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अभिमान को नष्ट करने के लिए प्रभु स्वयं अवतार लेते है इसी को लीला कहते है : भरत शरण महाराज

देवघर के मधुपुर कुंडू बंगला स्थित अग्रसेन भवन में सुंदरकांड समिति के आयोजन में श्रीमद्भागवत कथा के संबंध में प्रवचनकर्ता ने वामन अवतार सहित अन्य प्रसंगों की व्याख्या की.

मधुपुर . शहर के कुंडू बंगला रोड स्थित अग्रसेन भवन में शनिवार को सुंदरकांड समिति आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन कथावाचक भरत शरण महाराज ने भगवान वामन अवतार सहित अन्य प्रसंगों का व्याख्या की. कथावाचक ने बलि वामन चरित्र के व्याख्यान में कहा कि अच्छे कर्म करने का भी जब सतोगुणी अभिमान आता है, तब भगवान अपने भक्त का अभिमान दूर करते है. इसके लिए चाहे उन्हें अवतार भी लेना पड़े. राजा बलि में कब दान देने का अभिमान बढ़ गया. तब भगवान को वामन का रूप धारण करना पड़ा. कहा कि अभिमान किसी भी प्रकार का हो जब जीव में बढ़ता है तब भगवान ही उसका विनाश करते है भगवान के इसी कार्य को लीला कहा जाता है. उन्होंने ब्रम्हांड के निर्माता व संचालनकर्ता से संबंधित विषयों पर उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच वाचन किया. कथावाचक ने सृष्टि का निर्माण कैसे हुआ व सृष्टि का निर्माण करने वाला कौन है इस संबंध में भी बतलाया. उन्होंने बताया कि किस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने लीलाएं का वर्णन कर जगत को बतलाया कि उनके अवतारों किस तरह अनंत है. मौक्ष का कॉन्सेप्ट इसी धर्म की देन है. एकनिष्ठा, ध्यान, मौन व तप सहित यम-नियम के अभ्यास व जागरण का मौक्ष मार्ग है. मौक्ष से ही आत्मज्ञान व ईश्वर का ज्ञान होता है. यही सनातन धर्म है. इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने कथा सुनी. मौके पर स्थानीय कलाकार राधेश्याम अग्रवाल उपस्थित थे. कथा के सफल संचालन में सुंदरकांड समिति के सभी सदस्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रही.

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