्षेत्र में जहां नौका विहार का लुत्फ उठाया जा सकता है, वहीं युवा वर्ग एडवेंचर गेम का भी मजा ले सकते हैं. डैम के दूसरे यानि नीचले भाग का सौंदर्य तो फिल्म-निर्माताओं को भी ललचाता है और इसकी खूबसूरती को समेट लेने के लिए बाध्य करता है.

मसानजोर से महज 20-25 किमी पर ऐतिहासिक सांस्कृतिक-धार्मिक स्थल मलूटी है, जिसकी सांस्कृतिक विरासत एक अमूल्य धरोहर है. मलूटी आनेवाले टेराकोटा की बेमिसाल कारिगरी तथा अप्रतिम वास्तुकला को देखकर आश्चर्यमिश्रित आनंद की अनुभूति करते हैं. कभी 108 मन्दिरों तथा 108 तालाबों से सुशोभित सुसंपन्न गांव होता था मलूटी. कालांतर में बहुत कुछ छिन्न- भिन्न हुए मगर अब भी अनेक मंदिर और तालाब बचे हुए हैं. अब भी बड़ी संख्या में सौंदर्य-प्रेमी, कला प्रेमी तथा आम लोग इस स्थल पर भ्रमण हेतु आते ही आते हैं, साथ ही मां मौलिक्षा के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी आते हैं.

दुमका की सीमा से लगे पाकुड़ का क्षेत्र कभी छोटी-छोटी पहाड़ियों और घने जंगलों के आच्छादन से अलौकिक नैसर्गिक दृश्य उपस्थित करता था, मगर कालांतर में चल पड़े अविवेकपूर्ण भौतिक विकास की गति ने यहां की नैसर्गिकता को उसी त्वरा से आघात पहुंचाया, मगर इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद भी पाकुड़ के आमड़ापाड़ा का प्रकृति विहार हर उम्र के लोगों को रिझाता सा प्रतीत होता है, वहीं लिट्टीपाड़ा में कंचनगढ़ की गुफा तथा वहां का शिव मंदिर पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है.

पाकुड़ के अक्षय प्राकृतिक उपादानों के पार शुरू होता है, प्राकृतिक सौंदर्य, प्राकृतिक अवशेष तथा ऐतिहासिक गाथाओं से संपन्न जिला साहिबगंज का क्षेत्र ; जहां एक ओर तालझारी के मोती झरना का अद्भुत सौंदर्य नूतन कल्पना लोक की सैर कराता प्रतीत होता है, तो वहीं शिवगादी के शिव मंदिर स्थित शिवलिंग पर पहाड़ी से अहर्निश गिरता जल-बूंद विस्मयपूर्ण श्रद्धाभाव को जागृत करता है.

कभी बरहरवा का बिन्दुधाम साधकों के सामर्थ्य से परिचित कराता है, तो कभी तेलियागढ़ी आदिवासी एवं गैर आदिवासी समुदाय के बीच समरसता के भाव को नयी गरिमा प्रदान कर रही होती है. कभी राजमहल का क्षेत्र बंगाल की राजधानी होने की गाथा सुनाता है, तो वहीं 16 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में मुगल शासक अकबर के साम्राज्य के विस्तार की कहानी भी बयां करता है.

इन सबसे इतर तीर्थ-स्थल के रूप में श्रद्धेय बन चुका गांव भोगनाडीह न सिर्फ वीर पुत्र, वीर भाई सिदो-कान्हू की वीरता, साहस और कुर्बानी की गाथा समेटे नयी पीढ़ी को प्रेरित करता है, बल्कि हजारों लोगों को बरबस हर वर्ष अपनी ओर आकर्षित भी करता है. उधवा का पक्षी अभ्यारण्य पक्षी और प्रकृति प्रेमियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है, मगर सबसे अहम स्थल है राजमहल की पहाड़ी पर स्थित जीवाश्म पार्क जो अन्वेषकों तथा शोधार्थियों के लिए कौतुहल भरा रहस्यपूर्ण तीर्थ-स्थल के समान है;

करोड़ों वर्षों का राज जो छिपा है यहां. वैसे तो साहिबगंज में गंगा का प्रवाह, स्टीमर की गति तथा राजकीय माघी मेला की रौनक कुछ अलग हटकर न्योता देती है, पर्यटकों को बस समझने और समझाने की, प्रचार व प्रसार की जरूरत है.

साहिबगंज के अनोखेपन का नजदीक से एहसास करने वाला संताल परगना का पांचवां जिला गोड्डा भी पर्यटन के लिहाज से कम अहमियत नहीं रखता है; मानगढ़ स्थित मानसिंह का किला सदियों पूर्व इतिहास की दास्तान सुनाता है, तो बसंत राय का दैवीय तालाब श्रद्धाभाव से भर देता है, वहीं नीमझर का गर्म जल-कुण्ड प्रकृति की विलक्षणता के साथ आरोग्य का वरदान देता प्रतीत होता है.

सुंदर पहाड़ी की सुंदरता, प्रकृति का नायाब तोहफा घोघा-अगैया का नाला, दामाकोल का मनोरम जलप्रपात, सिंहवाहिनी की विशिष्टता, शिव-शाक्त-वैष्णव का संगम स्थल चिहारी, शक्तिपीठ मां योगिनी का मन्दिर व योगिनी गुफा तथा धनसुख पहाड़ कुछ ऐसे स्थल हैं जहां स्तरीय पर्यटन-स्थल बनने की अपार संभावनाएं हैं.

चलिए अब गोड्डा से वापस लिए चलता हूं…. जामताड़ा की ओर मगर जरा ठहरिए , यह है दुमका जिला के सरैयाहाट प्रखंड का धौनी गांव; एक नजर यहां भी तो डालिए.

यह है इस गांव का अद्भुत शिव मंदिर

जो बाबा सुमेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध है. स्थानीय निवासी देवेन्द्र पंडा जी बताते हैं कि यह मंदिर बहुत ही प्राचीन और बड़ा ही फलदायी है इसकी पौराणिकता शुंभ-निशुंभ दैत्य से जुड़ी हुई है, तभी तो इसका इतना महात्म्य है, हजारों लोग हर वर्ष दूर-दूर से यहां दर्शन तथा जलाभिषेक के लिए आते हैं. सावन और महाशिवरात्रि में यहां की रौनक कुछ और ही होती है. और ये है जामताड़ा ,है तो संताल परगना का सबसे छोटा जिला, मगर यहां की संस्कृति में बंगाल की महक है,

संताल आदिवासियों के प्रकृति-प्रेम, सरलता तथा कर्मठता की गमक है तथा सामान्य झारखंडी संस्कृति की खनक भी है, जो बरबस यहां आनेवाले पर एक अलहदा छाप छोड़ जाती है. इस स्वाभाविक विरासत के इतर एक डैम भी है जो लाधना डैम के रूप में जाना जाता है, जिसका रमणीक दृश्य तथा उपलब्ध नौका विहार की सुविधा पर्यटकों को आनंदपूर्ण रोमांच की अनुभूति कराता है, इतना ही नहीं मालंचा पहाड़ से जुड़ी ऐतिहासिक दास्तान पहाड़िया समुदाय के साहस,

रणनीतिक कौशल तथा देश-प्रेम की भावना को भी उजागर करती है. उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में यदि कहा जाये, तो यही कहा जा सकता है कि प्रकृति ने संताल क्षेत्र को भी ढेर सारे उपादान दिए हैं जो अन्यान्य स्थलों को समृद्ध पर्यटन-स्थल के रूप में विकसित होने और विशिष्ट पहचान बनाने में सहायक हैं. उपर्युक्त तमाम स्थलों में कुछ तो पर्यटन-स्थल के रूप में एक मानक स्थापित चुके हैं और लोकप्रिय भी हैं, मगर अफसोस अभी भी अधिकांश स्थल समुचित विकास की बाट जोह रहे हैं.

यदि स्थानीय प्रशासन की ओर से सकारात्मक पहल हो और राज्य सरकार की ओर से विस्तृत कार्य योजना बनाकर पर्यटकों को आकर्षित करने के उद्देश्य से इन स्थलों का विकास किया जाय, उचित सुविधाएं उपलब्ध करायी जाये, तो आश्चर्य नहीं कि पर्यटकों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो जाये. इन स्थलों में इतनी पोटेंशियल है कि संताल में पर्यटन, उद्योग की मानिन्द रोजगार के व्यापक अवसर भी उपलब्ध करा सकते हैं और साथ ही क्षेत्र की अर्थ-व्यवस्था को भी एक वांछित मजबूती मिल सकती है.

व्यवसाय और कारोबार बढ़ेगा, स्थानीय लोगों को विशेष अवसर मिलेंगे तथा देश-विदेश के पर्यटकों के आगमन से स्थानीय स्तर पर शिक्षा,संस्कृति तथा रहन-सहन में स्वतः सकारात्मक परिवर्तन भी संभव हो सकेगा. अतः सरकार को चाहिए कि संताल क्षेत्र पर विशेष फोकस करे ताकि संताल के साथ-साथ पूरे झारखंड का हित हो सके और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के व्यापक अवसर भी उपलब्ध हो सके.

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