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समता मूलक न्यायपूर्ण समाज के लिए वंचितों की शिक्षा पद्धति को मजबूत करने की जरूरत : घनश्याम

मधुपुर के बावनबीघा स्थित संवाद परिसर में आदिवासी शिक्षा शास्त्र पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें आदिवासी शिक्षा शास्त्र को पुनर्जीवित, संरक्षित और प्रचारित करने की जरूरत पर जोर दिया गया.

मधुपुर . शहर के बावनबीघा स्थित संवाद परिसर में आदिवासी शिक्षा शास्त्र पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. मौके पर समाजसेवी सह पर्यावरणविद् घनश्याम ने कहा कि शिक्षा का काम है व्यक्ति का निर्माण करना है, जो परिवर्तन की प्रक्रिया को आगे बढ़ता है. शिक्षा शास्त्र कला है और विज्ञान भी है. जब मानव ज्ञान की तरफ गया तो शब्द आकार लेने लगे. वर्तमान में जो शिक्षा व्यवस्था है, इससे श्रेष्ठ और निकृष्ट दो धारा बनती है. इसमें सर और सर्वेंट का चलन बढ़ा है. ग्रामीण क्षेत्रों में एक शिक्षा पद्धति है वह वंचितों का शिक्षा शास्त्र है. 1960 के दौर में ब्राजील के चिंतक और शिक्षाविद पोलो फरेरो ने इसी तकनीक पर काम किया और 45 दिनों में 300 वंचितों को शिक्षित कर दिखाया. कहा कि शिक्षा शास्त्र की तीन विधा है. शिक्षा का सिद्धांत, शिक्षण का तरीका और मूल्यांकन. चिंतन धारा बदलेगी तो बुनियादी परिवर्तन भी होगा. समता मूलक न्याय पूर्ण समाज के लिए वंचितों की शिक्षा पद्धति को मजबूत करना होगा. आदिवासियों की परंपरा पर सैकड़ों वर्षों से हमले हो रहे हैं. आदिवासियों ने अपनी जीवन शैली, प्रकृति प्रेम, समता मूलक समाज, संस्कृति, सामूहिक निर्णय के बल पर अपनी अलग पहचान बनायी है. कहा कि आदिवासी अपनी परंपरा सभ्यता को पुनर्जीवित करने में जुटें. मौके पर डॉक्टर अनीता गोवा हेंब्रम ने कहा कि आदिवासी शिक्षा शास्त्र को पुनर्जीवित, संरक्षित और प्रचारित करने की जरूरत है. आदिवासी पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण होना चाहिए. धन्यवाद ज्ञापन अन्ना सोरेन ने किया. मौके पर जामताड़ा, पालोजोरी, मधुपुर, गिरिडीह जिले से आये 26 प्रतिभागी शामिल हुए.

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