World Tribal Day 2023: संथाल जनजाति का इतिहास, वर्तमान स्थिति और चुनौतियां
संतालों का विश्वास है माधो सिंह नाम का एक अनाथ बालक शिशु किस्कू राजा के घर पर बड़ा हुआ. जब वह युवा अवस्था को प्राप्त किया तो शादी के लिए कोई भी अपनी बहन-बेटी देने के लिए तैयार नहीं हुआ, कारण ये था कि इसका गोत्र, जाति का किसी को भी पता नहीं था. यदि कोई अपनी बहन-बेटी को देगा तो बहुत बड़ा पाप होगा.
डॉ राजकिशोर हांसदा
संताल जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से जनजातियों में तीसरी सबसे बड़ी है. भारत देश में इनकी आबादी लगभग एक करोड़ से ऊपर है. मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, असम और त्रिपुरा में निवास करती है. भारत देश के अलावा नेपाल, बांग्लादेश और मारीशस में भी रहते हैं. संताल लोग अपने को होड़ कहते हैं, होड़ का अर्थ मनुष्य या आदमी भी होता है. संतालों का विश्वास है ठाकुर जी और ‘ठाकुरान गोगो’ ने हंस पक्षी को बनाया. आगे चलकर हंस पक्षी के जोड़ा अंडा से दो मानव शिशु का जन्म हुआ. एक नर रूप में और दूसरा नारी रूप में (वही दोनों आगे चल कर पिलचू हाड़ाम और पिलचू बूढ़ी हुई) इन्हीं दोनों को आदि माता-पिता के रूप में मानते हैं. जहां पर मानव का जन्म हुआ, उस स्थान को हिहिड़ी-पीपीड़ी कहते हैं. यह स्थान इस समय संभवत: समुद्र में समा गया या डूब गया.
हिहिड़ी- पीपीड़ी के बाद सासाङ बेडा (हल्दी घाटी) में आये, वहां से अमरे दिसोम (ईरान), कायडे दिसोम (कंधार), बाद में चाय-चाम्पा दिसोम (मोहन जोदड़ो), हड़प्पा दिसोम (सिन्धु घाटी) में पंचनद देश में निवास करने लगे. संताल लोग चाय-चाम्पा देश में निवास करने का काल को स्वर्ग युग मानते हैं. हाड़ाप्पा-मोहन जोदड़ो की खुदाई में संतालों का अनेक चिह्न मिला है. जब संताल लोग चाय-चाम्पा देश में रहते थे तो उस समय मरे हुए व्यक्ति को जलाते थे, उसको संताली भाषा में राप्पाक् ‘ कहते हैं. होड़- राज्याक् से हाड़ाप्पा हुआ. एक समय ऐसा आया संतालों के बीच धर्म और संस्कृति में बहुत बड़ा संकट आया. उसके अस्मिता और अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया. धर्म और संस्कृति की रक्षा करने के लिए चाय-चाम्पा देश को छोड़कर अन्यत्र चले गये. संतालों का विश्वास है माधो सिंह नाम का एक अनाथ बालक शिशु किस्कू राजा के घर पर बड़ा हुआ. जब वह युवा अवस्था को प्राप्त किया तो शादी के लिए कोई भी अपनी बहन-बेटी देने के लिए तैयार नहीं हुआ, कारण ये था कि इसका गोत्र, जाति का किसी को भी पता नहीं था. यदि कोई अपनी बहन-बेटी को देगा तो बहुत बड़ा पाप होगा. धर्म भ्रष्ट होने के डर से चाय-चाम्पा देश को ही छोड़ कर सभी संताल चले गये.
वहां के कोई तुरुक दिसोम, भांड़ दिसोम में आये लगता है. उस समय मुगलों का शासन था. वहां से आतो जोना जोनापुर होते हुए सिर दिसोम, शिखर दिसोम आये. आगे चलकर संताल लोग यहीं से दो भाग में बंट गये एक भाग उत्तर दिशा की ओर दावड़ा बुरु, चातोम बुरु (मुंगेर की पहाड़ी) होते हुए नया चाम्पा देश गंगानदी के किनारे भागलपुर तक आये. दूसरा ग्रुप दक्षिण पूरब की ओर अयोध्या बुरु (पहाड़), सांत दिसोम, भंज दिसोम, सिंहभूम, मानभूम दिसोम और बीरभूम तक फैल गये. हम सभी जानते है संताल परगना पहले बीरभूम जिला में ही था. नया चाम्पा देश का तिलकपुर गांव में तिलका मुर्मू का जन्म होता है, उसके पिता गांव के मांझी हाड़ाम थे. पिता के देहांत होने के बाद तिलका मुर्मू को ही तिलकपुर गांव का मांझी हाड़ाम बनाया गया. इसलिए वे तिलका मांझी के रूप में प्रसिद्ध हुए.
1784 ई में जब तिलका मुर्मू (मांझी) ने अगस्तस क्लिवलैंड को मारा. उसके बाद नया चाम्पा देश यानी भागलपुर से सभी संताल भाग गये. इसलिए चाम्पा देश का नाम भागलपुर पड़ा. तिलका मांझी को जहां से शक्ति मिलता था, जहां वे पूजा करते थे, उसका नाम आज भी भागलपुर में “बूढ़ानाथ” के नाम प्रसिद्ध है. वर्तमान में संताल समाज अस्मिता और अस्तित्व का संघर्ष कर रहा है. संताल जनजाति का जितना विकास होना चाहिए उतना आज भी नहीं हुआ है. आज भी समाज में कई प्रकार की कुरीतियां और अंध विश्वास, नशापान, डायन प्रथा आदि हैं. समयानुकूल सुधार करना बहुत आवश्यक है. संताल समाज केवल देना जानता है, लेना नहीं आता है. लेना और देना दोनों होना चाहिए, तभी समाज बचेगा. वास्तव में संताल समाज सनातन धर्म और संस्कृति का रक्षक है. ‘अतिथि देवो भवः’ का व्यवहार के रूप में आज भी संताल समाज में है. जैसे किसी संताल परिवार में कोई अतिथि आते हैं तो सबसे पहले अतिथि को बैठने के लिए आसन देते हैं और एक लोटा जल अतिथि के सामने रखते हैं.
बारी-बारी से परिवार के सभी प्रणाम पाती करते हैं. जिस प्रकार एक व्यक्ति सुबह उठकर तन मन को पवित्र कर पवित्र वस्त्र को धारण करता है और एक लोटो जल, पत्र, पुष्प लेकर किसी देवधाम में जाकर समर्पित करता है और बाद में प्रणाम पाती करता है. साक्षात् अतिथि देवोभव: का भाव आज भी संताल समाज में दिखता है, लेकिन पढ़ने के लिए ऋग वेद’ में है. संताल समाज में कई प्रकार के चुनौतियां भी हैं. संताल समाज की पहचान वास्तव में इनका धर्म संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपराएं, जन्म से लेकर मरण तक के विधि विधान, पर्व-त्योहार, देवी-देवता आदि. आज इनके बीच में अनेक प्रकार विधर्मी लोग घुस आये है और इनको अपना धर्म से विमुख कर रहे है. वास्तव में संताल जनजाति जन्म से सनातनी हैं, लेकिन इनको विधर्मी लोग विदेशी धर्म में बदलते हैं.
पहचान के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. इसी प्रकार से कुछ लोग इनको भ्रमित करने का काम करते हैं, इस देश के मुख्य समाज से अलग थलग करने काम कर रहे हैं. इनको अल्पसंख्यक बनाने का काम रहे हैं. विशेषकर ईसाई मिशनरियों द्वारा पर्यावरण का खेल और व्यापार, मुस्लिम द्वारा लव जिहाद एवं लैण्ड जिहाद, संताल से विवाह कर उसके नाम पर जमीन खरीदना, आतंकवादी, अलगाववादी और वामसेफी के द्वारा हिन्दू समाज के खिलाफ खड़ा करना. वास्तव में समाज को भाषा के नाम पर, लिपि के नाम पर, जल, जमीन और जंगल के नाम पर, अलग धर्म कोड के नाम पर दिग्भ्रमित करना और अपना स्वार्थ सिद्धि का रोटी सेंकना. ऐसे करने वाले सभी के सभी संताल समाज के हितैशी नहीं, बल्कि शत्रु हैं. यही वास्तव में सबसे बड़ी चुनौतियां हैं.
आज भी संताल समाज में गीत गाया जाता है
माधो सिंह बिडराव ते बारो जोड़ सागाड़,
बनाव लेदा को साविक संताल।
सिज दुवार बांहे दुवार मुहीम रेको पाड़ावेन,
होमोर केदा को हिया जाला।
कापी कारान भालवा विजय उलुम जुलुम पैकाहा
गोडोलेना को धोरोम तेगे ।।
(राष्ट्रीय सह संयोजक जनजाति सुरक्षा मंच, दुमका)