देवघर : नगर निगम क्षेत्र में कई मोहल्ले ऐसे हैं जहां जलसंकट विकराल बनी हुई है. कुछ मोहल्ले तो ड्राई जोन बने हुए हैं, जहां सैकड़ों फीट तक पानी नहीं है. कुएं सूख चुके हैं और 500 फीट तक पाताल बोरिंग भी फेल हो चुका है. जाड़े का मौसम खत्म होते ही अधिकतर इलाकों के लोगों को पानी की समस्या से जूझना पड़ता है. गर्मी का मौसम आते-आते ड्राइजोन वाले लोग बेहाल हो उठते हैं.
गर्मी में तो घरवाले पानी के लिए मोहताज हो जाते हैं. हालात ऐसे हैं कि अधिकतर इलाके में बिना खरीदे हुए पानी के घर का खाना नहीं पकता. लोग पीने के पानी के लिए भी पनभरवा पर निर्भर रहते हैं. लोगों को नहाने के लिए तालाब या फिर धर्मशाला जाना पड़ता है. नगर निगम की पेयजलापूर्ति योजना का भी लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है. खासकर, अनियमित जलापूर्ति के कारण लोगों को और भी परेशानी उठानी पड़ती है. गर्मी में जल संकट से जूझ रहे नगर निगम के मोहल्लों पर प्रस्तुत रिपोर्ट की पहली कड़ी में आज वार्ड संख्या 23 के लोगों की समस्या बता रहे हैं….
नगर निगम के वार्ड संख्या 23 में सबसे बड़ा मुहल्ला बड़ा बाजार है. कान्हू टोला, पांडेय गली, सनबेल बाजार, मंदिर का वीआइपी गेट, पेड़ा गली इसी वार्ड क्षेत्र का हिस्सा है. आबादी तीन हजार से ज्यादा एवं घरों की संख्या 400 से ज्यादा है. वार्ड क्षेत्र में प्रसाद की दुकानों के अलावा विभिन्न प्रकार के दुकानों की कुल संख्या 300 से ज्यादा है. बाबा मंदिर के कारण इस इलाके में हर रोज 30000-40000 श्रद्धालु व तीर्थ यात्री आते हैं.
मुहल्ले में कुआं नहीं के बराबर है. पानी के लिए पांच चापानल और सप्लाई वाटर पर ही यहां के लोगों को निर्भर रहना पड़ता है. हालांकि, यहां सालों भर जलसंकट है. लेकिन, गर्मी शुरू होने के साथ ही जल संकट परवान पर पहुंच जाता है. नगर निगम की जलापूर्ति योजना भी इन मोहल्ले के लोगों के लिए केवल खानापूर्ति ही साबित हुई है. पानी का टैंकर नदारद है. इस गर्मी में अभी तक मुहल्ले के लोगों ने नगर निगम का सप्लाइ टैंकर नहीं देखा है.
सप्लाई वाटर दो दिन में एक दिन आता है. कभी-कभी चार-पांच दिन में एक बार आता है. मुहल्ले के लोगों की दिनचर्या चापानल एवं भरिया (पानी पहुंचाने वाला) पर ही आश्रित हो गया है. एक परिवार में अगर औसतन पांच से छह सदस्य हैं तो उन्हें अधिकतम चार से पांच डिब्बा (एक डिब्बा में 15 से 20 लीटर पानी) में ही हर रोज गुजारा करना पड़ता है.
घरों की महिलाएं खाना बनाने के लिए चावल, दाल, सब्जियों को धोने के बाद जो पानी बचता है, उससे पोछा लगाती हैं. बेटी ससुराल से अपने मायके आती हैं तो उन्हें घर में रहने के लिए जगह तो मिल जाती है, मगर स्नान आदि के लिए किसी धर्मशाला अथवा होटल में जाना पड़ता है. स्कूलों में पढ़ाई करने वाले छोटे-छोटे बच्चे भी अहले सुबह से चापानल से पानी ढोने में व्यस्त हो जाते हैं. पानी के लिए हर रोज हाहाकार मचा रहता है, जरूरत पूरी नहीं हो रही है.
400 से अधिक घर वार्ड 23 में, आबादी 3000 से अधिक
300 से अधिक दुकानें, बाजार का इलाका के कारण भीड़
नियमित नहीं होती जलापूर्ति टैंकर से भी नहीं मिलता पानी
कहते हैं पुरुष
जल संकट से हर कोई त्राहिमाम है. चार-पांच चापानल पर पूरे वार्ड क्षेत्र के लोग आश्रित हैं. सप्लाइ वाटर भी नियमित रूप से नहीं आता है. दो दिन में एक दिन आता है वह भी आधा घंटा के लिए. नगर निगम के सार्वजनिक टैंकर का कोई अता-पता नहीं है.
कार्तिक कुमार साह, व्यवसाय